केंद्र सरकार ने देश की अर्थव्यवस्था को वर्ष 2024-25 तक 5 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के आकार का बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया है। इस लक्ष्य को निर्धारित समय सीमा में प्राप्त करने के लिए, भारत में आर्थिक विकास की दर को 10 प्रतिशत प्रतिवर्ष के ऊपर ले जाने की आवश्यकता होगी एवं आर्थिक विकास की दर को 10 प्रतिशत से ऊपर ले जाने हेतु देश में पूंजी की अधिक आवश्यकता भी होगी। यदि, वृद्धिशील पूंजी एवं उत्पादन अनुपात 4:1 का भी माना जाय, अर्थात उत्पादन की एक इकाई हेतु पूंजी की 4 इकाईयों की आवश्यकता होगी, तो 10 प्रतिशत से अधिक की विकास दर हासिल करने के लिए 40 प्रतिशत से अधिक सकल घरेलू बचत की आवश्यकता होगी। हालांकि उत्पादकता में वृद्धि करके वृद्धिशील उत्पादन अनुपात को सुधारा जा सकता है, परंतु यदि रूढ़िवादी दृष्टिकोण को अपनाते हुए भी चलें तो देश की सकल घरेलू बचत में उक्त वृद्धि दर की आवश्यकता तो होगी ही। वर्तमान में देश में बचत दर 30 प्रतिशत से कम है। अतः 10 प्रतिशत से अधिक की विकास दर को प्राप्त करना एवं इसे बनाए रखना एक मुश्किल कार्य होगा और वह भी तब जब देश में विकास दर बढ़ाने हेतु मांग में वृद्धि एवं उपभोग में भी वृद्धि करना आवश्यक होगा। इस स्थिति में बचत दर में वृद्धि दर्ज़ करना और भी कठिन कार्य होगा। और, संभवत: इसी परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए केंद्रीय वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमन ने वर्ष 2019-20 का बजट पेश करते हुए संसद में घोषणा की थी कि देश में विकास दर को तेज़ करने के उद्देश्य से केंद्र द्वारा विदेशी मुद्रा में सरकारी बांड्ज़, विदेशी बाज़ार में जारी कर, विदेशी मुद्रा के रूप में पूंजी जुटाई जाएगी। यदि ऐसा सम्भव हो पाता है तो इससे देश के वित्तीय बाज़ार पर पूंजी उगाहने के दबाव को कम किया जा सकता है क्योंकि अन्यथा यह राशि केंद्र सरकार को देशी वित्तीय बाज़ार से उगाही जानी होती है। साथ ही, यदि केंद्र सरकार यह राशि देशी वित्तीय बाज़ार से न उगाह कर विदेशी वित्तीय बाज़ार से विदेशी मुद्रा में उगाहती है तो देशी वित्तीय बाज़ार द्वारा यह बची हुई राशि देश के उद्योंगों को ऋण के रूप में उपलब्ध करायी जा सकती है।
केंद्रीय वित्त मंत्री द्वारा संसद में की गई उक्त घोषणा के साथ ही, देश में एक बहस सी छिड़ गई थी कि देश द्वारा विदेशी बाज़ार से विदेशी मुद्रा में पूंजी उगाहने से विश्व को गलत संदेश जाएगा क्योंकि विदेशों से विदेशी मुद्रा की उगाही कुछ असामान्य परिस्तिथियों में ही की जानी चाहिए, जबकि अभी देश की आर्थिक स्थिति काफ़ी मज़बूत होने के बावजूद विदेशों से पूंजी की उगाही क्यों की जाय? परंतु, यहां यह ध्यान रखना आवश्यक होगा कि विदेशों से विदेशी मुद्रा में पूंजी की उगाही देश की आर्थिक वृद्धि दर तेज़ करने के उद्देश्य से की जा रही है। एसा कई अन्य देशों द्वारा भी समय समय पर किया जाता रहा है। भारत ने ज़रूर इस पथ का इस्तेमाल नहीं के बराबर किया है। इसी कारण से भारत का विदेशी मुद्रा में सम्प्रभु ऋण देश के सकल घरेलू उत्पाद से अनुपात अन्य देशों की तुलना में बहुत ही कम (लगभग मात्र 5 प्रतिशत) है। जबकि, अन्य देशों यथा चीन, जापान एवं अमेरिका के लिए यह प्रतिशत बहुत ही अधिक है। भारत का कुल विदेशी ऋण देश के सकल घरेलू उत्पाद का मात्र लगभग 20 प्रतिशत ही है तथा भारत का कुल ऋण देश के सकल घरेलू उत्पाद का 72.3 प्रतिशत (वर्ष 2019 में) है। देश का विदेशी व्यापार घाटा भी सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 2.7 प्रतिशत ही है। तथा देश के पास 48,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर से अधिक का विदेशी भंडार भी मौजूद है। उक्त समस्त मानकों पर भारत की स्थिति बहुत ही संतोषजनक कही जा सकती है।
कई अर्थशास्त्रियों द्वारा यह तर्क भी दिया जा रहा है कि चूंकि यह ऋण विदेशी मुद्रा में लिया जाएगा अतः इसका भुगतान भी विदेशी मुद्रा में ही करना होगा और आज से लेकर दीर्घक़ालीन अवधि (15 या 20 वर्षों) के पश्चात रुपए का बाज़ार मूल्य क्या होगा यह अभी से बताना बहुत मुश्किल कार्य है। अतः हम अपनी देयता का पता आज से 15-20 वर्षों पश्चात कैसे लगा पाएंगे? विदेशी बाज़ारों में ब्याज की दर (2-3 प्रतिशत के आसपास) हमारे देश में प्रचिलित ब्याज दर (7-8 प्रतिशत के आसपास) की तुलना में बहुत कम है। अतः भारत सरकार द्वारा विदेशी मुद्रा में जारी किए जाने वाले बांड्ज़ की ब्याज दर भी बहुत कम अर्थात 2-3 प्रतिशत के आसपास ही होगी। भारतीय रुपए एवं अमेरिकी डॉलर (यदि बांड्ज़ अमेरिकी डॉलर में जारी किए जाते हैं तो) की दर हेजिंग/स्वॉप के माध्यम से अभी से ही निश्चित की जा सकती है। हां, यहां हेजिंग/स्वॉप लागत (विनिमय लागत) ज़रूर इस 2-3 प्रतिशत ब्याज दर में जोड़नी होगी, जो कि लगभग 3 से 3.5 प्रतिशत के बीच हो सकती है। इसी तरह अन्य लागतों को जोड़कर इन बांड्ज़ की कुल लागत 6-7 प्रतिशत के बीच में रह सकती है। इस प्रकार, लागत तो भारत में लागू ब्याज दर की तुलना में थोड़ी ही कम होगी परंतु देश में अमेरिका डॉलर की आवक बढ़ने से भारतीय रुपए को मज़बूती प्रदान हो सकती है एवं देश में 15-20 वर्षों के लिए विदेशी मुद्रा में पूंजी उपलब्ध हो जाएगी जो कि देश के आर्थिक विकास के लिए अपना योगदान देती रहेगी। साथ ही, विदेशी बाज़ार में सस्ती ब्याज दरों पर यदि ये बांड्ज़ जारी होंगे तो देश में भी सरकार द्वारा जारी किए जा रहे अन्य बांड्ज़ पर आय (यील्ड) में कमी आ सकती है जिससे देश में ब्याज दरों में कमी आ सकती है तथा वित्त बाज़ार में तरलता की स्थिति में और अधिक सुधार आएगा।
यदि हमारे देश में आर्थिक विकास की गति को तेज़ करना है एवं देश में पर्याप्त पूंजी उपलब्ध नहीं हो तो विदेशी मुद्रा में पूंजी का उपयोग करने में कोई झिझक नहीं होनी चाहिए। और, अभी तो भारत की रेटिंग भी विदेशी बाज़ारों में काफ़ी अच्छी है। अतः विदेशी मुद्रा में पूंजी आसान शर्तों पर एवं तुलनात्मक रूप से कम ब्याज की दर पर ही उपलब्ध हो जाएगी। जापान में तो ब्याज की दर भी बहुत कम अर्थात 0.10 प्रतिशत ही है। यदि जापानी येन में भारत सरकार इन बांड्ज़ को जारी करती है तो ब्याज की दर बहुत ही कम रहने की सम्भावना होगी।
अतः भारत सरकार को विदेशी बाज़ारों में, विदेशी मुद्रा में बांड्ज़ को जारी करना चाहिए। हां, शुरू में इसका देश की अर्थ व्यवस्था पर प्रभाव आंकने के उद्देश्य से, छोटे छोटे हिस्सों यथा 300-400 करोड़ अमेरिकी डॉलर में ये सरकारी बांड्ज़ जारी किए जा सकते हैं तथा विदेशी मुद्रा में जारी किए जा रहे बांड्ज़ हेतु देश में ही इनके व्यापार करने के उद्देश्य से बाज़ार उपलब्ध कराने हेतु ये बांड्ज़ विभिन्न समय सीमा के लिए यथा 5 वर्ष, 10 वर्ष, 15 वर्ष, 20 वर्ष आदि हेतु जारी किए जा सकते हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार बहुत बड़ा है और यदि केवल 1000 करोड़ अमेरिकी डॉलर तक के बांड्ज़ भी विदेशी बाज़ारों में जारी किया जाते हैं तो इससे देश की अर्थव्यवस्था पर कोई विपरीत प्रभाव पड़ने की सम्भावना लगभग शून्य ही होनी चाहिए। अतः भारत सरकार को विदेशी मुद्रा में सरकारी बांड्ज़ विदेशी बाज़ारों में जारी करने के बारे में एक बार पुनः गम्भीरता से विचार किए जाने की आज आवश्यकता है।