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बिखरे मोती

बिखरे मोती : अशेष की जो विभूतियां, जाने सिर्फ अशेष

अशेष की जो विभूतियां,
जाने सिर्फ अशेष

अक्षत मन से सिमरले,
परम – पिता का नाम।
आत्मा का भोजन भजन,
लिया करो सुबह-शाम॥1448॥

अक्षत मन – पूरा मन, पूर्ण मनोयोग

भक्ति में हो प्रेम-रस,
साधक होवै लीन।
अवगाहन हरि में करे।
जैसे जल में मीन ॥1449॥

अवगाहन – विचरण

रूहानी – दौलत के छिपे ,
मनुआ में भण्डार।
रसों के राजा प्रेम – रस,
कि बहे पावन धार॥1450॥

अशेष की जो विभूतियां,
जाने सिर्फ अशेष।
ब्रह्मकमल की गन्ध से,
रोमहर्ष दरवेश॥1451॥

अशेष – सम्पूर्ण अर्थात् परमपिता परमात्मा , विभूतियां – विलक्षणता , ब्रह्मकमल – एक पौधे का नाम, जिस पर 12 वर्ष बाद रात के 12 बजे एक बड़ा पुष्प 2 घंटे के लिए खिलता है किंतु उसकी भीनी – भीनी मनोहारी सुगन्ध सूर्यउदय तक रहती है,जो वातावरण में मादकता का अनुपम रस घोल देती हैं।
रोमहर्ष – रोमांचित होना, भावविभोर होना,प्रसन्नता और आश्चर्य के कारण आंखों में आंसू आना।
दरवेश – सन्त, सिद्धपुरुष

व्याख्या:- परमपिता परमात्मा को ब्रहमाण्डनायक भी कहा गया है क्योंकि इस विशाल ब्रहमाण्ड का उत्पन्नकर्त्ता ,धारक और संचालनकर्ता वही है। प्रकृति शब्द -प्र+ कृति से मिलकर बना है।प्र का अर्थ है उत्कृष्ट और कृति का अर्थ है – रचना, अर्थात परमपिता परमात्मा की उत्कृष्टतम रचना। प्रकृति तो जड़ है किंतु पुरुष अर्थात् परमपिता की शक्ति के संयोग से यह चेतन परिलक्षित होती है। प्रकृति से परे परमात्मा है,जो प्रकृति के शाश्वत नियम बना कर बैठा हुआ है – जैसे हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के परमाणुओं को एक निश्चित अनुपात में मिलाओ तो पानी बन जाएगा। बड़े-बड़े वैज्ञानिकों की तो बात छोड़ो ऋषि, महर्षि और देवता भी परम पिता की इस उत्कृष्टतम रचना का पार नहीं पा सके।अंत में उन्होंने नेति – नेति कह कर संतोष किया।नेति से अभीप्रया है – न + इति अर्थात् जिसका कोई अन्त नही हैं।
उदाहरण के लिए – बीज से पौधा पैदा होता है।।जैसे ही गेहूं इत्यादि का बीज पौधा बनता है,तो बीच मिट्टी में मिल जाता है। बीज का अस्तित्व समाप्त हो जाता है जबकि यह दृश्यमान संसार उस अशेष से उत्पन्न हुआ है,जो अपने आप में पूर्ण है।जो सबको उत्पन्न कर के बीज की भांति मिटता नहीं अपितु उसका अस्तित्व सर्वदा विद्यमान रहता है। इसलिए वह अशेष है,पूर्ण है।
जो कण – कण में व्याप्त है, जिसे वेदों ने इसलिए ‘ विभू ‘ कहां है। उसने इतने बड़े लोक – लोकान्तरों और विराट ब्रह्माण्ड को कैसे धारण किया हुआ है? यह यक्षप्रश्न आज तक किसी से नहीं सुलझा है। प्रकृति में उसकी विभूतियां एक नहीं अनेक है।
अतः प्रभु की लीला अपरंपार है।

प्रोफेसर विजेंद्र सिंह आर्य
मुख्य संरक्षक : उगता भारत
क्रमश:

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