लापरवाही का कारण है कोरोना

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डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा

इसमें कोई दो राय नहीं कि कोरोना ने सब कुछ थाम के रख दिया। उद्योग धंधों से लेकर सभी तरह की गतिविधियां ठप्प हो गई। यही कारण है कि एक ओर तेजी से उद्योग धंधों को पटरी पर लाया जा रहा है तो लोगों को रोजगार उपलब्ध कराने के प्रयासों में तेजी हो रही है।
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कोरोना वैक्सीन के आते ही जिस तरह से देश में लापरवाही का दौर चला है उसके दुष्परिणाम सामने आने लगे हैं। आज देश के चार राज्यों में कोरोना की वापसी के जो संकेत मिल रहे हैं वह बेहद चिंताजनक होने के साथ ही गंभीर भी हैं। हालांकि महाराष्ट्र सरकार ने त्वरित कदम उठाते हुए अमरावती, अकोला, बुलढ़ाना, वासिम और यवतमाल में सात दिनों के लिए लॉकडाउन लगा दिया है वहीं पुणे-नासिक में रात्रि कालीन कर्फ्यू लगाकर सख्ती कर दी है। इसके साथ ही शादी-विवाह, रैली, धार्मिक आयोजनों, सामाजिक सभाओं पर सख्ती के साथ ही स्कूल-कालेज भी फरवरी तक बंद करने के आदेश दे दिए हैं। केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने जिस तरह से महाराष्ट्र, केरल, पंजाब, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ सरकार को आगाह किया है उससे कोरोना की वापसी के मिल रहे संकेतों की गंभीरता को समझा जा सकता है। हालांकि इन राज्यों की सरकारें सचेत तो होने लगी हैं पर सख्ती करने में देरी किसी भी हालत में नहीं होनी चाहिए।

दरअसल ज्यों ज्यों कोरोना के मामले कम आने के समाचार मिलने लगे त्यों त्यों ही कोरोना के प्रति लापरवाही में भी तेजी से इजाफा देखने को मिलने लगा है। कोरोना के खिलाफ सारा करा धरा लापरवाही की भेंट चढ़ता जा रहा है। बड़े-बड़े आयोजन हो रहे हैं तो बाजार में सामान्य आवाजाही होने लगी है। उद्योग धंधे पटरी पर आने लगे हैं तो जनजीवन भी सामान्य होने लगा है। ऐसे में यदि कोई चीज छूटी है तो वह है कोरोना स्वास्थ्य प्रोटोकाल। देश के किसी भी कोने के किसी भी आयोजन को देख लीजिए चाहे बाजारों की स्थिति, बसों में आवाजाही या पैदल जाते हुए नागरिक। सब्जी की दुकान हो या फिर मॉल्स इनमें से अधिकांश स्थानों पर बहुतायत में लोगों को बिना मास्क के देखा जा सकता है तो दो गज दूरी की बात करना तो बेमानी ही होगा। कोरोना संक्रमण के दौर में एक माहौल बना था और सेनेटाइजर व मास्क घर घर की जरूरत बन गया था। आज हम इनके प्रति लापरवाह होते जा रहे हैं। डर नाम की बात तो देखने को ही नहीं मिल रही। कोरोना प्रोटोकाल की पालना के लिए गृह मंत्रालय द्वारा जारी गाइडलाइन में जिस तरह से स्थिति को सामान्य करने के प्रयास किए गए उसी तरह से कोरोना प्रोटोकाल की अवहेलना भी आम होती गई है। आखिर हमारी मानसिकता डंडे के डर से ही कानून की पालना करने की आखिर क्यों हो गई है? जिस तरह से यातायात नियमों की पालना ट्रैफिक पुलिस वाले को देखकर चालान होने के डर से होती है, ठीक उसी तरह से कोरोना प्रोटोकाल की पालना हो रही है। पुलिस वाला दिखाई देगा तो मास्क पहन लेंगे, नहीं तो जेब में पड़ा रहेगा तो दूसरी ओर सार्वजनिक या आम आवाजाही वाले स्थानों पर थर्मल स्कैनिंग, ऑक्सीमीटर से चैकिंग, सेनेटाइजर की उपलब्धता, दो गज दूरी की पालना आदि तो अब नहीं के बराबर हो रही है।

इसमें कोई दो राय नहीं कि कोरोना ने सब कुछ थाम के रख दिया। उद्योग धंधों से लेकर सभी तरह की गतिविधियां ठप्प हो गई। यही कारण है कि एक ओर तेजी से उद्योग धंधों को पटरी पर लाया जा रहा है तो लोगों को रोजगार उपलब्ध कराने के प्रयासों में तेजी हो रही है। अब लोग रोजगार व धंधे के प्रति गंभीर हुए हैं और जन-जीवन सामान्य होते जा रहे हैं। पर इसके साथ ही जो असामान्य हो रहा है वह है सुरक्षा मानकों की अवहेलना। जब यह साफ हो गया कि सावधानी ही सुरक्षा है यानी कि मास्क और दो गज की दूरी तो कम से कम जरूरी है तो इसकी पालना तो हमें करनी ही होगी। हालांकि अब स्टे होम स्टे सेफ की बात करना तो बेमानी होगा पर फिर भी हमें सामान्य स्वास्थ्य सुरक्षा मानकों की पालना तो करनी ही होगी।

कोरोना के दूसरे दौर को देखते हुए समय रहते कदम उठाए जाते हैं तो हालात काबू में रह सकते हैं। अब कुंभ महापर्व आने वाला है तो सामाजिक गतिविधियां शुरू हो गई हैं। स्कूल कालेज व कोचिंग संस्थान खुलने लगे हैं। पर तस्वीर का एक पहलू यह भी है कि बड़ी-बड़ी रैलियां निकलना और सभाएं होना आम होता जा रहा है। राज्यों में स्थानीय स्वशासी संस्थाओं के चुनाव चल रहे हैं तो विधान सभाओं के बजट सत्रों के कारण धरने प्रदर्शन का सिलसिला शुरू हो रहा है। आंदोलन के कारण जो हालात बन रहे हैं वह सामने हैं। ऐसे में धरने प्रदर्शनों पर भी सख्ती से कोरोना प्रोटोकाल को लागू कराना होगा। कोरोना प्रोटोकाल की पालना नहीं करने पर सजा व दण्ड के प्रावधान हैं। पर कोरोना की भयावहता को देखने के बाद भी यदि हम गंभीर नहीं होते हैं तो हमें सभ्य कहलाने का अधिकार नहीं हो सकता। सवाल सभ्य होने या नहीं होने का नहीं अपितु हमारे गंभीर होने का है। कोरोना चेन की तरह कड़ी से कड़ी जोड़ता आगे बढ़ता है और एक से दूसरे को अपने लपेटे में ले लेता है। ऐसे में हमारी समझदारी ही इससे बचने और बचाने का उपाय हो सकती है। आखिर डंडे के भय या लॉकडाउन जैसे कठोर निर्णयों के स्थान पर हमें हमारे छोटे से दायित्व और सजगता केवल मास्क पहनने और दो गज की दूरी की पालना से ही कोरोना की चेन को तोड़ सकते हैं तो फिर हमें ऐसा करने में शर्म किस बात की है। सरकार को भी सार्वजनिक आयोजनों पर चाहे व धरना प्रदर्शन हों या सामाजिक धार्मिक आयोजन, सख्ती से पेश आना चाहिए क्योंकि आज की पहली आवश्यकता कोरोना के दूसरे दौर से बचाने की है। यदि हम अपने आप पर अंकुश लगा सकते हैं या अपने आप साधारण-सी पालना करने का संकल्प लेकर पालना करते हैं तो स्वयं के साथ ही दूसरों को भी बचा सकते हैं। हमें कोरोना की भयावहता को नहीं भूलना चाहिए। कोरोना को जिन्होंने भुगता है और जिन्होंने अपनों को खोया है वे इसका दर्द जानते हैं। ऐसे में सतर्कता ही एकमात्र उपाय है और उसकी पालना का हमें संकल्प लेना होगा।

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