लेखमाला भाग 3
प्रेषक- #डॉविवेकआर्य
महात्मा गाँधी एक समय कहते थे कि भारत का विभाजन उनकी लाश पर होगा। कोलकाता और नोआखली के दंगों के समय जब हिन्दू समाज द्वारा प्रतिक्रिया होने लगी तो वो अनशन पर बैठ गए। नोआखली का दौरा किया मगर दंगे के मूल कारण जिन्नाह और उसके जिगरी सुहरावर्दी को दो कड़वे बोल भी न बोले। पाकिस्तान से आये हिन्दुओं को खाली मस्जिदों में रुकने का विरोध किया। मुसलमानों को भारत से न जाने के लिए अनुरोध किया। उन्हीं गाँधी जी के बंगलादेश में बने एकमात्र स्मारक की व्यथा इस भाग में पढ़िए।
चारु दा नोआखाली में गाँधी जी के साथ गए थे। वे उनके पथप्रदर्शक, दुभाषिये, बंगला भाषा सिखाने वाले गुरु, पत्र लेखक, सहयोगी, सेवक सभी थे। वे नोआखाली के गाँधी आश्रम को सँभालते थे। प्रसिद्द भारतीय लेखक क्षितीश वेदालंकार उनसे अपनी बंगलादेश यात्रा के समय मिले। 73 वर्षीया दादा से क्षितीश जी ने पूछा कि बंगलादेश में अल्पसंख्यकों के भविष्य के बारे में वे क्या सोचते हैं?
वे बोले बन्धु! मैंने दुनिया के बहुत उलटफेर देखे हैं। विभाजन से पूर्व के स्वातंत्र्य संघर्ष के दिन और सरफरोशी की तमन्ना मुझे याद है। मुझे विभाजन से पहले के नोआखाली के हत्याकांड की रक्तरंजित इतिहास भी याद हैं। विभाजन की भयप्रद वारदातें भी याद हैं। अब बंगलादेश का नंगापन भी अपनी आँखों से देख रहा हूँ। अभी इन आँखों से और क्या क्या देखना बाकि है, भगवान जाने!
नोआखाली के गाँधी आश्रम की बुरी हालात है। वहां के सर्वोदय कार्यकर्ता और खादी कार्यकर्ता आतंक की स्थिति में जी रहे हैं। आश्रम की भूमि में जो फसल खड़ी थी उसे बहुसंख्यक सम्पद्राय के लोग काटकर ले गए हैं। हालत यह है कि 2500 एकड़ भूमि में से 25 एकड़ भूमि बची है। बाकि सभी पर अवैध कब्ज़ा हो गया हैं। पुलिस में रिपोर्ट करते हैं तो कोई सुनने वाला नहीं। आर्थिक तंगी बहुत अधिक है। क्या तुम दिल्ली जाकर गाँधी जी के प्राइवेट सेक्रेटरी प्यारेलाल जी से आश्रम की हालात बताकर कुछ सहायता भिजवा सकते हो! उनको चिट्ठी लिखते है तो कोई उत्तर नहीं आता। यदि नोआखाली आश्रम बंद हो गया तो बांग्लादेश में गाँधी जी का अंतिम स्मारक भी नामशेष हो जायेगा।
जहाँ तक अल्पसंख्यकों की बात है। आपने महाभारत में मुसल पर्व सुना होगा। बांग्लादेश में वही चल रहा है। जैसे नवजात शिशु का मुख देखने की इच्छा से जननी प्रसव पीड़ा का दर्द सहती है। हमने भी नवजात बांग्लादेश का वैसे ही मुख देखने का सुख पाया है। पर हमारी प्रसव पीड़ा को कोई क्या जानेगा? जहाँ तक यहाँ के अल्पसंख्यकों के भविष्य का प्रश्न है, मैं सर्वदा निराश हूँ। मुझे कोई भविष्य नज़र नहीं आता। मैंने कहा न, यह मुसल पर्व है। यह मुसल एक एक करके हरेक की गर्दन पर गिरेगा। सब धराशायी हो जायेंगे। कोई नहीं बचेगा। मैं भी नहीं। विनाश विनाश विनाश।
अब आप बताये कि क्या ऐसे दो करोड़ गैर मुसलमानों को अपने शोषित जीवन से मुक्ति दिलाकर भारत में यथोचित सम्मान क्यों नहीं मिलना चाहिए ?इसलिए मैं CAA और NRC का समर्थन करता हूँ। क्या आप मेरे साथ है?