स्वातंत्र्यवीर सावरकर का पूरा नाम विनायक दामोदर सावरकर था। ‘नाम में क्या रखा है’ वाली वाहियात फिलॉसपी और किसी के साथ भले चस्पां हो जाती हो पर ऐसा सावरकर के नाम के साथ कतई नहीं है।
ऐसा इसलिए नहीं है क्योंकि वो सचमुच “विनायक” थे।
हिन्दू ग्रंथों ने कहा है कि हर शुभ काम विनायक गणेश के नाम के साथ शुरू किया जाये; तो हिंदुत्व का वर्तमान स्वरुप, “हिंदवः सोदरा: सर्वे, न हिन्दू: पतितो भवेत्” का वर्तमान हिन्दू दर्शन और इस वर्तमान स्वरुप को दिशा देने वाले संगठन आरएसएस का आरंभ इस विनायक (जिसे हम स्वातंत्र्यवीर सावरकर के नाम से जानतें हैं) के आशीष से हुआ था। दलित उद्धार, अश्पृश्यता-निवारण, गैर-ब्राह्मणों का पुरोहित प्रशिक्षण, शुद्धि आन्दोलन, हिन्दू का सैनिककरण, ‘शठे शाठ्यम समाचरेत’ का सिद्धांत’ अखंड भारत, इतिहास शुद्धिकरण और उसका पुनर्लेखन, कलम के माध्यम से समाज जागरण, समान विचार वाले सबको साथ जोड़ने का अभिनव मन्त्र; इन सब के प्रबोधक और मंत्रद्रष्टा स्वातंत्र्यवीर सावरकर ही थे।
संघ के संगठनों के जितने विविध आयाम हैं, अश्पृश्यता विरोधी जितने अभियान हैं और बाबा रामदेव का जो स्वदेशी जागरण का आंदोलन है, इन सब कामों का आधार स्वातंत्र्यवीर सावरकर का दर्शन ही है।
सावरकर वो थे जिनकी दृष्टि हिंदुत्व के विचार को लेकर कभी भ्रम में नहीं रही। जिस दौर में सावरकर हुए वो दौर आर्य समाज के व्यापक विस्तार का दौर था, ऋषि दयानंद की शिक्षा के चलते हम अपने लिए हिन्दू शब्द प्रयोग करना छोड़ने लगे थे परंतु सावरकर ने कभी हिन्दू शब्द को गाली रूप में नहीं लिया बल्कि इस शब्द को राष्ट्रीयता के पर्याय में रूपांतरित कर दिया। समाज में ये भी भ्रम था कि किसी ने गौमांस खिला दिया तो हम हिन्दू नहीं रखेंगे, ऐसे में सावरकर ने गर्वोक्त घोषणा की थी कि गोमांस तो क्या किसी अधर्मी का रक्तपान भी मेरे हिंदुत्व को कम नहीं कर सकता। इस गर्वोक्ति से उन्होंने छल से हो रहे मतान्तरण पर रोक लगाई। समाज के ऊँचे लोगों के मन में अपने हिन्दू होने को लेकर हीनता और अपराधबोध था, जो लोग हिन्दू समाज जीवन और भारत के स्वाधीनता समर में लगे हुए भी थे उनमें भी दूरदृष्टि का अभाव था ऐसे में वो सावरकर थे जिन्होंने हिन्दुत्व को भारत की राष्ट्रीय राजनीति की दिशा-निर्धारक मुद्दा बनाकर केंद्र में ला दिया।
सावरकर वो थे जिन्होंने सबसे पहले इस सत्य को समझ लिया था कि भारत का कल्याण, भारत भूमि का रक्षण और स्वाधीन भारत का काम केवल यहाँ का मुख्य समाज ही कर सकता है और उनको ही करना है। भारत का भविष्य गैरों के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता, इसलिए उन्होंने भारत के स्वातंत्र्य समर में गैरों को न तो शामिल नहीं किया और न ही इसके लिए उनकी खुशामदें की, इसलिए सावरकर वो थे जिन्होंने सबसे पहले ये समझा और समझाया था कि “तुष्टीकरण केवल और केवल पुष्टिकरण है।’
सावरकर वो भी थे जिन्हें बाबासाहेब अम्बेडकर की तरह अस्पृश्यता का दंश नहीं झेलना पड़ा था फिर भी वो अस्पृश्यता का दर्द महसूस करते थे। आज के फर्जी अंबेडकरवादियों के तरह उन्होंने इस दर्द का प्रदर्शन कर तालियाँ नहीं बटोरी बल्कि वंचित बस्तियों में जाकर उनके दर्द को साँझा किया। सावरकर वो थे जिन्होंने हिन्दू समाज को “मोपला” और गोमांतक नाम का उपन्यास लिख कर दिया जिसमें हमारे तमाम वर्तमान दुखों का निवारण मन्त्र है।
हिन्दू संगठन के बड़े नेता जहाँ आलोचनाओं से घबराकर ये कहने में लग जाते थे कि मैं बड़ा स्वाधीनता सेनानी रहा हूँ वही सावरकर भारत के स्वाधीनता आन्दोलन के इतने बड़े सेनानी होने के बाबजूद हमेशा यही कहते थे कि मुझे स्वातंत्र्यवीर सावरकर की जगह “हिन्दू संगठक सावरकर” कहो। यानि सावरकर जानते थे कि स्वाधीनता हमें भले मिल जाए पर अगर हिन्दू संगठन न हुआ तो देश पुनः गुलाम हो जाएगा, इसलिए हिन्दू समाज का संगठन भारत की पहली और अंतिम अनिवार्य आवश्यकता है।
न तो बालि का छिपकर वध करने वाले राम हमारे लिए कायर हैं और न ही रणभूमि से भागने वाले कृष्ण कायर हैं। देश, काल और परिस्थिति के अनुरूप धर्मरक्षण के लिए उठाये गये क़दमों को हमारे ग्रंथों ने मान्यता दी है और उन्हें भी धर्म की श्रेणी में रखते हुए “आपद धर्म” कहा है और हमारे पूर्वजों और श्रेष्ठ पुरुषों ने इस आपदधर्म का अनुपालन भी किया है।
भले ही सावरकर ने अंग्रेजों से माफी मांगी होगी या या भरा होगा कोई माफीनामा, हमें उससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता,अगर वैसा कोई कथित माफीनामा है भी तो “विनायक” का वो माफीनामा संपूर्ण हिन्दू समाज के दीर्घ जीवन के लिए आज संजीवनी बन गया है।
विनायक कारागृह से बाहर नहीं आते तो हम आज उस स्वाभिमान के साथ खड़े नहीं होते जिसके साथ आज खड़े हैं। विनायक अगर बाहर नहीं आते तो एक “हिन्दू-राष्ट्रवादी” आज भारत के भाग्य रथ का सारथी नहीं बना होता।
आज अगर करोड़ों सीने में भारत माँ के मान और हिंदुत्व के अभिमान का दीपक प्रज्जवलित है तो ये इसलिए है क्योंकि इसकी लौ उस महान आत्मा के ज्योतिर्पुंज से ही प्रदीप्त है। इसे एक बार महसूस करके देखिये फिर भारत भूमि पर अवतरित हिंदुत्व के इस विनायक भगवान का मोल समझ में आ जायेगा।
सावरकर इसलिये पूज्य नहीं हैं कि उनका नाम किसी स्कूल के किताब या किसी जेल के शिलापट्ट पर लिखा है बल्कि सावरकर इसलिए पूज्य हैं क्योंकि उनका नाम हर देशभक्त के सीने में अंकित है और जहाँ तक उस कथित माफीनामे का सवाल है तो वो “कथित माफीनामा” अगर है भी तो वो सोने के फ्रेम में मढ़वाकर सहेज कर रखने लायक धरोहर है, शर्मिंदा होने का कारण नहीं।
✍🏻अभिजीत सिंह