सुप्रीम कोर्ट से जम्मू-कश्मीर में हिरासत में लिए गए रोहिंग्या को तुरंत रिहा करने और उन्हें प्रत्यर्पित करने के आदेश को लागू करने से केंद्र सरकार को रोकने की गुहार लगाई गई है। इस संबंध में पिछले साल कोर्ट की अवमानना मामले में दोषी पाए गए वकील प्रशांत भूषण के माध्यम से गुरुवार (मार्च 11, 2021) को एक याचिका दायर की गई। इस याचिका में जम्मू में हिरासत में लिए गए अवैध रोहिंग्या प्रवासियों को रिहा करने के लिए तत्काल हस्तक्षेप की माँग की गई है। कथित तौर पर यह याचिका रोहिंग्या मोहम्मद सलीमुल्ला ने दायर की है और एडवोकेट चेरिल डीसूजा (Cheryl Dsouza) ने इसे तैयार किया है।
आखिर प्रशांत को उन रोहिंग्यों से, जिन्हे कोई मुस्लिम देश तक अपने देश में रखने को तैयार नहीं, क्या लगाव है? क्या वह अवैध रूप से किसी भी देश में रह सकते हैं? यदि नहीं, फिर किस आधार पर रोहिंग्यों के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटा रहे हो? प्रशांत भूषण उन वकीलों में से है, जो आतंकवादियों की फांसी रुकवाने आधी रात को कोर्ट खुलवाते हैं?
रिपोर्ट्स के अनुसार, बताया गया है कि यह जनहित याचिका भारत में रह रहे अवैध प्रवासियों (याचिका की भाषा में शरणार्थी) को प्रत्यर्पित करने से बचाने के लिए दायर की गई है। यह भी कहा गया है कि संविधान के अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 21 के साथ ही अनुच्छेद 51 (सी) के तहत प्राप्त अधिकारों की रक्षा के लिए यह याचिका दाखिल की गई है।
याचिका में सुप्रीम कोर्ट से गुजारिश की गई है कि वह संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त (UNHCR) को इस मामले में हस्तक्षेप करने के निर्देश जारी करें। साथ ही शिविरों में रखे गए रोहिंग्या की सुरक्षा जरूरतों को पूरा करने की माँग की गई है।
याचिका में कहा गया है कि एक सरकारी सर्कुलर की वजह से रोहिंग्या खतरे का सामना करना पड़ रहा है। यह सर्कुलर अवैध रोहिंग्या प्रवासियों की पहचान का निर्देश अधिकारियों को निर्देश देता है। शीर्ष अदालत में लंबित एक मामले में हस्तक्षेप अर्जी दायर कर गृह मंत्रालय को निर्देश देने का आग्रह किया है कि वह अनौपचारिक शिविरों में रह रहे रोहिंग्याओं के लिए विदेशी क्षेत्रीय पंजीकरण कार्यालय (एफआरआरओ) के जरिए तीव्र गति से शरणार्थी पहचान-पत्र जारी करें।
याचिका कहती है कि भारत में शरणार्थियों के लिए कानून न होने से रोहिंग्याओं को अवैध प्रवासी माना जाता है, जिन्हें फॉरेनर्स एक्ट 1946 और फॉरेनर्स ऑर्डर 1948 के तहत कभी भी भेजा जा सकता है। इसमें यह भी कहा गया है कि मुस्लिम पहचान की वजह से सरकार रोहिंग्या के साथ भेदभाव करती है।
2017 में दायर हुई थी याचिका
इसी मामले में एक आवेदन साल 2017 में दायर किया गया था। उसमें रोहिंग्या सहित अन्य शरणार्थियों के निर्वासन के खिलाफ अधिकार की सुरक्षा की माँग की गई थी। याचिका में कहा गया था कि सरकार रोहिंग्या लोगों म्यांमार प्रत्यर्पित करने का प्रस्ताव देकर उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने में विफल रही है।
जम्मू-कश्मीर में रह रहे अवैध प्रवासियों की पहचान करने के लिए चल रही कवायद के तहत, कई रोहिंग्याओं को विदेशी अधिनियम की धारा 3(2) ई के तहत होल्डिंग सेंटर भेजा गया था। इनके पास पासपोर्ट अधिनियम की धारा 3 के तहत आवश्यकतानुसार वैध यात्रा के दस्तावेज नहीं थे।