सरकार द्वारा इंटरनेट के जरिये अफवाहों और भ्रामक तथा भड़काऊ खबरों का प्रसार रोकने के लिए इंटरनेट शटडाउन किया जाता है लेकिन इससे लोगों की जिंदगी थम-सी जाती है क्योंकि रोजमर्रा की जिंदगी को चलाए रखने से जुड़ा हर कार्य अब इंटरनेट पर निर्भर जो हो गया है।
26 जनवरी को दिल्ली में हुई हिंसा के बाद हरियाणा के कई जिलों सहित सिंघु, गाजीपुर तथा टीकरी बॉर्डर पर सरकार के निर्देशों पर इंटरनेट सेवा बाधित की गई थी, जो विभिन्न स्थानों पर करीब दस दिनों तक जारी रही। हरियाणा में दूरसंचार अस्थायी सेवा निलंबन (लोक आपात या लोक सुरक्षा) नियम, 2017 के नियम 2 के तहत क्षेत्र में शांति बनाए रखने और सार्वजनिक व्यवस्था में किसी भी प्रकार की गड़बड़ी को रोकने के लिए इंटरनेट सेवाएं बंद करने के आदेश दिए गए थे। इंटरनेट आज न केवल आम जनजीवन का अभिन्न अंग बन चुका है बल्कि इस पर पाबंदी के कारण हरियाणा में कोरोना वैक्सीन कार्यक्रम भी प्रभावित हुआ। इंटरनेट सुविधा पर पाबंदी के कारण छात्रों की ऑनलाइन कक्षाएं बंद हो गई थीं और इंटरनेट पर आधारित व्यवसाय ठप्प हो गए थे।
विभिन्न सेवाओं और योजनाओं के माध्यम से एक ओर जहां सरकार ‘डिजिटल इंडिया’ के सपने दिखा रही है, अधिकांश सेवाओं को इंटरनेट आधारित किया जा रहा है, वहीं बार-बार होते इंटरनेट शटडाउन के चलते जहां लोगों की दिनचर्या प्रभावित होती है और देश को इसका बड़ा आर्थिक नुकसान भी झेलना पड़ता है। डिजिटल इंडिया के इस दौर में जिस तरह इंटरनेट शटडाउन के मामले लगातार बढ़ रहे हैं और लोगों को बार-बार नेटबंदी का शिकार होना पड़ रहा है, उससे भारत की छवि पूरी दुनिया में प्रभावित हो रही है। ब्रिटेन के डिजिटल प्राइवेसी एंड सिक्योरिटी रिसर्च ग्रुप ‘टॉप-10 वीपीएन’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले वर्ष भारत में कुल 75 बार इंटरनेट शटडाउन किया गया। कुल 8927 घंटे तक इंटरनेट पर लगी पाबंदी से जहां 1.3 करोड़ उपभोक्ता प्रभावित हुए, वहीं इससे देश को करीब 2.8 बिलियन डॉलर (204.89 अरब रुपये) का नुकसान हुआ। इंटरनेट पर जो पाबंदियां 2019 में लगाई गई थी, वे 2020 में भी जारी रहीं और भारत को 2019 की तुलना में गत वर्ष इंटरनेट बंद होने से दोगुना नुकसान हुआ। फेसबुक की पारदर्शिता रिपोर्ट में बताया गया था कि जुलाई 2019 से दिसम्बर 2019 के बीच तो भारत दुनिया में सर्वाधिक इंटरनेट व्यवधान वाला देश रहा था। वर्ष 2019 में कश्मीर में तो सालभर में 3692 घंटों के लिए इंटरनेट शटडाउन किया गया।
‘शीर्ष 10 वीपीएन’ की रिपोर्ट में बताया गया है कि बीते वर्ष विश्वभर में कुल इंटरनेट शटडाउन 27165 घंटे का रहा, जो उससे पिछले साल से 49 प्रतिशत ज्यादा था। इसके अलावा इंटरनेट मीडिया शटडाउन 5552 घंटे रहा। ब्रिटिश संस्था द्वारा इंटरनेट पर पाबंदियां लगाने वाले कुल 21 देशों की जानकारियों की समीक्षा करने पर पाया गया कि भारत में इसका जितना असर हुआ, वह अन्य 20 देशों के सम्मिलित नुकसान के दोगुने से भी ज्यादा है और नुकसान के मामले में 21 देशों की इस सूची में शीर्ष पर आ गया है। वर्ष 2020 में 1655 घंटों तक इंटरनेट ब्लैकआउट रहा तथा 7272 घंटों की बैंडविथ प्रभावित हुई, जो किसी भी अन्य देश की तुलना में सर्वाधिक है। रिपोर्ट के अनुसार भारत दुनियाभर में नेटबंदी से होने वाले कुल 4.01 अरब डॉलर के नुकसान के तीन चौथाई हिस्से का भागीदार बना है। इंटरनेट शटडाउन के मामले में भारत के बाद दूसरे स्थान पर बेलारूस और तीसरे पर यमन रहा। बेलारूस में कुल 218 घंटों की नेटबंदी से 336.4 मिलियन डॉलर नुकसान का अनुमान है। रिपोर्ट में ‘इंटरनेट शटडाउन’ को परिभाषित करते हुए इसे ‘किसी विशेष आबादी के लिए या किसी एक स्थान पर इंटरनेट या इलैक्ट्रॉनिक संचार को इरादतन भंग करना’ बताया गया है और इस ब्र्रिटिश संस्था के अनुसार ऐसा ‘सूचना के प्रवाह पर नियंत्रण’ कायम करने के लिए किया जाता है।
उल्लेखनीय है कि भारत में सरकार द्वारा इंटरनेट सेवाओं पर रोक लगाने के लिए अलग-अलग परिस्थितियों में अलग-अलग कानूनों का सहारा लिया जाता है, जिनमें कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर (सीआरपीसी) 1973, इंडियन टेलीग्राफ एक्ट 1885 तथा टेंपरेरी सस्पेंशन ऑफ टेलीकॉम सर्विसेज रूल्स 2017 शामिल हैं। पहले सूचना के प्रचार-प्रसार सहित इंटरनेट शटडाउन का अधिकार इंडियन टेलीग्राफ एक्ट 1885 तथा धारा-144 के तहत सरकार व प्रशासन को दिया गया था लेकिन टेंपरेरी सस्पेंशन ऑफ टेलीकॉम सर्विसेज रूल्स 2017 के अस्तित्व में आने के बाद इंटरनेट शटडाउन का फैसला अब अधिकांशतः इसी प्रावधान के तहत लिया जाने लगा है। हालांकि संयुक्त राष्ट्र द्वारा वर्ष 2016 में एक प्रस्ताव पारित किया गया था, जो इंटरनेट को मानवाधिकार की श्रेणी में शामिल करता है और सरकारों द्वारा इंटरनेट पर रोक लगाने को सीधे तौर पर मानवाधिकारों का उल्लंघन बताता है लेकिन यह प्रस्ताव किसी भी देश के लिए बाध्यकारी नहीं है।
इंटरनेट शटडाउन किए जाने पर सरकार और प्रशासन द्वारा सदैव एक ही तर्क दिया जाता है कि किसी विवाद या बवाल की स्थिति में हालात बेकाबू होने से रोकने तथा शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए अफवाहों, गलत संदेशों, खबरों, तथ्यों व फर्जी तस्वीरों के प्रचार-प्रसार के जरिये विरोध की चिंगारी दूसरे राज्यों तक न भड़कने देने के उद्देश्य से ऐसा करने पर विवश होना पड़ता है। इसमें कोई दो राय नहीं कि सोशल मीडिया के जरिये कुछ लोगों द्वारा झूठे संदेश और फर्जी वीडियो वायरल कर माहौल खराब करने के प्रयास किए जाते हैं लेकिन उन पर शिकंजा कसने के लिए इंटरनेट पर पाबंदी लगाने के अलावा प्रशासन के पास और भी तमाम तरीके होते हैं। विश्वभर में कई रिसर्चरों का दावा है कि इंटरनेट बंद करने के बाद भी हिंसा तथा प्रदर्शनों को रोकने में इससे कोई बड़ी सफलता नहीं मिलती है, हां, लोगों का काम धंधा अवश्य चौपट हो जाता है और व्यक्तिगत नुकसान के साथ सरकार को भी बड़ी आर्थिक चपत लगती है। इंटरनेट पर बार-बार पाबंदियां लगाए जाने का देश को भारी नुकसान झेलना पड़ रहा है।
सरकार द्वारा इंटरनेट के जरिये अफवाहों और भ्रामक तथा भड़काऊ खबरों का प्रसार रोकने के लिए इंटरनेट शटडाउन किया जाता है लेकिन इससे लोगों की जिंदगी थम-सी जाती है क्योंकि रोजमर्रा की जिंदगी को चलाए रखने से जुड़ा हर कार्य अब इंटरनेट पर निर्भर जो हो गया है। ऐसे में ये सवाल उठने स्वाभाविक हैं कि एक ओर जहां सरकार हर सुविधा के डिजिटलीकरण पर विशेष बल दे रही है और बहुत सारी सेवाएं ऑनलाइन कर दी गई हैं, वहीं आन्दोलनों को दबाने के उद्देश्य से नेटबंदी किए जाने के कारण लोगों के आम जनजीवन पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। किसी को अपना आधार कार्ड बनवाना या ठीक कराना हो, किसी सरकारी सेवा का लाभ लेना हो, ऑनलाइन शॉपिंग करनी हो, खाने का ऑर्डर करना हो या फिर ऑनलाइन कैब, टैक्सी, रेल अथवा हवाई टिकट बुक करनी हो, बिना इंटरनेट के इन सभी सुविधाओं का इस्तेमाल किया जाना असंभव है। इंटरनेट शटडाउन के चलते एक ओर जहां ऐसे क्षेत्रों में बैंकिंग सेवाओं पर प्रतिकूल असर पड़ता है, वहीं सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ उठाना भी लोगों के लिए मुश्किल हो जाता है। नेटबंदी की स्थिति में कोई अपनी फीस, बिजली व पानी के बिल, बैंक की ईएमआई इत्यादि समय से नहीं भर पाता तो बहुत से युवाओं को प्रतियोगी परीक्षाओं के फॉर्म भरने तथा इंटरनेट का उपयोग कर उनकी तैयारी करने में खासी परेशानियां झेलनी पड़ती हैं।
एक अनुमान के अनुसार देश में आज 480 मिलियन से भी ज्यादा स्मार्टफोन यूजर्स हैं, जिनमें से अधिकांश इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं। आज हमें जीवन के हर कदम पर इंटरनेट की जरूरत पड़ती है क्योंकि आज का सारा सिस्टम काफी हद तक कम्प्यूटर और इंटरनेट की दुनिया से जुड़ चुका है। सेल्युलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीओएआई) ने कुछ समय पूर्व बताया था कि देश में इंटरनेट शटडाउन के कारण हर घंटे करीब ढ़ाई करोड़ रुपये का नुकसान होता है। ‘सॉफ्टवेयर फ्रीडम लॉ सेंटर’ (एसएलएफसी) भी चिंता जताते हुए कह चुका है कि डिजिटल इंडिया के इस दौर में हम ‘डिजिटल डार्कनेस’ की ओर बढ़ रहे हैं। ऐसे में इस महत्वपूर्ण तथ्य को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि इंटरनेट शटडाउन से लोगों की जिंदगी किस कदर प्रभावित होती है और देश की अर्थव्यवस्था को इसके कारण कितना बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ता है। ऐसे में जरूरत है कुछ ऐसे विकल्प तलाशे जाने की, जिससे पूरी तरह इंटरनेट शटडाउन करने की जरूरत ही न पड़े। मसलन, प्रभावित इलाकों में पूरी तरह इंटरनेट बंद करने के बजाय फेसबुक, व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम इत्यादि सोशल साइटों पर अस्थायी पाबंदी लगाई जा सकती है, जिससे विषम परिस्थितियों में भी इंटरनेट का इस्तेमाल कर लोग अपने जरूरी काम कर सकें।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार तथा कई पुस्तकों के लेखक हैं, उनकी हाल ही में पर्यावरण संरक्षण पर 190 पृष्ठों की पुस्तक ‘प्रदूषण मुक्त सांसें’ प्रकाशित हुई है)