अनिरुद्ध जोशी
रूसी, जर्मन, जापानी, अमेरिकी सक्रिय रूप से हमारी पवित्र पुस्तकों से नई चीजों पर शोध कर रहे हैं और उन्हें वापस दुनिया के सामने अपने नाम से रख रहे हैं। दुनिया के कई देशों में एक या अधिक संस्कृत विश्वविद्यालय संस्कृत और वेद के बारे में अध्ययन और नई प्रौद्योगिकी प्राप्त करने के लिए जुटे हैं। हमारे देश में तो इंग्लिश बोलना शान की बात मानी जाती है। इंग्लिश नहीं आने पर लोग आत्मग्लानि अनुभव करते हैं जिस कारण जगह-जगह इंग्लिश स्पीकिंग कोर्स चल रहे हैं।
संस्कृत विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है तथा समस्त भारतीय भाषाओं की जननी है। ‘संस्कृत’ का शाब्दिक अर्थ है परिपूर्ण भाषा। संस्कृत पूर्णतया वैज्ञानिक तथा सक्षम भाषा है। संस्कृत भाषा के व्याकरण में विश्वभर के भाषा विशेषज्ञों का ध्यानाकर्षण किया है। उसके व्याकरण को देखकर ही अन्य भाषाओं के व्याकरण विकसित हुए हैं। आधुनिक वैज्ञानिकों के अनुसार यह भाषा कम्प्यूटर के उपयोग के लिए सर्वोत्तम भाषा है, लेकिन इस भाषा को वे कभी भी कम्प्यूटर की भाषा नहीं बनने देंगे।
कहते हैं कि किसी देश की जाति, संस्कृति, धर्म और इतिहास को नष्ट करना है तो उसकी भाषा को सबसे पहले नष्ट किया जाए। मात्र 3,000 वर्ष पूर्व तक भारत में संस्कृत बोली जाती थी तभी तो ईसा से 500 वर्ष पूर्व पाणिणी ने दुनिया का पहला व्याकरण ग्रंथ लिखा था, जो संस्कृत का था। इसका नाम ‘अष्टाध्यायी’ है।
1100 ईसवीं तक संस्कृत समस्त भारत की राजभाषा के रूप सें जोड़ने की प्रमुख कड़ी थी। अरबों और अंग्रेजों ने सबसे पहले ही इसी भाषा को खत्म किया और भारत पर अरबी और रोमन लिपि और भाषा को लादा गया। भारत की कई भाषाओं की लिपि देवनागरी थी लेकिन उसे बदलकर अरबी कर दिया गया, तो कुछ को नष्ट ही कर दिया गया। वर्तमान में हिन्दी की लिपि को रोमन में बदलने का छद्म कार्य शुरू हो चला है।
यदि संस्कृत व्यापक पैमाने पर नहीं बोली जाती तो व्याकरण लिखने की आवश्यकता ही नहीं होती। भारत में आज जितनी भी भाषाएं बोली जाती है वे सभी संस्कृत से जन्मी हैं जिनका इतिहास मात्र 1500 से 2000 वर्ष पुराना है। उन सभी से पहले संस्कृत, प्राकृत, पाली, अर्धमागधि आदि भाषाओं का प्रचलन था।
आदिकाल में भाषा नहीं थी, ध्वनि संकेत थे। ध्वनि संकेतों से मानव समझता था कि कोई व्यक्ति क्या कहना चाहता है। फिर चित्रलिपियों का प्रयोग किया जाने लगा। प्रारंभिक मनुष्यों ने भाषा की रचना अपनी विशेष बौद्धिक प्रतिभा के बल पर नहीं की। उन्होंने अपने-अपने ध्वनि संकेतों को चित्र रूप और फिर विशेष आकृति के रूप देना शुरू किया। इस तरह भाषा का क्रमश: विकास हुआ। इसमें किसी भी प्रकार की बौद्धिक और वैज्ञानिक क्षमता का उपयोग नहीं किया गया।
संस्कृत ऐसी भाषा नहीं है जिसकी रचना की गई हो। इस भाषा की खोज की गई है। भारत में पहली बार उन लोगों ने सोचा-समझा और जाना कि मानव के पास अपनी कोई एक लिपियुक्त और मुकम्मल भाषा होना चाहिए जिसके माध्यम से वह संप्रेषण और विचार-विमर्श ही नहीं कर सके बल्कि जिसका कोई वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक आधार भी हो। ये वे लोग थे, जो हिमालय के आसपास रहते थे।
उन्होंने ऐसी भाषा को बोलना शुरू किया, जो प्रकृतिसम्मत थी। पहली दफे सोच-समझकर किसी भाषा का आविष्कार हुआ था तो वो संस्कृत थी। चूंकि इसका आविष्कार करने वाले भारतीय ऋषि थे तो इसे देववाणी कहा जाने लगा। संस्कृत को देवनागरी में लिखा जाता है।
दुनिया की सभी भाषाओं का विकास मानव, पशु-पक्षियों द्वारा शुरुआत में बोले गए ध्वनि संकेतों के आधार पर हुआ अर्थात लोगों ने भाषाओं का विकास किया और उसे अपने देश और धर्म की भाषा बनाया। लेकिन संस्कृत किसी देश या धर्म की भाषा नहीं यह अपौरूष भाषा है, क्योंकि इसकी उत्पत्ति और विकास ब्रह्मांड की ध्वनियों को सुन-जानकर हुआ। यह आम लोगों द्वारा बोली गई ध्वनियां नहीं हैं।
धरती और ब्रह्मांड में गति सर्वत्र है। चाहे वस्तु स्थिर हो या गतिमान। गति होगी तो ध्वनि निकलेगी। ध्वनि होगी तो शब्द निकलेगा। देवों और ऋषियों ने उक्त ध्वनियों और शब्दों को पकड़कर उसे लिपि में बांधा और उसके महत्व और प्रभाव को समझा।
संस्कृत विद्वानों के अनुसार सौर परिवार के प्रमुख सूर्य के एक ओर से 9 रश्मियां निकलती हैं और ये चारों ओर से अलग-अलग निकलती हैं। इस तरह कुल 36 रश्मियां हो गईं। इन 36 रश्मियों के ध्वनियों पर संस्कृत के 36 स्वर बने। इस तरह सूर्य की जब 9 रश्मियां पृथ्वी पर आती हैं तो उनकी पृथ्वी के 8 वसुओं से टक्कर होती है। सूर्य की 9 रश्मियां और पृथ्वी के 8 वसुओं के आपस में टकराने से जो 72 प्रकार की ध्वनियां उत्पन्न हुईं, वे संस्कृत के 72 व्यंजन बन गईं। इस प्रकार ब्रह्मांड में निकलने वाली कुल 108 ध्वनियां पर संस्कृत की वर्ण माला आधारित हैं।
ब्रह्मांड की ध्वनियों के रहस्य के बारे में वेदों से ही जानकारी मिलती है। इन ध्वनियों को अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के संगठन नासा और इसरो ने भी माना है।
कहा जाता है कि अरबी भाषा को कंठ से और अंग्रेजी को केवल होंठों से ही बोला जाता है किंतु संस्कृत में वर्णमाला को स्वरों की आवाज के आधार पर कवर्ग, चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग, पवर्ग, अंत:स्थ और ऊष्म वर्गों में बांटा गया है।