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लोगों की शिथिलता के कारण मजबूत होता जा रहा है कोरोना

डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा

कोरोना की वापसी के संकेत डरावने हो गए हैं। बड़ी मुश्किल से पटरी पर लौटती दिनचर्या पर कोरोना की मार भारी पड़ने वाली है। कोरोना के कारण प्रभावित आर्थिक गतिविधियों को लॉकडाउन के माध्यम से बंद करना अब सरकारों के लिए किसी दुश्वारी से कम नहीं है।

पूरे एक साल बाद एक बार फिर मार्च का महीना कोरोना महामारी के बढ़ते मामलों से डराने लगा है। मार्च के महीने का पहला पखवाड़ा गंभीर चेतावनी लेकर आया है। ठीक एक साल पहले मार्च, 2020 में देश में कोविड-19 के चलते लॉकडाउन का दौर चला था। कोरोना के कारण लंबे समय तक प्रभावित हालातों के बाद पिछले दो तीन महीनों से लगने लगा था कि अब देश में हालात पटरी पर आने लगे हैं पर मार्च आते-आते जिस तरह से कोरोना पॉजिटिव के मामले बढ़ते जा रहे हैं वह एक बार फिर चिंता का कारण बनता जा रहा है। पिछले 12 सप्ताहों में नए केसों में भारी बढ़ोतरी देखी गई है। सबसे खराब स्थिति महाराष्ट्र् में देखी जा रही है तो मौत के मामलों में पंजाब डरा रहा है। महाराष्ट्र में कुछ स्थानों पर रात का कर्फ्यू तो कुछ स्थानों पर लॉकडाउन भी किया गया है। दुनिया के कुछ देशों में कोरोना की तीसरी लहर की बात होने लगी है।

यह तो तब है जब दुनिया के देशों में कोरोना वैक्सीनेशन में हमारा देश पहले तीन देशों में शुमार हो गया है। कोरोना वैक्सीनेशन में राजस्थान समूचे देश में शीर्ष पर है तो महाराष्ट्र में भी वैक्सीनेशन की स्थिति अच्छी है। इस सबके बावजूद जिस तेजी से महाराष्ट्र सहित दस राज्यों में कोरोना पॉजिटिव के मामले सामने आ रहे हैं उससे चिंता की लकीरें उभर आई हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गंभीरता से लेते हुए उच्च स्तरीय बैठक में समीक्षा की है और राज्यों के मुख्यमंत्रियों से चर्चा कर नई रणनीति बनाई है तो राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामलों को देखते हुए एक्शन मोड में आ गए हैं। प्रभावित राज्यों से आने वाले नागरिकों के टेस्ट के निर्देश दे दिए हैं। हालांकि लगभग सभी राज्य सतर्क होने लगे हैं।

दरअसल लोगों में कोरोना के प्रति गंभीरता कम हुई है। बाजारों में हालात कोरोना से पहले की तरह हो गए हैं तो शादी-विवाह व जलसों का सिलसिला निकल पड़ा है। इस दौरान कई राज्यों में स्थानीय निकायों के चुनावों सहित राजनीतिक गतिविधियां भी तेज हुई हैं। बंगाल, आसाम, केरल सहित कई प्रदेशों में विधानसभा चुनाव की भेरी बज चुकी है और इन प्रदेशों में राजनीतिक रैलियां हो रही हैं। इसके साथ ही किसान आंदोलन के चलते धरना प्रदर्शन और राज्यों की विधानसभाओं के बजट सत्र के चलते विधानसभाओं पर प्रदर्शन का सिलसिला जारी है। सार्वजनिक वाहनों ही क्या एक तरह से कोरोना प्रोटोकाल की पालना लगभग नहीं के बराबर होने लगी है। हाथ धोने, सेनेटाइजर का प्रयोग, दो गज की दूरी, मास्क लगाने आदि में अब औपचारिकता मात्र रह जाने से स्थितियां गंभीर होने की चेतावनी साफ हो गई है। यहां तक कि लोग वैक्सीनेशन को भी गंभीरता से नहीं ले रहे हैं।

कोरोना की वापसी के संकेत डरावने हो गए हैं। बड़ी मुश्किल से पटरी पर लौटती दिनचर्या पर कोरोना की मार भारी पड़ने वाली है। सरकार की भी अपनी सीमाएं हैं। कोरोना के कारण प्रभावित आर्थिक गतिविधियों को लॉकडाउन के माध्यम से बंद करना अब सरकारों के लिए किसी दुश्वारी से कम नहीं है। आखिर रोजगार व आर्थिक गतिविधियों को बनाए रखना चुनौती भरा है। डिमाण्ड और सप्लाई की चैन जैसे तैसे कुछ सुधरी है पर नए हालातों से यह प्रभावित होनी ही है। ऐसे में सरकार से ज्यादा जिम्मेदारी अब आम नागरिकों की हो जाती है। कोरोना का वैक्सीनेशन का काम पूरा नहीं हो जाता है तब तक के लिए सार्वजनिक आयोजनों के लिए तो सरकार को अनुमति देने पर सख्त पाबंदी ही लगा देनी चाहिए। लगभग सभी राज्यों में कोरोना प्रोटोकाल की पालना के लिए निर्देश जारी हैं। केन्द्र सरकार भी समय-समय पर निर्देश जारी कर रही है। ऐसे में राज्य सरकारों को कोरोना प्रोटोकाल की पालना में सख्ती करनी ही होगी। बिना मास्क के आवाजाही या काम-धाम पर सख्त कदम उठाने होंगे। प्रशासन को ऐसे लोगों के साथ सख्ती से पेश होना होगा। सोशल डिस्टेंस की पालना पर ध्यान दिलाना होगा। सार्वजनिक परिवहन के साधनों और सार्वजनिक स्थानों आदि पर सख्ती से पालना करानी होगी।

सरकारों व आमजन को यह समझना होगा कि कोरोना के चलते लॉकडाउन ही केवल मात्र विकल्प नहीं हो सकता। आखिर लॉकडाउन के हालात आए ही क्यों, लोगों को स्वयं को भी जिम्मेदार होना होगा। सामाजिक दायित्व निभाने के लिए आगे आना होगा। नाम कमाने के लिए छुटभैया नेताओं की गतिविधियों पर रोक लगानी होगी। यदि कोरोना प्रोटोकाल की पालना घर से ही शुरू की जाए और समझाइस से लोगों को प्रेरित किया जाए तभी समाधान संभव है। नहीं तो कोरोना के नाम पर मुफ्त सामग्री के वितरण और फोटो खिंचाकर सोशल मीडिया पर डालने से कोई हल नहीं निकल सकता। हमें नहीं भूलना चाहिए कि आर्थिक गतिविधियां ठप्प होने से कितने युवा बेरोजगार हुए हैं तो कितनों के वेतन में कटौती हुई है। बेरोजगारी के चलते या आय के स्रोत प्रभावित होने से कितने ही लोगों ने जीवन लीला समाप्त की है तो कितनों के ही हालात प्रभावित हुए हैं। ऐसे में सरकार से अधिक अब आम आदमी और सामाजिक व गैर-सरकारी संगठनों का दायित्व अधिक हो जाता है। सरकार को भी ऐसा रास्ता निकालना होगा जिससे गतिविधियां ठप्प नहीं हों क्योंकि इसका दंश अर्थव्यवस्था भुगत चुकी है। ऐसे में नो मास्क नो एन्ट्री के स्लोगन लगाने की नहीं इसकी सख्ती से पालना की आवश्यकता हो जाती है। नहीं तो आने वाला कोरोना का दौर और भी अधिक भयावह होगा यह हमें नहीं भूलना चाहिए।

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