मजहब ही तो सिखाता है आपस में बैर रखना , अध्याय – 7 ( 2)

मन्दिर के लिए हिन्दुओं ने दिए हैं अप्रतिम बलिदान

  हिन्दुओं के प्रति बाबर भी हर मुस्लिम बादशाह की भांति कट्टर और निर्दयी था। उसने अपने पहले आक्रमण में ही बाजौर में 3000 से भी अधिक निर्दोष और निरपराध हिन्दुओं की हत्या कर दी थी। यहाँ तक कहा जाता है कि उसने इस युद्ध के दौरान एक पुश्ते पर मृत हिन्दुओं के सिरों को काटकर उनका स्तम्भ बनवा दिया था। इसी प्रकार के नरसंहार उसने ‘भेरा’ पर आक्रमण के समय भी किए थे।
बाबर ने जब सैयदपुर, लाहौर तथा पानीपत पर आक्रमण किया तो बूढ़े, बच्चे महिलाओं का जमकर नरसंहार किया था। कहते हैं कि गुरुनानक जी ने बाबर के इन वीभत्स अत्याचारों को अपनी आंखों से देखा था। उन्होंने इन आक्रमणों को ‘पाप की बारात’ और बाबर को ‘यमराज’ की संज्ञा दी थी।

संस्कृति रक्षार्थ बलिदान जिसने हैं दिए ,
भारत भूमि के लिए प्राण जिसने हैं दिए।
इतिहास के वे लाल अमूल्य मोती भी खरे,
प्रणाम उसको ही करें लाल अपने खो दिये।।

बाबर ने मुसलमानों की सहानुभूति पाने के लिए हिन्दुओं का नरसंहार ही नहीं किया, अपितु अनेक हिन्दू धर्मस्थलों को भी नष्ट किया। उसी के शासनकाल में सम्भल में एक मन्दिर को गिराकर मस्जिद का निर्माण करवाया गया। उसके सदर शेख जैना ने चन्देरी के अनेक मन्दिरों को नष्ट किया। यही नहीं ग्वालियर के निकट उरवा में अनेक जैन मन्दिरों को भी नष्ट किया था।

हिन्दुओं के प्रति हुमायूँ व अकबर का दृष्टिकोण

जो सोच हिन्दुओं के प्रति बाबर की रही ,वही उसके पुत्र हुमायूँ की भी रही। यद्यपि वह स्थायी रूप से कभी शासन करने में सफल नहीं हो पाया, परन्तु जब भी और जितनी देर भी वह बादशाह रहा उतनी देर उसने हिन्दुओं के प्रति वैसे ही उत्पीड़नात्मक कार्यों को जारी रखा जैसे उसके पिता ने जारी रखे थे।
हुमायूँ के पश्चात उसके पुत्र अकबर ने राज्यसिंहासन संभाला । उसके शासनकाल को तो वामपंथी और कांग्रेसी इतिहासकारों ने भारत के लिए बहुत ही अधिक शुभ माना है । यद्यपि वह भी हिन्दुओं के प्रति कभी उदार नहीं रहा। उसके शासनकाल में हिन्दुओं के उत्पीड़न का क्रम पूर्ववत जारी रहा।
अकबर के विषय में उसके समकालीन इतिहास लेखक अहमद यादगार का कहना है कि :-
“बैरम खाँ ने निहत्थे और बुरी तरह घायल हिन्दू राजा हेमू के हाथ पैर बाँध दिये और उसे नौजवान शहजादे के पास ले गया और बोला, आप अपने पवित्र हाथों से इस काफिर का कत्ल कर दें और”गाज़ी”की उपाधि कुबूल करें, और शहजादे ने उसका सिर उसके अपवित्र धड़ से अलग कर दिया।” (नवम्बर, 5 AD 1556)
(तारीख-ई-अफगान,अहमद यादगार,अनुवाद एलियट और डाउसन, खण्ड VI, पृष्ठ 65- 66)
बात करके इस कथन से स्पष्ट है कि अकबर ने गाजी का पद प्राप्त करने के लिए ही हेमू का वध अपने हाथों किया था ।उसने अपने आपको इस बात के लिए बहुत ही अधिक सौभाग्यशाली माना था कि वह 14 वर्ष की अवस्था में ही गाजी हो गया था।
अबुल फजल ने आगे लिखा – ”हेमू के पिता को जीवित ले आया गया और नासिर-उल-मलिक के सामने पेश किया गया। जिसने उसे इस्लाम कबूल करने का आदेश दिया, किन्तु उस वृद्ध पुरुष ने उत्तर दिया, ”मैंने अस्सी वर्ष तक अपने ईश्वर की पूजा की है; मै अपने धर्म को कैसे त्याग सकता हूँ?*
मौलाना परी मोहम्मद ने उसके उत्तर को अनसुना कर अपनी तलवार से उसका सर काट दिया।”
(अकबरनामा, अबुल फजल : एलियट और डाउसन, पृष्ठ 21)

बनवा दी थी हिन्दुओं के कटे सिरों की ऊंची मीनार

इस विजय पर अपनी प्रसन्नता व्यक्त करते हुए अकबर ने कटे हुए सिरों से एक ऊंची मीनार बनवा दी थी । जिससे कि साधारण हिन्दुओं के मन में उसके शासन का भय व्याप्त हो जाए। यदि अकबर उदार और लोकतांत्रिक मूल्यों में आस्था रखने वाला शासक था तो उसे ऐसा कार्य कदापि नहीं करना चाहिए था। इसके विपरीत वह अपनी प्रजा के सभी लोगों को समान रूप से देखता और उन्हें समान रूप से न्याय देने की नीति पर विचार करता ,परन्तु उसने ऐसा नहीं किया।

चोटी जनेऊ हितार्थ शीश अपने कटवा दिए,
अकबर ने जिनके मुंड से मीनार थे चिनवा दिए ।
वे पूर्वज हमारे महान थे और महान उनकी सोच थी, उनके किए पर गर्व हमको आजाद हम करवा दिए ।।

इसके अतिरिक्त अकबर के बारे में यह भी सत्य है कि उसने 02 सितम्बर 1573 को अहमदाबाद में 2000 हिन्दुओं के सिर काटकर अब तक की सबसे ऊँची सिरों की मीनार बनवायी। इस प्रकार हिन्दुओं को आतंकित करने और उनके सिरों से मीनार बनवाने का शौक अकबर को कुछ वैसे ही चढ़ गया था, जैसे किसी शराबी को हर शाम को जाम टकराने का शौक चढ़ जाता है। लोक कल्याणकारी शासन की नीतियों में विश्वास रखने वाले और प्रजाहितचिंतक शासक के लिए यह सारी बातें शोभनीय नहीं होतीं। इनको वही शासक करता है या कर सकता है जो मजहबी दृष्टिकोण से लोगों में अंतर करके देखने का अभ्यासी हो।
अकबर को महान बताने वालों को अकबर के ‘महान’ कार्यों पर विचार करते हुए उसके ‘अकबरनामा’ को अवश्य पढ़ना चाहिए । ‘अकबरनामा’ के अनुसार 3 मार्च 1575 को अकबर ने बंगाल विजय के दौरान इतने सैनिकों और नागरिकों की हत्या करवायी कि उससे कटे सिरों की आठ मीनारें बनायी गयीं। 1575 तक के आते – आते अकबर के शासन काल को भी भारत वर्ष में 20 वर्ष हो चुके थे। यदि अकबर की मानसिकता अपने सभी प्रजाजनों के मध्य न्याय करने की रही होती तो वह कम से कम 20 वर्ष तक शासन करने के उपरान्त तो सम्भल सकता था, परन्तु वह नहीं संभला और निरन्तर हिन्दुओं के कटे हुए सिरों की मीनार बनाने में आनंद लेता रहा। माना जा सकता है कि अकबर अपने निजी विचारों में उदार रहा हो, परन्तु उसकी हिन्दुओं के प्रति नीति तो उसके बारे में यही स्पष्ट धारणा बनाने के लिए हमें प्रेरित करती है कि वह मजहबपरस्ती का शिकार था और मजहबी दृष्टिकोण के कारण ही वह हिन्दुओं से घृणा करता था।

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत
एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष : भारतीय इतिहास पुनर्लेखन समिति

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