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‘भू-माफिया’ घोषित किए जा चुके उत्तर प्रदेश के रामपुर से सांसद आजम खान को ‘लोकतंत्र सेनानी’ के रूप में हर महीने पेंशन मिल रही थी, जिस पर योगी आदित्यनाथ की सरकार ने रोक लगा दी है। आजम खान और उनके ट्रस्ट के नाम पर करोड़ों की संपत्ति और कई अवैध निर्माण व कब्जाई गई जमीनें हैं। उन पर कई आपराधिक मुक़दमे चल रहे हैं। ‘लोकतंत्र सेनानी पेंशन’ के रूप में वो हर माह 20,000 रुपए अलग से उठा रहे थे, जिसे रोक दिया गया है।
ये ही सरकारी लूट के मुद्दे हैं, जिसे विपक्ष को उठाने चाहिए, और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी इस सरकारी लूट की ओर गंभीरता से विचार कर तुरंत बंद करनी चाहिए। आपातकाल में पता नहीं कितने लोग जेल गए और न जाने कितनों को कोपभवन यानि गुमनामी जीवन जीना पड़ा था। जनसेवा के नाम पर किस तरह जनता को लूटा जा रहा है, योगी ने अभी मात्र एक के ऊपर से पर्दा उठाया है। जनसेवक को पेंशन किस आधार पर? जिस दिन ये सरकारी लूट बंद हो गयी सरकारी खजाने में धन का कोई आभाव नहीं होने पाएगा। सरकारी कर्मचारियों का महंगाई भत्ता रुका हुआ। क्यों जनसेवा को एक व्यापार बनाया जा रहा है?
इंदिरा गाँधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार द्वारा 1975 में लगाए गए आपातकाल के दौरान जेल जाने वाले नेताओं को ‘लोकतंत्र सेनानी’ का दर्जा देकर उन्हें मासिक पेंशन दिए जाने का प्रावधान किया गया था, जिसका आजम खान भी जम कर फायदा उठा रहे थे। 2005 में उत्तर प्रदेश की सरकार ने उन्हें ‘लोकतंत्र सेनानी’ घोषित करते हुए उनके लिए पेंशन की व्यवस्था की थी। तब लखनऊ में सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव की सरकार थी।
शुरुआत में इस पेंशन के तहत 500 रुपए प्रतिमाह मिलते थे लेकिन बाद में इसे बढ़ाकर 20,000 रुपए कर दिया गया। कहा जा रहा है कि कई मुकदमों में उनके आरोपित होने की वजह से यूपी सरकार ने उन्हें मिलने वाली पेंशन पर रोक लगाई है। इमरजेंसी के काल में आजम खान अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में छात्र संघ से जुड़े हुए थे और उन्हें पकड़ कर जेल में डाल दिया गया था। उन्होंने तत्कालीन कॉन्ग्रेस सरकार का विरोध किया था।
अब फरवरी 24, 2021 को रामपुर के जिला प्रशासन ने जब ‘लोकतंत्र सेनानियों’ की सूची जारी की तो उसमें आजम खान का नाम शामिल नहीं था। इस सूची में जिले के 35 लोगों के नाम थे। इससे पहले 37 लोगों को ये पेंशन दी जा रही थी। रामपुर के डीएम आंजनेय कुमार सिंह ने कहा कि आपराधिक मुकदमों की वजह से आजम की पेंशन रोकी गई है। सरकार ने इस सम्बन्ध में जानकारी भी माँगी थी।
हाल ही में उनके जौहर ट्रस्ट की 173 एकड़ (70 हेक्टेयर) जमीन यूपी सरकार के नाम दर्ज हो गई थी। राजस्व अभिलेखों में जमीन से जौहर ट्रस्ट का नाम काट कर यूपी सरकार के नाम पर चढ़ा दिया गया था। अखिलेश सरकार में जौहर ट्रस्ट द्वारा खरीदी गई जमीन पर जौहर यूनिवर्सिटी बनी हुई है। इसकी खरीद के दौरान उचित शर्तों का पालन नहीं किया गया। ट्रस्ट की जमीन पर पिछले दस सालों में चैरिटी का कोई कार्य न होने की बात भी सामने आई है।