मोहम्मद बिन कासिम का आक्रमण और हिन्दू
यूँ तो अरब वालों के आक्रमण भारत पर 638 ईसवी से ही प्रारम्भ हो गए थे, परन्तु प्रमुख आक्रमणकारी के रूप में मोहम्मद बिन कासिम 712 ईस्वी में भारत भारत आया । जिसने सिंध के तत्कालीन हिन्दू राजा दाहिर से युद्ध किया। राजा दाहिर ने अपने देश की संस्कृति व धर्म की रक्षा के लिए प्राण-पण से युद्ध किया। युद्ध के उपरान्त मोहम्मद बिन कासिम ने अनेकों प्रकार के अत्याचार किए। इसका कारण केवल एक ही था कि वह भारत पर इस्लाम के साम्राज्यवादी चिन्तन को लेकर चढ़कर आया था। इस्लाम का प्रचार प्रसार करना और विधर्मियों का विनाश करना उसकी तलवार का प्रमुख उद्देश्य था।
अपनी तलवार के इसी उद्देश्य से प्रेरित होकर मोहम्मद बिन कासिम ने अनेकों मन्दिरों का विध्वंस किया और काफिर हिन्दुओं को दण्डित करने के दृष्टिकोण से अनेकों मूर्तियों को विखण्डित कर दिया। उसने कितने ही लोगों का बलात धर्म परिवर्तन किया और बहुत से भारतवासियों को यहाँ से गुलाम बनाकर इराक भेज दिया गया।
दमन और अत्याचार के गाड़ दिए स्तम्भ।
शिकारगाह भारत बना सफल हुए प्रपंच।।
मोहम्मद बिन कासिम के नेतृत्व में किए गए इस आक्रमण का एक उद्देश्य भारत के मन्दिरों की लूट भी था। उस समय कराची में समुद्र के किनारे पर स्थित एक मन्दिर की बुर्जी पर बहुत बड़ी मात्रा में सोना मंढा हुआ था, जिसे अरब के व्यापारी दूर से देखा करते थे । मन्दिर के उस सोने का प्रतिबिम्ब पानी में पड़कर जब दीखता था तो वह उनके लिए बहुत अधिक लालच का विषय हो जाता था। उसी से प्रेरित होकर अरब के व्यापारियों ने आक्रमणकारियों का रूप बनाकर अर्थात लुटेरे डकैत गिरोह का निर्माण कर भारत पर आक्रमण किया था । भारत के इतिहास में अंग्रेजों को तो व्यापारी के रूप में आए लुटेरे के रूप में पढ़ाया जाता है, परन्तु वास्तव में इन इस्लामिक लुटेरों के बारे में यह तथ्य स्पष्ट नहीं किया जाता कि ये सांप8 आधार पर डकैत बनकर भारत आए और देर तक यहाँ डकैती मारते रहे । यदि उन लोगों की आस्था मन्दिरों में होती और मानवता उनके विचारों में कहीं स्थान प्राप्त किए होती तो वह भारत पर साम्प्रदायिक दृष्टिकोण के वशीभूत होकर कभी आक्रमण नहीं करते।
महमूद गजनवी के आक्रमण
महमूद गजनवी मोहम्मद बिन कासिम के बाद भारत पर आक्रमण करने वाला एक प्रमुख इस्लामिक आक्रमणकारी था । इसने भी अपने समय में भारत पर इस्लामिक मजहबी दृष्टिकोण से प्रभावित होकर ही आक्रमण किया था। मन्दिरों की लूट और भारत में इस्लाम का प्रचार – प्रसार करना उसका भी प्रमुख उद्देश्य था । यही वह विदेशी आक्रमणकारी था जिसने 1026 ई0 में भारत के प्रसिद्ध सोमनाथ मन्दिर पर भी आक्रमण किया था । यद्यपि गुर्जर शासक भीमदेव के नेतृत्व में इस विदेशी आक्रमणकारी को वहाँ से भगाने में भारत को सफलता मिली, परंतु इसके पश्चात कई बार भारत की सांस्कृतिक अस्मिता के प्रतीक सोमनाथ के मन्दिर को तोड़ने का काम विदेशी मुस्लिम आक्रमणकारियों ने किया । उनका यह कार्य साम्प्रदायिक विद्वेष भाव से प्रेरित होकर ही किया गया था।
हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि 50,000 योद्धाओं के बलिदान के पश्चात ही महमूद गजनवी सोमनाथ के मन्दिर को तोड़ने में सफल हुआ था । उस समय गुर्जरेश्वर भीमदेव भी उस विदेशी लुटेरे शासक के विरुद्ध आक्रमणकारी के विरुद्ध संघर्ष कर रहे थे । वह स्वयं भी युद्धभूमि में गम्भीर रूप से घायल हो गए थे। उनके घायल होने के उपरान्त ही महमूद गजनवी मन्दिर विध्वंस के अपने कुकृत्य को करने में सफल हो पाया था । जब राजा भीमदेव को होश आया तो उन्होंने जालौर व अजमेर जैसे अन्य राज्यों के राजाओं से संपर्क साधा और सोमनाथ के मन्दिर के तोड़े जाने की घटना को राष्ट्रीय अस्मिता से जुड़ा प्रश्न बताकर इस विदेशी आक्रमणकारी का मिलकर सामना करने का निवेदन उन राज्यों के शासकों से किया । ऐसा करके राजा ने उन राजाओं के सम्मान को झकझोरने का तो प्रयास किया ही साथ ही अपने स्वयं के राष्ट्रभक्त और राष्ट्रवादी होने का प्रमाण भी दिया ।
भीम ही शक्ति हमारी भीम हमारी वीरता,
भीम हमारा पराक्रम भीम हमारी धीरता ।
भीम को पहचान लो ए हिंद के प्रहरियों !
भीम हमारा तेज है भीम हमारी तेजस्विता।।
यह एक अच्छी बात थी कि जिन राज्यों से राजा भीमदेव ने सैनिक सहायता प्राप्त करने का आवेदन किया था उन सबने राजा भीमदेव के इस निवेदन को स्वीकार किया ।तब तक महमूद गजनवी भी सोमनाथ के इर्द-गिर्द के क्षेत्रों में रहकर मारकाट , लूट व अन्य पैशाचिक अत्याचार कर रहा था। राजा भीमदेव को उस नरपिशाच का भारत में रुकना पल – पल के लिए कठिन होता जा रहा था । जिन राजाओं ने राजा भीमदेव को अपनी सैन्य सहायता प्रदान की उन्होंने भी राष्ट्रीय अस्मिता से जुड़े इस गंभीर प्रश्न को अपनी स्वयं की प्रतिष्ठा से जोड़कर देखा और उन्होंने यथाशीघ्र अपनी सैन्य सहायता राजा भीमदेव को उपलब्ध कराई। इन सारे तथ्यों का उल्लेख श्री के0एम0 मुंशी ने अपनी पुस्तक ‘इंपीरियल गुर्जर्स’ में किया है । उनके द्वारा हमें ज्ञात होता है कि जब महमूद गजनवी भारत में जी भरकर लूटपाट करते हुए नरसंहार करने के पश्चात अपने देश के लिए लौट रहा था तो भारी गुर्जर सेना ने आक्रमण करके उसकी अधिकांश सेना को काट डाला था। उसके बहुत से तुर्की योद्धा कैदी हो गए थे जो बाद में हिन्दू होकर यहीं बस गए।महमूद गजनवी से अपनी पराजय का यह प्रतिशोध राजा भीमदेव और उनके साथियों ने बड़े गोपनीय ढंग से और रणनीतिक कौशल के साथ लिया था । यह दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य है कि इतिहास में उसकी विजय तो बताई जाती है , परंतु उसको पराजय देने वाले भीमदेव और उनके साथी राजाओं के बारे में कुछ नहीं लिखा जाता ।
महमूद ग़ज़नवी ने 11वीं शताब्दी में भारत के उत्तर पश्चिम पर जब आक्रमण करने आरम्भ किए तो उसके आक्रमणों का उद्देश्य भी हिन्दू धर्म स्थलों को तोड़ना, मूर्तियों का विनाश करना और भारत का इस्लामीकरण करना था। सोमनाथ के प्रसिद्ध मन्दिर के अतिरिक्त इस विदेशी इस्लामिक हमलावर ने मथुरा, थानेसर,उज्जैन के मन्दिरों का भी बड़ी मात्रा में विध्वंस किया था। उसके दरबार के इतिहासकार अल-उत्बि के अनुसार भारत पर उसके आक्रमण इस्लाम के प्रसार और गैर-इस्लामिक प्रथाओं के विरुद्ध एक जिहाद का भाग थे।
उसके बारे में इतिहास का यह भी एक कुख्यात तथ्य है कि इस्लाम की उग्र मजहबी सोच और हिन्दू विरोधी भावना के वशीभूत होकर उसने केवल मथुरा से ही 5000 हिन्दुओं को गुलाम बनाया। गुलाम बने अपने इन हिंदू परिजनों और प्रियजनों को बचाने के लिए उस समय कितने लोगों ने अपना बलिदान दिया होगा और इस सारी स्थिति में कितना बड़ा साम्प्रदायिक दंगा फैला होगा? – इसका कहीं कोई उल्लेख नहीं मिलता। लगता है उसे जानबूझकर दबा दिया गया। जिससे कि ऐसा लगे कि हिन्दू ने अपने ऊपर हो रहे इस्लामिक अत्याचारों का कहीं प्रतिशोध नहीं किया या इस भ्रान्त धारणा को स्थापित किया जा सके कि इस्लाम ने बड़ी शान्ति के साथ भारत के लोगों का इस्लामीकरण किया था।
इसी प्रकार के दंगे इस्लाम के आक्रमणकारियों या शासकों के द्वारा रचाये गए प्रत्येक नरसंहार और उसके बाद लोगों को गुलाम बनाने की लगी मंडियों के विरोध में होते रहे होंगे, जो हिन्दुओं के प्रतिशोध के ही प्रतीक थे, पर उन्हें भी इतिहास में कहीं स्थान नहीं दिया गया।
जो लोग यह कहते हैं कि इस्लाम के हर एक आक्रमणकारी ने भारत में शान्ति के मजहब इस्लाम को शान्ति के द्वारा ही प्रचारित – प्रसारित किया और उन्होंने हिन्दुओं के प्रति कभी कोई साम्प्रदायिक सोच नहीं रखी, उन्हें समझना चाहिए कि सामरिक इतिहासकार विक्टोरिया स्कोफील्ड के अनुसार “महमूद ग़ज़नवी के पिता ने काबुल घाटी व गांधार को हिन्दुओं से मुक्त करने का प्रण लिया था, जिसे उसके उत्तराधिकारी ने कायम रखा। 980 ई. तक गान्धार इलाके पर हिन्दूशाही राजाओं का राज था, जिनके अन्तिम राजा जयपाल को सुबुक्तगीन ने परास्त किया था।”
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक उगता भारत