बंगाल चुनाव : आईएसएफ से गठबंधन पर कांग्रेस में मचा घमासान

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पश्चिम बंगाल में 8 चरणों में होने वाले विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान हो चुका है। लेकिन, कांग्रेस की भीतरी लड़ाई थमती नहीं दिख रही। विधानसभा में टीएमसी और बीजेपी को टक्कर देने का दम भरने वाली कांग्रेस के अंदर ही अब गठबंधन को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं।

आज इंडियन सेक्युलर फ़्रंट के साथ गठबंधन होने पर जो घमासान मचा है, यदि समय रहते गठबंधन विरोधियों ने इसी तरह अपनी आवाज़ बुलंद की होती, पार्टी की इतनी दुर्गति नहीं होती। इन सभी को उस समय सचेत हो जाना चाहिए था, जब विरोध करने के बावजूद मोदी लहर को रोकने के लिए आम आदमी पार्टी का तन, मन और धन से गठन किया गया था। ये क्या, “न खाता न बही, जो परिवार कहे, वही सही”, बंगाल में हुए गठबंधन का विरोध करने वाले उस समय क्यों मुंह में दही जमाए बैठे रहे, जब यूपीए के कार्यकाल में Anti-communal &Violence Bill बना एवं बन रहा था, क्या इन्हें नहीं मालूम था कि अगर ये बिल कानून बन गया, भारत में रहने वाले हिन्दुओं की कितनी दुर्गति होगी? मुग़ल युग से कहीं अधिक घातक होता। क्या वह बिल धर्म-निरपेक्ष था? नागरिकता संशोधक कानून के विरोध में खूब शाहीन बाग़ लगवाए थे, लेकिन इस बिल पर चुप्पी साध हिन्दू होते हुए हिन्दुओं को ही छलते रहे। फिर, जब इस्लामी आतंकवाद को संरक्षण देने ‘हिन्दू आतंकवाद’, ‘भगवा आतंकवाद’ और बेकसूर साधु/संत-साध्वियों को जेलों में डाल उन पर अत्याचार किया जा रहा था, उनका सात्विकता को नष्ट किया जा रहा था, तब क्यों खामोश रहे?

पश्चिम बंगाल में कांग्रेस और वाम मोर्चा एक साथ चुनावी मैदान में हैं। इस गठबंधन में इंडियन सेक्युलर फ्रंट (आईएसएफ) को शामिल करने पर कांग्रेस के नाराज नेताओं के समूह G-23 के सदस्य आनंद शर्मा ने सवाल उठाए हैं।

कांग्रेस की विचारधारा के खिलाफ है ISF से गठबंधन
आनंद शर्मा ने मार्च 1, 2021 को ट्वीट करते हुए कहा, “आईएसएफ जैसे दलों के साथ कांग्रेस का गठबंधन पार्टी की मूल विचारधारा के खिलाफ है, जो कि गाँधी और नेहरू के धर्मनिरपेक्षता वाले सिद्धांत पर आधारित है। इन मुद्दों को कांग्रेस कार्यसमिति पर चर्चा होनी चाहिए थी।”

गठबंधन को बताया शर्मनाक
पीरजादा अब्बास सिद्दीकी की नवगठित पार्टी आईएसएफ के साथ गठबंधन को शर्मनाक बताते हुए उन्होंने ट्वीट के जरिए कहा, “सांप्रदायिक ताकतों से लड़ने में कांग्रेस चयनात्मक रुख नहीं अपना सकती। हमें सांप्रदायिकता के हर रूप से लड़ना है। पश्चिम बंगाल प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की उपस्थिति और समर्थन शर्मनाक है, उन्हें अपना पक्ष स्पष्ट करना चाहिए।”

अधीर रंजन चौधरी ने मार्च 1 को आनंद शर्मा के बयान का जवाब देते हुए कहा कि वो एक राज्य के प्रभारी हैं और बिना किसी अनुमति के अपने दम पर कोई फैसला नहीं लेते हैं। कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने मार्च 1 को घोषणा की कि वाम दलों के साथ अब तक हुई चर्चा में सीटों की साझेदारी पर यह सहमति बनी है कि उनकी पार्टी 92 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। इन सीटों पर कांग्रेस के प्रत्याशियों की सूची दो दिन में जारी कर दी जाएगी।
कोई गठबंधन करने से पूर्व पार्टी में चर्चा होनी चाहिए थी, कि किस राज्य में किस पार्टी से किस आधार पर गठबंधन करना है। परन्तु परिवार अपने आपको पार्टी से ऊपर समझ पार्टी को समय से पूर्व ही समाप्त करने पर तुली हुई है, ट्विटर पर लोगों की भावनाओं का यही निष्कर्ष निकाला जा सकता है। वास्तव में गाँधी परिवार ही अपनी पार्टी को हाशिए पर धकेलने में लेशमात्र भी गुरेज नहीं कर रहा है। कोट पर जनेऊ पहन मंदिरों में माथा टेकने पर चुनाव उपरांत मुस्लिम सदस्यों के ऐतराज करने पर उनको कहा गया था कि ‘कांग्रेस मुसलमानों की पार्टी है’, उस समय यदि पार्टी में हिन्दू एवं अन्य धर्मों के लोगों ने पार्टी के सेकुलरिज्म पर प्रश्न किया होता, शायद पार्टी को इतने बुरे दिन नहीं देखने पड़ते।

फरवरी 28, 2021 को फुरफुरा शरीफ दरगाह के मौलाना अब्बास सिद्दीकी ने जहाँ राज्य भर के वामपंथी उम्मीदवारों को तो अपना समर्थन दे दिया, लेकिन कांग्रेस पार्टी के लिए ऐसा नहीं किया। कोलकाता के ब्रिगेड परेड ग्राउंड में गठबंधन की पहली रैली आयोजित हुई। रैली में सिद्दीकी ने कहा कि वो चुनावी राजनीति में भागीदारी चाहते हैं, वो लेफ्ट को धन्यवाद करना चाहते हैं क्योंकि उसने अपनी सीटों का ‘बलिदान’ कर उन्हें 30 सीटें दी हैं।
‘भाईजान’ नाम से मशहूर पीरजादा सिद्दीकी फुरफुरा शरीफ के प्रमुख हैं। यह दरगाह देश की दूसरी सबसे बड़ी सूफी मजार है। इस दरगाह का दक्षिण बंगाल के इलाकों में काफी प्रभाव माना जाता है। पीरजादा की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं ने सत्ताधारी तृणमूल की नींद पहले से ही उड़ा रखी है। अब वे कांग्रेस में भी विवाद की वजह बन गए हैं।

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