‘माशी की जीत’ पुस्तक की लेखिका डॉ. शील कौशिक हैं। जिनकी लगभग 29 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। इनमें कहानी संग्रह, लघुकथा संग्रह, कविता संग्रह, बालकहानी संग्रह, बालकविता संग्रह ,पंजाबी बालकथा संग्रह आदि के रूप में कई प्रमुख पुस्तकें सम्मिलित हैं।
डॉ.शील कौशिक कहानीकार, कवयित्री, निबंधकार, समीक्षक और बाल साहित्यकार हैं । उन्होंने अपनी बहुआयामी साहित्यिक शैली के माध्यम से हिंदी बाल साहित्य के भंडार में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
वास्तव में यह पुस्तक लेखिका की कहानियों का संग्रह है । जिसमें कुल 16 कहानियों को स्थान दिया गया है।
पुस्तक की कहानी ‘टीटू कबूतर’ जहां पक्षियों के प्रति बच्चों के स्वाभाविक आकर्षण को प्रकट करती है, वही ‘चिंटू की पसंद’ में चिंटू को अंधविश्वास से मुक्ति मिलती है । ‘चिड़ियों की चहक’ कहानी के माध्यम से इस मनोवैज्ञानिक तथ्य को सिद्ध किया गया है कि पशु पक्षी भी प्रेम की भाषा का सम्मान करते हैं और उसे अच्छी प्रकार समझने की क्षमता भी रखते हैं। ‘दोस्ती’ और ‘वो काटा’ भी पशु पक्षियों व जीवों पर दया करने का सनातन संस्कृति का शाश्वत पाठ पढ़ाती हुई प्रतीत होती हैं । जबकि ‘पेड़ हमारे जीवन साथी’ नामक कहानी पर्यावरण के प्रति मानव मात्र के कर्तव्य को प्रकट करते हुए जनसाधारण को जागरूक करती हुई अपना मजबूत संदेश देती है। ‘मेरी दादी’ ‘विकास मेरा नाम’ और ‘विश्वास की जड़ें’ भी अलग-अलग पाठक को न केवल प्रभावित करती हैं बल्कि कोई ना कोई महत्वपूर्ण संदेश देकर अपनी जीवंतता को भी प्रकट करती है।
इसके अतिरिक्त पुस्तक की शीर्ष कहानी ‘माशी की जीत’ हमें समय का सदुपयोग करने, अपनी दिनचर्या को नियमित, संतुलित और मर्यादित बनाने, प्रतिदिन योगाभ्यास और परिश्रम करने की शिक्षा देती है। स्पष्ट है कि जिस मनुष्य के भीतर ये गुण होते हैं, वह अपनी हार को भी जीत में बदलने का माद्दा रखता है। इसी आशय को यह कहानी बहुत मजबूती के साथ प्रस्तुत करती है।
वास्तव में किसी भी लेखक की पुस्तक या उसकी कोई भी कहानि या आलेख तब तक जनोपयोगी नहीं माना जाता । जब तक वह कोई ना कोई महत्वपूर्ण संदेश अपने पाठक को देने में सफल नहीं होता। इस पुस्तक के विषय में यह कहा जा सकता है कि इसकी प्रत्येक कहानी कोई ना कोई ऐसा संदेश देती है जो हमें जीवंतता प्रदान करती हुई अनुभव होती है । किसी भी लेखक की सफलता इसी में निहित होती है कि वह अपने पाठक को जीवन्त बनाए रखे और जीवन के प्रति सजग और जागरूक बनाए । प्रकृति और पर्यावरण के प्रति मित्रता करने के लिए प्रेरित करे और अपने जीवन को मर्यादाओं में बांधे रखने की शिक्षा दे। निश्चित रूप से लेखिका डॉ सुशील कौशिक पुस्तक के माध्यम से अपने इस महत्वपूर्ण संदेश को देने में सफल रही हैं, इसलिए उनके प्रयास का जितना अभिनंदन किया जाए उतना कम है।
डॉ. शील कौशिक की कहानियों के बारे में सुकीर्ति भटनागर ठीक ही लिखती हैं- “डॉ.शील कौशिक की कहानियां संदेशपरक होने के साथ-साथ कथानक में नयापन लिए हुए हैं । जो बालकों को नई दिशा प्रदान करने में पूर्णत: सक्षम हैं। यह कहानियां स्वत: ही शीतल धार सी बच्चों के कोमल हृदय में समाहित होती चली जाती हैं।”
‘चिड़ियों की चहक’ में लेखिका लिखती हैं -”काव्या ने चारों ओर नजर घुमाकर देखा की चिड़ियां इसी छत पर इकट्ठी हैं। तभी वह चौंकी । अरे ! यह घर तो मेरे दोस्त वेदांत का है। उसकी छत पर तो बहुत सारी चिड़ियां आती हैं।
काव्या बहुत देर तक खड़ी चिड़ियों को देखती रही उसके पापा के पुकारने पर उस का ध्यान भंग हुआ। वह पापा के साथ नीचे चली गई। काव्या के मन मस्तिष्क में चिड़िया घर कर गई। शाम को पार्क में खेलते समय काव्या ने वेदांत से पूछा – ‘कल मैंने तुम्हारे घर की छत पर बहुत सी चिड़ियां देखी। इतनी चिड़िया तुम्हारे यहां कैसे आईं?
‘मेरे पापा प्रतिदिन सुबह चिड़ियों के लिए छत पर दाना डालते हैं और मिट्टी के बर्तन में पानी रखकर आते हैं।’
काव्या की समझ में आ गया।
इस छोटे से संवाद ने बहुत बड़ा संदेश दे दिया कि जीवों पर दया करनी चाहिए और यह भी कि मनुष्य का फर्ज है कि वह अन्य जीवों को भी जीने का अवसर प्रदान करे। अपनी नेक कमाई में से पशु पक्षियों के जीवन के कल्याण के लिए भी दान करे।
पुस्तक में कुल 88 पेज हैं। पुस्तक का मूल्य ₹200 है। पुस्तक के प्रकाशक साहित्यागार , धामाणी मार्केट की गली, चौड़ा रास्ता जयपुर, 302003 हैं।
पुस्तक प्राप्ति के लिए 0141 -2310785 व 4022 382 नंबरों पर संपर्क किया जा सकता है।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत