जिन सावरकर को अंग्रेजों ने अपनी हुकूतम के लिए इतना खतरनाक माना था कि डबल कालापानी की सजा दी थी वो लेफ्ट लिबरल गैंग की नजर में कायर थे और जो लोग औपनिवेशिक काल में फ्रेंडली जेल जाते थे उन्हें इस गैंग ने परमवीर स्वतंत्रता सेनानी घोषित कर दिया. 26 फरवरी को वीर सावरकर की पुण्यतिथि है. उन्हें याद करते हुए जानिए कि आखिर किस साजिश का शिकार हुए वीर सावरकर-
नई दिल्लीः देश के वामपंथी इतिहासकारों ने हिन्दुस्तान का इतिहास लिखते हुए किस तरह का विचारधाराई जुल्म किया है, ये आप जानेंगे तो आपको इनसे घृणा हो जाएगी. इन इतिहासकारों पर विचारधारा का दुराग्रह इतना ज्यादा था कि ऐतिहासिक तथ्यों को नजरअंदाज करने के अपराध से भी उन्होंने परहेज नहीं किया.
वामपंथियों की पोल खुली
अपने राजनीतिक आकाओं के निर्देश पर एक तरह से इन्होंने भारत के गौरवशाली अतीत की कॉन्ट्रैक्ट किलिंग कर दी. शुरुआती दशकों में तो इनकी ये चाल आम हिन्दुस्तानियों की समझ में नहीं आई लेकिन जब निष्पक्ष इतिहासकारों ने गहन शोध शुरू किया तब इनकी पोल खुलनी शुरू हो गई.
पोल खुली तो तब ये बात उगागर हुई कि कई महान स्वतंत्रता सेनानियों की छवि इन्होंने जानबूझ कर आपराधिक छेड़छाड़ की हद तक जाकर कलंकित की.
सावरकर स्वातंत्र्य वीर या कायर?
आधुनिक भारत के इतिहास लेखन की वामपंथी धारा ने स्वातंत्र्य वीर विनायक दामोदर सावरकर के साथ छल और अन्याय की सारी हदें पार कर दी हैं.
दरअसल आजादी के बाद के लिबरल लेफ्ट गैंग के इतिहासकारों ने अपने पॉलिटिकल मास्टर्स की शह पर वीर सावरकर की ऐसी छवि देशवासियों के सामने पेश की कि हिन्दुस्तानी लंबे समय तक सावरकर को लेकर भ्रम की स्थिति में रहे.
लेफ्ट लिबरल गैंग की करतूत देखिए
जिन सावरकर को अंग्रेजों ने अपनी हुकूतम के लिए इतना खतरनाक माना था कि डबल कालापानी की सजा दी थी वो लेफ्ट लिबरल गैंग की नजर में कायर थे और जो लोग औपनिवेशिक काल में फ्रेंडली जेल जाते थे उन्हें इस गैंग ने परमवीर स्वतंत्रता सेनानी घोषित कर दिया.
एजी नूरानी ने किताब में घृणा का स्तर देखिए
लेफ्ट गैंग ने तो सावरकर को गांधी जी की हत्या का षडयंत्रकारी तक बना दिया है. लेकिन स्वातंत्र्यवीर सावरकर पर फैलाए गए वामपंथी फरेब को तथ्यों की कसौटी पर परखना जरूरी है. सबसे पहले देखते हैं कि एजी नूरानी नाम के वामपंथी लेखक ने अपनी किताब ‘Savarkar and Hindutva – The Godse Connection’ में कैसे नाथू राम गोडसे को सावरकर का चेला करार दिया है. उन्होंने अपनी किताब में लिखा है-
“साल 2002 में ही जाकर बीजेपी के हिन्दुत्व के सबसे बड़े प्रतिपादक लाल कृष्ण आडवाणी सावरकर को राष्ट्र नायक घोषित करने साहस जुटा सके. बीजेपी के शासनकाल में गांधी की जगह सावरकर की तस्वीर लगाने का कृत्य काफी घृणित और हैरान करने वाला है क्योंकि नाथूराम गोडसे सावरकर का चेला था और गांधी का हत्यारा.”
सावरकर को सच्चा देशभक्त और बहादुर मानते थे बापू
दरअसल वामपंथी इतिहासकारों और चिंतकों ने सावरकर को बापू की हत्या का षडयंत्रकारी साबित करने में अपनी ओर से कोई कसर नहीं छोड़ी है जबकि वे इस बात को अच्छी तरह जानते हैं कि बापू के मन में सावरकर के प्रति और सावरकर के मन में बापू के प्रति कितना सम्मान था.
सिर्फ बापू की हत्या की साजिश रचने वाला ही नहीं वामपंथी लॉबी ने तो सावरकर को अंग्रेजों के आगे घुटने टेकने वाला, जेल की काल कोठरी से डरकर सरेंडर करने वाला डरपोक तक करार दिया है.
अंग्रेजों ने क्यों दिया दोहरा कालापानी?
ये वामपंथी अपनी कलम को तकलीफ देते हुए ये नहीं बताते कि एक कायर से अंग्रेज इतने क्यों डर गए थे कि उन्हें डबल कालापानी यानी 50 साल की कैद-ए-बामशक्कत की सजा सुनाई थी. इस सवाल पर वो चुप्पी साध जाते हैं लेकिन महात्मा गांधी ने जरूर ये बताया था कि सावरकर ब्रितानी हुकूमत के लिए कितना बड़ा खतरा बन चुके थे.
जो वामपंथी लॉबी सावरकर की क्षमा याचना का ढिंढोरा पीटकर स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान पर कालिख पोतने की कोशिश करती है वो ये नहीं बताती कि महात्मा गांधी ने 8 मई, 1921 को ‘यंग इंडिया’ में सावरकर के बारे में क्या लिखा था? बापू ने लिखा था-
पढ़िए, क्या थे महात्मा गांधी के शब्द?
“अगर भारत इसी तरह सोया पड़ा रहा, तो मुझे डर है कि उसके ये दो निष्ठावान पुत्र (सावरकर के बड़े भाई भी कैद में थे) सदा के लिए हाथ से चले जाएंगे. एक सावरकर भाई (विनायक दामोदर सावरकर) को मैं बहुत अच्छी तरह जानता हूं. मुझे लंदन में उनसे भेंट का सौभाग्य मिला है.
वे बहादुर हैं, चतुर हैं, देशभक्त हैं. वे क्रांतिकारी हैं और इसे छिपाते नहीं हैं. मौजूदा शासन-प्रणाली की बुराई का सबसे भीषण रूप उन्होंने बहुत पहले, मुझसे भी काफी पहले देख लिया था. आज भारत को, अपने देश को दिलोजान से प्यार करने के अपराध में वे कालापानी भोग रहे हैं.”
गांधी जी जिसके बारे में ये लिखते हैं कि अपने देश को दिलोजान से प्यार करने के अपराध में वे कालापानी भोग रहे हैं उन्हें वामपंथी कायर, डरपोक और जाने क्या-क्या कहते हैं.
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साभार
मुख्य संपादक, उगता भारत