1 तब्लीगी जमात लगभग सौ साल से काम कर रही है। इसका शाब्दिक अर्थ है प्रचार। इस जमात का संस्थापक मौलाना इलियास था।
2इसका उद्देश्य मुसलमानों को “पक्का” मुसलमान बनाना।
3 तब्लीग (प्रचार) की जमात मुसलमानों के बीच हरेक गैर-इस्लामी चीज छोड़ने का प्रचार करती है – खान-पान, जीवन-शैली, पोशाक, मान्यताएं, संसर्ग, भाषा, आदि सब कुछ।
4 मौलाना वहीदुद्दीन खान की पुस्तक ‘तब्लीगी मूवमेंट’ से इसकी प्रामाणिक जानकारी मिलती है।
5 दिल्ली के आसपास (मेवात) के मुसलमान सदियों बाद भी बहुत चीजों में हिंदू रंगत लिए हुए थे। वे गोमांस नहीं खाते थे, चचेरी बहनों से शादी नहीं करते थे, कुंडल, कड़ा धारण करते थे, चोटी रखते थे। यहां तक कि अपना नाम भी हिंदुओं जैसे रखते थे। हिंदू त्योहार मनाते और कुछ तो कलमा पढ़ना भी नहीं जानते थे। वास्तव में मेवाती मुसलमान अपनी परंपराओं में आधे हिंदू थे। इसी से क्षुब्ध होकर मौलाना इलियास ने मुसलमानों को कथित तौर पर “सही राह” पर लाना अर्थात खास पोशाक, खान-पान, खास दाढ़ी, बोल-चाल, आदि अपनाना।
6 तब्लीगी मिशन है: हिंदुओं के साथ मिल-जुल कर रहने वाले मुसलमानों को पूरी तरह अलग करना।
7 आर्य समाज के शुद्धि प्रयासों से नई समस्याएं पैदा हुईं, जो मुसलमानों को अपने पुराने धर्म में वापस ला रहा था। यही स्वामी श्रद्धानंद पर जमात के कोप के कारण का भी संकेत है। स्वामी श्रद्धानंद की हत्या के बाद ही तब्लीगी जमात पहली बार प्रमुखता से (1927) समाचारों में आई।
8 इलियास के बाद उनके बेटे मुहम्मद यूसुफ ने पूरे भारत और विदेश यात्राएं कीं। इसके असर से अरब और अन्य देशों से भी तब्लीगी मुसलमान निजामुद्दीन आने लगे। इस पर हैरानी नहीं कि हाल में उसके मरकज यानी मुख्यालय से मलेशिया, इंडोनेशिया आदि देशों के कई मौलाना मिले।
9 मौलाना यूसुफ ने अपनी मृत्यु से तीन दिन पहले रावलपिंडी में (1965) में कहा था, ”उम्मत की स्थापना अपने परिवार, दल, राष्ट्र, देश, भाषा, आदि की महान कुर्बानियां देकर ही हुई थी। याद रखो, ‘मेरा देश’, ‘मेरा क्षेत्र’, ‘मेरे लोग’, आदि चीजें एकता तोड़ने की ओर जाती हैं। इन सबको अल्लाह सबसे ज्यादा नामंजूर करता है। राष्ट्र और अन्य समूहों के ऊपर इस्लाम की सामूहिकता सर्वोच्च रहनी चाहिए।”
10 तब्लीग का उद्देश्य राजनीतिक है। इसके प्रमुख की ‘अमीर’ उपाधि भी इसका संकेत है, जो सैनिक-राजनीतिक कमांडर होता था। उसकी टोलियों की यात्रा कोई शिक्षक-दल नहीं, बल्कि गश्ती दस्ते जैसी होती हैं ताकि किसी इलाके की निगरानी कर उसके हिसाब से रणनीति बनाई जा सके।
- डॉ० शंकर शरण (१४ अप्रैल २०२०) दैनिक जागरण के लेख का सार।