मजहब ही तो सिखाता है आपस में बैर रखना, अध्याय – 6 (2)
तैमूर का उद्देश्य भी हिन्दुत्व का विनाश ही था
तैमूर का जीवनीकार ‘मुलफुजद-ए-तैमूरी’ में तैमूर को उद्धृत करते हुए हमें बताता है कि उसने दिल्ली के लिए प्रस्थान करने से पूर्व कह दिया था-‘‘मैंने तेहाना से अपना माल असबाब भेज दिया था। मैंने जंगलों और पहाड़ों के रास्ते सफर किया। मैंने 2000 शैतान जैसे जगहों की हत्या की, उनकी पत्नियों और बच्चों को बंदी बनाया, और उनके सारे धन तथा गायों को लूट लिया। समाना, कैथल और असपंदी के सारे लोग धर्मविरोधी बुतपरस्त, काफिर और नास्तिक हैं जो अपने-अपने घरों में आग लगाकर अपने बच्चों सहित दिल्ली भाग गये, और सारा देश सूना कर गये।’’
एक क्रूर दरिंदा भारत की छाती पर था आ बैठा।
हिन्द की अजमत को जिसने बेशर्मी से था लूटा।।
उसके निन्दित कर्मों से इतिहास छुपाता है चेहरा। जिसने मानवता के ऊपर बिठा दिया था पहरा।।
तैमूर लंग के आक्रमण का मूलोद्देश्य हिन्दुत्व का विनाश करना था। गाजी बनने का चाव था और दीनी खिदमत में उसकी अगाध निष्ठा थी। उसे उलेमा और सूफियों ने परामर्श दिया-‘‘इस्लाम को मानने वाले सुल्तान का और उन सभी लोगों का, जो मानते हैं, कि अल्लाह के अतिरिक्त अन्य कोई ईश्वर नही है और मुहम्मद अल्लाह का पैगंबर है, यह परम कर्त्तव्य है कि वे इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए युद्घ करेंगे, उनका पंथ सुरक्षित रह सके, और उनकी विधि व्यवस्था सशक्त रही आवे, वह अधिकाधिक परिश्रम कर अपने पंथ के शत्रुओं का दमन कर सकें। विद्वान लोगों के ये आनंददायक शब्द जैसे ही सरदारों के कानों में पहुंचे, उनके हृदय हिन्दुस्तान में धर्म युद्घ करने के लिए, स्थिर हो गये और अपने घुटनों पर झुक कर, उन्होंने इस विजय वाले अध्याय को दोहराया।’’ (संदर्भ : तैमूर की जीवनी ‘मुलफुजात-ए-तैमूर’ एलियट एण्ड डाउसन खण्ड तृतीय पृष्ठ 397)।
इस्लामिक आक्रमणकारियों के बारे में दिए गए ऐसे उदाहरणों से पता चलता है कि उस समय इस्लामिक आक्रमणकारी और उनकी सेना हिन्दुस्तान की ओर वैसे ही भागती या लपकती थी जैसे कोई किसान अपनी लहलहाती फसल को चाव से काटने के लिए खेत की ओर जा रहा हो । वास्तव में उस समय हिन्दू इन मुस्लिम आक्रमणकारियों के लिए एक फसल जैसे ही हो गए थे।
काट दिए गए दस हजार हिन्दू
भटनेर में हिन्दुओं ने तैमूर की सेना का सामना किया। धर्म और स्वतन्त्रता की रक्षार्थ हिन्दुओं ने जमकर संघर्ष किया, परन्तु विजयश्री नही मिली, तो उन लोगों ने स्वतन्त्रता की बलिवेदी पर अपना सिर मौन रहकर चढ़ा दिया। तैमूर की उक्त जीवनी के पृष्ठ 421-422 पर लिखा है-‘‘इस्लाम के योद्घाओं ने हिन्दुओं पर चारों ओर से आक्रमण कर दिया और तब तक युद्घ करते रहे जब तक अल्लाह की कृपा से मेरे सैनिकों के प्रयासों को विजय की किरण नही दीख गयी। बहुत थोड़े समय में ही किले के सभी व्यक्ति तलवार के घाट उतार दिये गये और समय की बहुत छोटी अवधि में ही दस हजार हिन्दू लोगों के सिर काट दिये गये। अविश्वासियों के रक्त से इस्लाम की तलवार अच्छी तरह धुल गयी, और सारा खजाना सैनिकों की लूट का माल बन गया।’’
काटे हजारों हिन्दू और जी भरके की थी लूटपाट।
ढेर लगा दिए शीशों के जमकर की थी मारकाट।।
जहाँ मुसलमानों के नायक या आदर्श व्यक्तित्व की सोच ऐसी हो कि हिन्दुओं के रक्त से धरती धुल गई और हिन्दुओं के खजाने को सैनिकों ने लूट का माल बना दिया’- वहाँ पर यह कैसे माना जा सकता है कि वे लोग हिन्दू समाज के साथ समन्वय बनाकर रहने की भावना में विश्वास करते हैं ? जिनके आदर्श नायकों की सोच घृणित हो उनके अनुयायियों की सोच का घृणित होना भी अनिवार्य है। आज जिन लोगों को हम हिन्दुओं के धन माल को लूटते हुए या उनकी बहन बेटियों के साथ अत्याचार करते हुए या हिन्दुस्तान का इस्लामीकरण होने पर हिन्दुओं के घर व जमीन जायदाद उनके हो जाने के सपने देखते हैं या ऐसे ही नारे लगाते या भाषण देते दीखते हैं, उनके बारे में हमें ये समझ लेना चाहिए कि ये सारे के सारे लोग तैमूर लंग के ही मानस पुत्र हैं। इसलिए यह नहीं मानना चाहिए कि जो लोग तैमूर को अपना आदर्श मानते हैं उनकी सोच तैमूर से कहीं अलग होगी।
लूट ली गईं हजारों हिन्दू महिलाएं
उसी पुस्तक में आगे उल्लेख है कि-‘‘जब मैंने सरस्वती नदी के विषय में पूछा, तो मुझे बताया गया कि उस स्थान के लोग इस्लाम के पंथ से अनभिज्ञ थे। मैंने अपनी सैनिक टुकड़ी उनका पीछा करने भेजी और एक महान (भयंकर) युद्घ हुआ। सभी हिन्दुओं का वध कर दिया गया, उनकी महिलाओं तथा बच्चों को बंदी बना लिया गया और उनकी संपत्तियां और वस्तुएं मुसलमानों के लिए लूट का माल हो गयीं। सैनिक अपने साथ कई हजार हिन्दू महिलाओं और बच्चों को साथ ले लौट आये। हिन्दू महिलाओं और बच्चों को मुसलमान बना लिया गया।’’
जाट भारतवर्ष की एक क्षत्रिय जाति है। इसका एक गौरवपूर्ण इतिहास है। कितने ही स्थलों पर जाट रणबांकुरों ने अपनी वीरता का प्रदर्शन कर देश -धर्म की रक्षा की है। भारत की क्षत्रिय जातियों में जाटों का महत्वपूर्ण स्थान है। इन्होंने तैमूर के काल में भी अपना शौर्य प्रदर्शन किया, और शत्रु के जमकर दांत खट्टे किये। तैमूर ने अपनी जीवनी में लिखा है-‘‘मेरे ध्यान में लाया गया था कि ये उत्पाती जाट चींटी की भांति असंख्य हैं। हिन्दुस्तान पर आक्रमण करने का मेरा महान उद्देश्य अविश्वासी हैं। हिन्दुओं के विरूद्घ धर्मयुद्घ करना था। मुझे लगने लगा कि इन जाटों का पराभव (पूर्णत: विनाश) कर देना मेरे लिए आवश्यक है। मैं जंगलों में और बीहड़ों में घुस गया, और दैत्याकार दो हजार जाटों का मैंने वध कर दिया….उसी दिन सैयदों, विश्वासियों का एक दल जो वहीं निकट ही रहता था, बड़ी विनम्रता और शालीनता से मुझसे भेंट करने आया और उनका बड़ी शान से स्वागत किया गया। मैंने उनके सरदार का बड़े सम्मान से स्वागत किया।’’ (वही पुस्तक पृष्ठ 429)
एक लाख हिन्दुओं की करायी थी हत्या
तैमूर की उक्त जीवनी में उल्लेख है-‘‘उन्तीस तारीख को मैं पुन: अग्रसर हुआ और जमुना नदी पर पहुंच गया। नदी के दूसरे किनारे पर लोनी का दुर्ग था। लोनी दुर्ग को तुरन्त विजय कर लेने का मैंने निर्णय किया। अनेकों राजपूतों ने अपनी पत्नियों तथा बच्चों को घरों में बन्द कर आग लगा दी, और तब वे युद्घ क्षेत्र में आ गये। शैतान की भांति (अर्थात एक वीर योद्घा की भांति) लड़े और अन्त में मार दिये गये। दुर्ग रक्षक दल के अन्य लोग भी लड़े और कत्ल कर दिये गये, जबकि बहुत से लोग बंदी बना लिये गये। दूसरे दिन मैंने आदेश दिया कि मुसलमान बंदियों को पृथक कर दिया जाए, और उन्हें बचा लिया जाए, किन्तु गैर मुसलमानों को धर्मांतरणकारी तलवार द्वारा कत्ल कर दिया जाए। मैंने यह आदेश भी दिया कि मुसलमानों के घरों को सुरक्षित रखा जाए, किन्तु अन्य सभी घरों को लूट लिया जाए और विनष्ट कर दिया जाए।’’ (‘एलियट और डाउसन’ खण्ड तृतीय पृष्ठ 432-33)
यहां तैमूर ने एक लाख हिन्दुओं का एक दिन में ही वध करा दिया था। वध के उपरान्त भी उन सबके कटे हुए सिरों को एक साथ एक स्थान पर एकत्र कराके उनका टीला बनवा दिया था। यह कार्य तैमूर ने लोनी के ग्रामीण क्षेत्र के लोगों की हत्या करके पूर्ण किया था। जिसके परिणाम स्वरूप दूर-दूर तक लोगों में आतंक और भय व्याप्त हो गया था। चारों ओर दुर्गंध फैल गयी थी और उस दुर्गंध ने महामारी का रूप ले लिया था। इसलिए बहुत से लोगों ने अपने घर बार छोड़ दूर चले जाने का निर्णय ले लिया था। आप तनिक कल्पना करें कि जो हिन्दू लोग अपने मुर्दों को भी यह सोचकर तुरन्त चिता की भेंट चढ़ा देते हैं कि इनके रहने से दुर्गंध फैलेगी और पर्यावरण प्रदूषित होगा, वायु विषैली बनेगी और उसका जीवन व स्वास्थ्य पर घातक प्रभाव पड़ेगा, वे लोग एक लाख लाशों से निकलती हुई दुर्गंध को कैसे सहन कर पाए होंगे ? और एक लाख लाशों की दुर्गंध कितनी दूर -दूर तक फैल गई होगी? सचमुच वह कितना आतंकपूर्ण दृश्य रहा होगा?
पाशविकता की भेंट चढ़े लाख-लाख थे लोग यहाँ।
दानवता सिर चढ बोल रही हुआ धर्म का ढोंग यहाँ।।
अपनी जीवनी ‘तुजुके तैमुरी’ को तैमूरलंग कुरान की इस आयत से ही प्रारम्भ करता है ‘ऐ पैगम्बर काफिरों और विश्वास न लाने वालों से युद्ध करो और उन पर सखती बर्तों।’ वह आगे भारत पर अपने आक्रमण का कारण बताते हुए लिखता है-
हिन्दुस्तान पर आक्रमण करने का मेरा ध्येय काफिर हिन्दुओं के विरुद्ध धार्मिक युद्ध करना, आगे वर्णित है (जिससे) इस्लाम की सेना को भी हिन्दुओं की दौलत और मूल्यवान वस्तुएँ मिल जायें।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत
एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष : भारतीय इतिहास पुनर्लेखन समिति