हम सभी के लिए यह बहुत ही दुखद समाचार है कि वर्तमान विश्व के 5 देश ऐसे हैं जो संसार के किसी भी कोने में स्थित शहर को अपनी मिसाइलों से नष्ट कर सकते हैं। इन देशों में अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन और फ्रांस का नाम सम्मिलित है।
आज के इस लेख को हम मनुष्य द्वारा ईश्वर की बनाई हुई प्यारी सृष्टि को समाप्त करने की इस आत्मघाती योजना पर इस दृष्टिकोण से विचार करेंगे कि परमेश्वर ने यह सृष्टि क्यों बनाई और इसे आज मानव समाप्त करने पर क्यों उतारू हो गया है?
इस प्रश्न के उत्तर के लिए हमें वैदिक दृष्टिकोण से विचार करना आवश्यक है। परमपिता परमेश्वर ने यह सृष्टि भी जीव को भोग तथा मोक्ष देने के लिए बनाई है। इस सृष्टि के बनाने में प्रभु का अपना कोई प्रयोजन नहीं। केवल जीवों के उद्धार के लिए ही परमपिता परमेश्वर ने यह संसार रचा है। इसीलिए परमार्थ के लिए सारे काम करने वाले परमपिता परमेश्वर को निष्काम भाव से कर्म करने वाला अर्थात सुकर्मा कहा जाता है। हम ईश्वर की प्रार्थना, उपासना और आराधना इसीलिए करते हैं कि उसके गुण हमारे भीतर आ जाएं। जैसे अग्नि के पास लोहे को रखने से लोहा गरम होने लगता है वैसे ही हम मानव ईश्वर के निकट उपासना की स्थिति में बैठकर उसी के जैसे गुणों को धारण करने लगते हैं। इसीलिए वैदिक सामाजिक व्यवस्था में मनुष्य के लिए दोनों समय संध्या करना आवश्यक बताया गया। जिससे मानव ईश्वर की बनाई व्यवस्था और सृष्टि में किसी प्रकार का व्यवधान उत्पन्न न करे, अपितु उसकी व्यवस्था को चलाने में सहायक बना रहे, सुकर्मा बना रहे। वेदप्रापक ऋषियों ने भारत की इसी वैदिक संस्कृति का निर्माण कर संसार को शांति और व्यवस्था की अनमोल विरासत प्रदान की।
प्रभु स्वाभाविक रूप से लोकोपकार करता है। भक्तों को भी भगवान का अनुकरण करना चाहिए और जैसे ईश्वर अपनी स्वाभाविक शक्ति के अनुसार निष्काम कर्म करता है, वैसे ही भक्तों को भी निष्काम कर्म करने चाहिए। सृष्टि निर्माण के कारण भगवान उत्तम कर्मकारी है। मनुष्य भी संतान उत्पत्ति के माध्यम से निर्माण करता है । उसका यह कार्य भी लोकोपकारी हो जाए – इसके लिए उससे वेद ने यही अपेक्षा की है कि वह श्रेष्ठ उत्तम संतान उत्पन्न कर संसार को दे। जिससे ईश्वर की बनाई हुई व्यवस्था सुव्यवस्थित होकर आगे बढ़ती रहे। लुटेरे ,डकैत, हत्यारे ,बलात्कारी, अपराधी सन्तान उत्पन्न करना मनुष्य की जीत नहीं हार है।
मनुष्य ने थोड़ी सी भौतिक उन्नति क्या कर ली कि वह नास्तिक बनता चला गया। अहंकार में फूल गया और यह भूल गया कि उसने ईश्वर से क्या वचन दिया है ? अब वह निर्माण के स्थान पर विध्वंस की योजनाओं में लग गया । क्योंकि उसके अहंकार ने उसे ईश्वर को भूलने के लिए प्रेरित किया । इसलिए उसने यह समझ लिया कि संसार की सबसे बड़ी शक्ति मैं स्वयं हूँ। वह निर्माण निर्माण नहीं है जो विध्वंस का कारण बने। निर्माण उसी को कहते हैं जो सृजन की सहज प्रक्रिया को निरंतर जारी रखने में सहायक हो। जो सृजन की सहज प्रक्रिया को कहीं न कहीं नष्ट करने की योजना में लगा हूं उसे ही विध्वंस कहा जाता है।
आज का मानव जिस निर्माण को निर्माण कहकर फूला नहीं समा रहा है वह उसके सृजन की सहज प्रक्रिया को नष्ट करने की आत्मघाती योजना है। वास्तव में यह मनुष्य का विज्ञान नहीं ,अज्ञान है, नादानी है ,उसकी मूर्खता है । क्योंकि वह जिस डाल पर बैठा है , उसी को काटने में लगा है।
आज संसार में जिन 5 देशों को विश्व शक्ति के नाम से पुकारा जाता है, उन्हें विश्व शक्ति के नाम से पुकारना भी आज के विश्व समाज की सबसे बड़ी मूर्खता है नादानी है ,अज्ञानता है, क्योंकि यह पांचों विश्वशक्ति नहीं ,अपितु आज के ‘भस्मासुर’ हैं। विश्व के सबसे बड़े ‘पांच बदमाश’ हैं। विश्व शक्ति तो वह होती है जो अकाल, दुर्भिक्ष, बाढ़, तूफान , प्राकृतिक प्रकोप आदि के समय कमजोर, गरीब ,निर्धन व अविकसित देशों या विश्व के अंचलों के लोगों की सहायता कर सकती हो। यह सहायता भी ईश्वरीय व्यवस्था के अंतर्गत लोकोपकार की भावना के वशीभूत होकर की जाए ,तभी सहायता कही जाती है। यदि इन देशों के भीतर ऐसा कोई गुण नहीं है तो इन्हें विश्व शक्ति कहना सर्वथा मूर्खता ही है।
संसार के अतीत में जिन ‘रावणों’ और ‘दुर्योधनों’ ने अपनी शक्ति का दुरुपयोग करते हुए दूसरे के विनाश की योजनाएं बनाईं, वह इतिहास में आज भी संसार की विनाशकारी विध्वंसक शक्तियों के नाम से ही जाने पहचाने जाते हैं। जो लोग आज भी विश्व के किसी भी कोने में स्थित किसी शहर या कस्बे को उड़ाने की विध्वंसकारी शक्तियों के संचय में लगे हुए हैं और उसे ही अपना विज्ञान मान रहे हैं या शक्ति का पैमाना मान रहे हैं वह भी आज के रावण और दुर्योधन ही हैं।
दुनिया में नॉर्थ कोरिया जिस तेजी से अपनी परमाणु क्षमताओं का विस्तार कर रहा है, वह बड़े खतरे की ओर संकेत है। चीन ने पिछले कुछ समय में अपनी मिसाइलों की मारक क्षमता बढ़ाने पर ध्यान दिया है। ईरान भी मिसाइलों को लेकर तेजी से अपनी ताकत बढ़ाने में लगा है।
सेंटर फॉर स्ट्रेटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टीडज ने कुछ समय पहले कहा था कि समूचा विश्व इस समय मिसाइलों की नई प्रतिस्पर्धा की ओर प्रवेश कर चुका है। इसी प्रकार की विनाशकारी प्रतिस्पर्धा में अपने आपको पूरी शक्ति के साथ झोंकने वाले नॉर्थ कोरिया का दावा भी यही है कि उसके पास ऐसी मिसाइलें हैं, जो विश्व में कहीं भी मार कर सकती हैं। यह देश अमेरिका सहित अपने हर शत्रु देश को मिटाने की तैयारियों में लगा हुआ है। वह हथियारों के बल पर दुनिया को झुकाने की हर उस कोशिश को आजमा लेना चाहता है जो उसे विश्व का ‘बेताज बादशाह’ बनाने की क्षमता रखती हो।
यदि संसार के वर्तमान परिवेश पर विचार किया जाए तो इस परिवेश को विनाशकारी सोच से भर देने का काम उन देशों ने किया है जो अपने आपको विश्व शांति की स्थापना करने में सबसे बड़े जिम्मेदार देश के रूप में स्थापित करने की योजनाओं में लगे रहे हैं।
वास्तव में ऐसी भ्रांति फैलाना या घोषणा करना कि हम विश्व शांति के संरक्षक राष्ट्र हैं, इन देशों का घमंड या दम्भ ही कहा जाएगा। ऐसे दम्भी देशों में रूस और अमेरिका के अतिरिक्त चीन, ब्रिटेन और फ्रांस सम्मिलित हैं। ये देश विश्व शांति के रक्षक नहीं ,भक्षक हैं क्योंकि इनके बस्ते में एक से बढ़कर एक विनाशकारी और हमलावर मिसाइलें हैं। हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि किसी को लाठी से धमकाकर उसे अपना नहीं बनाया जा सकता, अपना बनाने के लिए प्यार की थपकी की ही आवश्यकता पड़ती है।
मध्यकालीन इतिहास में जब तथाकथित शांतिप्रिय मुगल और उन जैसे दूसरे शासक एक दूसरे के देशों पर जबरन कब्जा कर रहे थे, और बड़े बड़े नरसंहार कर विश्व में खूनी आतंक पैदा कर रहे थे, यदि वे अपने काल में विश्व शांति स्थापित नहीं कर पाए तो आज के मुगल अर्थात विनाशकारी प्रवृत्तियों में लगे सभी देश और उनके शासक विश्व में शांति कैसे स्थापित कर सकते हैं ? इतिहास के इस मुंह बोलते प्रमाण पर भी हमें थोड़ी देर के लिए विचार करना चाहिए।
भारत के लिए यह बहुत ही अधिक चिंता का विषय है कि मिसाइलों की इस प्रतिस्पर्धा में एशियाई देश सबसे अधिक सम्मिलित हो रहे हैं । पाकिस्तान ने ईरान और उत्तरी कोरिया के साथ मिलकर अपने मिसाइल कार्यक्रम को आगे बढ़ाया है। निश्चय ही इस शत्रु देश का ऐसा कार्य भारत के लिए भविष्य में समस्या खड़ा करने वाला होगा। वैसे पाकिस्तान ने 90 के दौर से ही मिसाइल कार्यक्रम को तेजी से बढ़ाया है। अब पाकिस्तान ये काम चीन के साथ मिलकर कर रहा है। अपने पड़ोसी भारत पर दबाव बनाने के लिए उसने कई मिसाइल परीक्षण किए। जबकि भारत ने वर्ष 2020 के आखिरी महीनों में लगातार बड़ी दूरी की अत्याधुनिक मिसाइलों का परीक्षण कर इनकी मारक क्षमता बहुत बढ़ा ली है। एशिया में चीन के बाद शायद भारत ही मिसाइलों के मामले में सबसे ताकतवर मुल्क बन गया है।
भारतीय मिसाइल क्षमता की बात करें तो अभी तक हमने अग्नि-VI और अन्य मिसाइल्स का सफल परीक्षण किया है। जो 5 हजार किमी दूर तक हमला करने में सक्षम है। वैज्ञानिक और संस्थाएं अब अग्नि-6 की तकनीक पर काम कर रही हैं। इस नई अग्नि की पहुंच 6 हजार किमी से अधिक होगी।
संसार में विश्व शांति के लिए संयुक्त राष्ट्र को भारतीय वैदिक दर्शन व चिंतन को समझना होगा। जितने भर भी विश्व शांति के प्रयास करने के दस्तावेज आज संयुक्त राष्ट्र के पास उपलब्ध हैं वे सारे के सारे स्वार्थ और एक दूसरे को नीचा दिखाने के षड्यंत्र कारी विश्व इतिहास के पृष्ठ हैं। जिनसे विश्व शांति की स्थापना नहीं की जा सकती। विश्व शांति की स्थापना के लिए निष्पक्ष और न्यायपूर्ण हृदय से निकले शब्द ही काम करते हैं । चालाकी ,छल कपट, फरेब और एक दूसरे को नीचा दिखाने की भावना में छुपे कूटनीतिक शब्द कभी भी विश्व शांति में सहायक नहीं हो सकते। इसके लिए वेद का शांति पाठ, स्वस्तिवाचन और शांतिकरण के मंत्रों को आधार बनाकर संयुक्त राष्ट्र को कार्य करना चाहिए । क्योंकि यह ईश्वरीय वाणी वेद के ऐसे मंत्र हैं जो निष्पक्ष और न्यायपूर्ण शैली में ऋषियों के हृदय से निकले हैं । भारत सरकार को भी चाहिए कि विश्व शांति के लिए अपने स्वस्तिवाचन, शांतिकरण और शांति पाठ को आधार बनाकर संसार के समक्ष प्रस्तुत करे।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत