इस्लामिक आक्रमण और हिन्दू दमन
उत्पीड़न और मजहब का चोली दामन का साथ है। जहाँ मजहबी सोच है वहाँ विपरीत सम्प्रदाय के लोगों का उत्पीड़न अवश्य है । उत्पीड़न मजहब के उग्रवादी स्वरूप को प्रकट करता है । जहाँ तक इस्लाम की बात है तो इसके मानने वाले प्रत्येक शासक ने अपने शासनकाल में पहले दिन से ही काफिरों , विधर्मियों या विपरीत सम्प्रदाय वाले लोगों के साथ उत्पीड़नात्मक कार्यवाही करने में किसी प्रकार की कमी नहीं छोड़ी ।
भारत वर्ष के इतिहास पर भी यदि दृष्टिपात किया जाए तो पता चलता है कि यहाँ भी लोगों का जिस दिन से इस्लाम से परिचय हुआ उसी दिन से उग्रवाद और उत्पीड़न की कार्यवाही के काले पृष्ठ भारत के इतिहास के साथ जुड़ने लगे। भारतवर्ष के सम्पर्क में आते ही इस्लाम के आक्रमणकारियों ने यहाँ के असंख्य लोगों का बलात धर्म परिवर्तन कराने के साथ-साथ उन पर अमानवीय अत्याचार करते हुए ऐसे- ऐसे निर्दयतापूर्ण नरसंहार किए जिनका उल्लेख करने मात्र से लेखनी कांप जाती है। इस्लाम के शासकों के इस प्रकार के अत्याचारों को इस्लामी पक्ष के तथाकथित विद्वानों और इतिहास लेखकों ने भारत के इतिहास से या तो हटा दिया है या उन्हें बहुत कम कर के स्थान दिया है। यद्यपि कई ऐसे निष्पक्ष मुस्लिम विद्वान भी रहे हैं जिन्होंने अपने-अपने शासकों के शासनकाल में हुए साम्प्रदायिक अत्याचारों या दंगों का पूर्णतया सटीक चित्रण किया है और निष्पक्ष जानकारी हमें दी है।
मिटाये गये शिक्षा केन्द्र
इन साम्प्रदायिक इस्लामिक शासकों के शासनकाल में हिन्दुओं के अनेकों धर्म स्थलों का विनाश किया गया। शिक्षा के ऐसे कई भव्य मन्दिरों का विनाश किया गया जो कभी अपने समय में सम्पूर्ण संसार के शिक्षा केंद्र के रूप में विख्यात रहे थे । इन शिक्षा केंद्रों से उस समय का सारा संसार लाभान्वित होता था । कितने ही ज्ञान-विज्ञान के आविष्कार इन शिक्षा केंद्रों, विश्वविद्यालयों इस गुरुकुलों के माध्यम से उस समय किए गए थे। ज्ञान विज्ञान के इन सारे केंद्रों को नष्ट करना मानवता का बहुत बड़ा अहित था। इन शिक्षा केंद्रों का विध्वंस होना कुछ ईटों की दीवारों का गिर जाना मात्र नहीं था, बल्कि इनका गिरना मानवता का पतित होना इतिहास में उल्लेखित किया जाना अपेक्षित था। जिसे इतिहासकारों ने केवल ईटों की कुछ दीवारों का गिर जाना मात्र ही माना है। जिससे इस प्रकार के इतिहासकारों की निष्पक्षता भी संदिग्ध हो जाती है। भारत में ज्ञान विज्ञान का उल्लेख करना भी इतिहास का एक आवश्यक अंग माना गया है । जबकि वर्तमान प्रचलित इतिहास ज्ञान विज्ञान के केंद्रों के विध्वंस पर विलाप करना भी उचित नहीं मानता । इससे स्पष्ट होता है कि यह इतिहास राजनीतिक लोगों की गुलामी करने वाले चाटुकार इतिहासकारों के द्वारा लिखा गया है ।
क्रूरता और अपराध पर वाणी हो गई मौन।
पाप पर हुए शांत सब सच को सच कहे कौन ?
देशों का हिन्दू अतीत
मजहबी आधार पर लोगों के बीच भेदभाव करने और उन पर अत्याचार करने के लिए प्रसिद्ध रहे मुस्लिम शासकों द्वारा हिन्दुओं को गुलाम बना बनाकर मण्डियों में कौड़ियों के दाम बेचा गया। अनेकों लोगों को यहाँ से गुलाम बनाकर अपने देश ले जाकर वहाँ उनके साथ कैसे – कैसे व्यवहार किए गए ? – उनका उल्लेख किया जाना भी असम्भव है, क्योंकि यह सब इतिहास के अंधकार में ऐसे विलीन हो गए हैं जैसे थे ही नहीं। चाहे आज पाकिस्तान, अफगानिस्तान, मलेशिया जैसे देश पूर्णतया इस्लाम के रंग में रंग गए हैं, लेकिन वहाँ जो लोग आज निवास कर रहे हैं उनके पूर्वजों को इस्लाम के इसी प्रकार के अत्याचारों से गुजरना पड़ा है । उन अत्याचारों के फलस्वरूप ही आज वहाँ पर इस्लाम का परचम लहरा रहा है। इन सभी देशों का हिन्दू अतीत रहा है। जिसे या तो वे अब जानते नहीं हैं या जानकर भी उस पर मौन रह जाते हैं ।भारत के लोगों को भी ऐसा इतिहास पढ़ा जाता है जिससे वे इन देशों के हिन्दू अतीत के बारे में परिचित ना हो सकें।
कितना दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य है कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान और मलेशिया के ये लोग अपने पूर्वजों के उस समय के बलिदान को न तो बलिदान कह सकते हैं और न ही अपने धर्म को बचाए रखने की उनकी प्रतिज्ञा का गुणगान कर सकते हैं ? वह बेचारे केवल एक बात जानते हैं कि ‘जाहिल लोग’ उस समय यहाँ रहते थे और उनको मार काटकर यहाँ पर इस्लाम ने अपना ‘भाईचारा’ फैलाने का काम आरम्भ किया था। वह जानते हुए भी उन तथाकथित ‘जाहिल लोगों’ को अपना पूर्वज कहने में संकोच करते हैं। यह बात तो समझ आ सकती है कि इन देशों के लोग अपने पूर्वजों को जाहिल कहें यह समझें, परंतु भारत के लोग भी उस समय के पाकिस्तानियों को जाहिल ही कहें, यह बात समझ नहीं आती। क्योंकि पाकिस्तान समेत इन सभी देशों के पूर्वज राम और कृष्ण की सन्तानें रही हैं।
राम – कृष्ण थे पूर्वज नहीं रहा यह ज्ञान ।
सच को सच नहीं मानते फैल गया अज्ञान।।
मजहब की यह नीचता, मजहब का प्रकोप ।
मजहब की यह दुष्टता, किया सत्य का लोप।।
इस दृष्टिकोण से देखा जाए तो मजहब व्यक्ति को सबसे पहले अपने गौरवपूर्ण इतिहास से काटता है। अपने पूर्वजों से काटता है और उस श्रंखला से काट देता है जो सृष्टि के प्रारम्भ से उसे किसी कुल व गोत्र परंपरा से जोड़े रखने का काम करती है। मजहब के इसी विशेष गुण से प्रभावित होकर भारत के मुस्लिम अपने आपको राम और कृष्ण की सन्तान कहने से संकोच करते हैं । यहाँ तक कि वह इस तथ्य को जानकर भी उससे दूरी बनाकर रखते हैं कि हमारे पूर्वज भी कभी हिन्दू थे।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत