#डॉ_विवेक_आर्य
(बंसत पंचमी 16 फरवरी को वीर हकीकत राय के बलिदान दिवस पर विशेष रूप से प्रकाशित)
पंजाब के सियालकोट मे सन् 1719 में जन्में वीर हकीकत राय जन्म से ही कुशाग्र बुद्धि के बालक थे। आप बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के बालक थे। बड़े होने पर आपको उस समय कि परम्परा के अनुसार फारसी पढ़ने के लिये मौलवी के पास मस्जिद में भेजा गया। वहाँ के कुछ शरारती मुस्लमान बालकों ने हिन्दू बालको तथा हिन्दू देवी देवताओं को अपशब्द कहते रहते थे। बालक हकीकत उन सब के कुतर्को का प्रतिवाद करता और उन मुस्लिम छात्रों को वाद-विवाद मे पराजित कर देता।
1947 के बाद यह भाग पाकिस्तान में चला गया परन्तु उसकी स्मृति को अमर कर उससे हिन्दू जाति को सन्देश देने के लिए डा. गोकुल चाँद नारंग ने उनका स्मारक यहाँ पर बनाने का आग्रह अपनी कविता के माध्यम से इस प्रकार से किया हैं।
हकीकत को फिर ले गए कत्लगाह में हजारों इकठ्ठे हुए लोग राह में|
चले साथ उसके सभी कत्लगाह को हुयी सख्त तकलीफ शाही सिपाह को|
किया कत्लगाह पर सिपाहियों ने डेरा हुआ सबकी आँखों के आगे अँधेरा|
जो जल्लाद ने तेग अपनी उठाई हकीकत ने खुद अपनी गर्दन झुकाई|
फिर एक वार जालिम ने ऐसा लगाया हकीकत के सर को जुदा कर गिराया|
उठा शोर इस कदर आहो फुंगा का के सदमे से फटा पर्दा आसमां का|
मची सख्त लाहौर में फिर दुहाई हकीकत की जय हिन्दुओं ने बुलाई|
बड़े प्रेम और श्रद्दा से उसको उठाया बड़ी शान से दाह उसका कराया|
तो श्रद्दा से उसकी समाधी बनायी वहां हर वर्ष उसकी बरसी मनाई|
वहां मेला हर साल लगता रहा है दिया उस समाधि में जलता रहा है|
मगर मुल्क तकसीम जब से हुआ है वहां पर बुरा हाल तबसे हुआ है|
वहां राज यवनों का फिर आ गया है अँधेरा नए सर से फिर छा गया है|
अगर हिन्दुओं में है कुछ जान बाकी शहीदों बुजुर्गों की पहचान बाकी|
शहादत हकीकत की मत भूल जाएँ श्रद्दा से फुल उस पर अब भी चढ़ाएं|
कोई यादगार उसकी यहाँ पर बनायें वहां मेला हर साल फिर से लगायें|