अल्पसंख्यकों का मुस्लिम देश में भविष्य ,भाग – 1
लेखमाला भाग 1
प्रेषक- #डॉविवेकआर्य
जोगिन्दर नाथ मंडल के नाम से आप सभी परिचित है जो 1947 के समय पाकिस्तान में रुक कर वहां के मंत्री बने। जिन्होंने दलितों को भारत आने के स्थान पर बंगलादेश में रुकने की प्रेरणा दी थी। बाद में वहां के बहुसंख्यकों ने उन्हें इतना परेशान किया कि उन्हें भाग कर भारत आना पड़ा और गुमनामी में उनकी मृत्यु हो गई। यह केवल एक कहानी नहीं है। ऐसी ही एक कहानी है बांग्लादेश के वित् सचिव श्री कमल भूषण चौधरी की। आपने स्वेच्छा से पाकिस्तान का वरण किया। उससे पूर्व आप उच्च सरकारी नौकरी पर थे। आपके सामने भारत आने का विकल्प था। पर आपने पाकिस्तान की सेवा का निर्णय लिया। एक बार प्रसिद्ध भारतीय पत्रकार क्षितीश वेदालंकार जी आपसे मिले। क्षितीश जी ने अपनी पुस्तक ‘बांग्लादेश स्वतंत्रता के बाद’ में इस वार्तालाप का वर्णन किया है।
क्षितीश जी ने पूछा- इस निश्चय का कारण? तो वे बोले- कायदे आजम का सब नागरिकों के साथ समान बर्ताव का आश्वासन और नई चुनौतियों को स्वीकार करने में एक एडवेंचर भी है।
कमल भूषण 1947 तक अखंड भारत की स्वतंत्रता के स्वप्न देखते थे और वन्देमातरम के नारे लगाते थे। वे भी गाँधी जी के समान हिन्दू-मुस्लिम एकता की बात करते थे।
बहुभाषीय, बहुजातीय और बहुधर्मीय भारत का आधार सामन्यात्मक संस्कृति को मानते थे। यहाँ तक कि कोलकाता और नोआखली में मुस्लिम लीग द्वारा खेले गए खुनी खेल को वो क्षणिक पागलपन मात्र मानते थे। वो कहते थे कि आवेश में मनुष्य पशु बन जाता है पर फिर से मनुष्य बनते भी देर नहीं लगेगी। उनका विश्वास था कि ईमानदारी और कर्तव्यपरायणता की बदौलत सेवाओं का पाकिस्तान में उचित मूल्याङ्कन होगा। पर वह दौर कभी नहीं आया। उन्हें सिंध में रहते हुए यह अहसास होने लगा कि वो पाकिस्तान में एक अवांछित व्यक्ति है। उन पर भारतीय जासूस होने का शक किया जाता था। यह भी तब जब वह अपना कार्य पूरी मेहनत के साथ किया करते थे। उनके एक ही कसूर था कि वे हिन्दू थे। उनके पीछे सदा गुप्तचर रहते थे। उनकी पत्नी और बच्चों को लगातार परेशान किया जाता था। एक समय तो यह स्थिति आ गई थी कि उनकी पत्नी पिस्तौल लटकाये मर्दाने वेश में रोज़ रात को उनकी कोठी के गेट पर पहरा दिया करती थी। कम शब्दों में पाठक स्वयं समझ सकते है कि एक उच्च योग्यता प्राप्त व्यक्ति के साथ ऐसा पाकिस्तान में होता था तो गरीब, अनपढ़ व्यक्ति के साथ कैसा होता होगा? 1971 पश्चात चौधरी बंगलादेश में रुक गए। मगर उनकी हालात में तब भी कोई सुधार नहीं हुआ। एक मुस्लिम देश में गैर मुस्लिमों के साथ ऐसा व्यवहार इल्हामी आदेश का पालन करने जैसा है। इसलिए मानवता के ऊपर इलहाम पिछले 1300 सालों से राज करता आया हैं।
अब आप बताये कि क्या ऐसे दो करोड़ गैर मुसलमानों को अपने शोषित जीवन से मुक्ति दिलाकर भारत में यथोचित सम्मान क्यों नहीं मिलना चाहिए ?इसलिए मैं CAA और NRC का समर्थन करता हूँ। क्या आप मेरे साथ है?