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आज का चिंतन

सरस्वती पूजा का वैदिक पक्ष क्या है ?

(दार्शनिक विचार)

#डॉ_विवेक_आर्य

देश भर में हिन्दू समाज “सरस्वती पूजन” के अवसर पर सरस्वती देवी की पूजा करता हैं। सरस्वती पूजा का वैदिक पक्ष इस अवसर पर पाठकों के स्वाध्याय हेतु प्रस्तुत है। विद्यालयों में सरस्वती गान किया जाता है।

सत्यार्थ प्रकाश के प्रथम समुल्लास में सरस्वती की परिभाषा करते हुए स्वामी दयानंद लिखते है कि जिसमें अखंड रूप से विज्ञान विद्यमान है उस परमेश्वर का नाम सरस्वती है। जिसमें विविध विज्ञान अर्थात शब्द, अर्थ, सम्बन्ध, प्रयोग का ज्ञान यथावत होने से उस परमेश्वर का नाम सरस्वती हैं।
चारों वेदों में सौ से अधिक मन्त्रों में सरस्वती का वर्णन है। वेदों में सरस्वती का चार अर्थों में प्रयुक्त हुआ है। पहला विद्या, वाणी, विज्ञानदाता परमेश्वर। दूसरा विदुषी विज्ञानवती नारी, तीसरा सरस्वती नदी, चौथा वाणी।

वेदों में सरस्वती के लिए मुख्य रूप से पावका अर्थात पवित्र करने वाली, वाजिनीवति अर्थात विद्या संपन्न, चोदयित्री अर्थात शुभ गुणों को ग्रहण करने वाली, भारती अर्थात श्रेष्ठ बुद्धि से युक्त, केतुना अर्थात ईश्वर विषयणी बुद्धि से युक्त, मधुमतिम अर्थात बड़ी मधुर आदि विशेषण प्रयुक्त हुए हैं।

निघण्टु में वाणी के 57 नाम हैं, उनमें से एक सरस्वती भी है। अर्थात् सरस्वती का अर्थ वेदवाणी है। ब्राह्मण ग्रंथ वेद व्याख्या के प्राचीनतम ग्रंथ है। वहाँ सरस्वती के अनेक अर्थ बताए गए हैं। उनमें से कुछ इस प्रकार हैं-

1- वाक् सरस्वती।। वाणी सरस्वती है। (शतपथ 7/5/1/31)
2- वाग् वै सरस्वती पावीरवी।। ( 7/3/39) पावीरवी वाग् सरस्वती है।
3- जिह्वा सरस्वती।। (शतपथ 12/9/1/14) जिह्ना को सरस्वती कहते हैं।
4- सरस्वती हि गौः।। वृषा पूषा। (2/5/1/11) गौ सरस्वती है अर्थात् वाणी, रश्मि, पृथिवी, इन्द्रिय आदि। अमावस्या सरस्वती है। स्त्री, आदित्य आदि का नाम सरस्वती है।
5- अथ यत् अक्ष्योः कृष्णं तत् सारस्वतम्।। (12/9/1/12) आंखों का काला अंश सरस्वती का रूप है।
6- अथ यत् स्फूर्जयन् वाचमिव वदन् दहति। ऐतरेय 3/4, अग्नि जब जलता हुआ आवाज करता है, वह अग्नि का सारस्वत रूप है।
7- सरस्वती पुष्टिः, पुष्टिपत्नी। (तै0 2/5/7/4) सरस्वती पुष्टि है और पुष्टि को बढ़ाने वाली है।
8-एषां वै अपां पृष्ठं यत् सरस्वती। (तै0 1/7/5/5) जल का पृष्ठ सरस्वती है।
9-ऋक्सामे वै सारस्वतौ उत्सौ। ऋक् और साम सरस्वती के स्रोत हैं।
10-सरस्वतीति तद् द्वितीयं वज्ररूपम्। (कौ0 12/2) सरस्वती वज्र का दूसरा रूप है।

ऋग्वेद के 6/61 का देवता सरस्वती है। स्वामी दयानन्द ने यहाँ सरस्वती के अर्थ विदुषी, वेगवती नदी, विद्यायुक्त स्त्री, विज्ञानयुक्त वाणी, विज्ञानयुक्ता भार्या आदि किये हैं।

महाभारत वनपर्व में सरस्वती संवाद अध्याय में कहा गया है। सरस्वती बोली-मैं परापर विद्या रूपी सरस्वती हूँ। आंतरिक भावों और श्रद्धा में मेरी स्थिति है जहाँ श्रद्धा और हाव हो वहां मैं प्रकट होती हूँ। स्वाध्याय रूपी योग में लगे हुए तथा तप को ही धन मानने वाले योगी, व्रत, पुण्य और योग के साधनों से जिस परमपद को प्राप्त कर शोक रहित हो मुक्त हो जाते हैं। वही परापर ब्रह्मा मैं हूँ।

ऋग्वेद 10/17/4 ईश्वर को सरस्वती नाम से पुकारा गया है। दिव्य ज्ञान प्राप्ति की इच्छा वाले अखंड ज्ञान के भण्डार “सरस्वती” भगवान से ही ज्ञान की याचना करते है, उन्हीं को पुकारते है। तथा प्रत्येक शुभ कर्म में उनका स्मरण करते हैं। ईश्वर भी प्रार्थना करने की इच्छा पूर्ण करते हैं। सभी मिलकर ज्ञान के सागर ईश्वर के महान विज्ञान रूपी गुण अर्थात “सरस्वती” का पूजन करे। वर्ष में एक दिन ही क्यों सम्पूर्ण जीवन करें।

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