गतांक से आगे….
इनसान के शरीर के लिए जिन तत्वों की आवश्यकता होती है वे लगभग सभी दूध में मिलते हैं। दुनिया में ऐसा कोई विटामिन नही है, जो दूध में न मिलता हो। मध्य पूर्व के देशों में लिखी गयी पुस्तकों में भी इस बात पर चर्चा मिलती है कि क्या दूध पशु के रक्त से बनता है? इस तथ्य को नकारा गया है। अधिकांश लोगों का कहना है कि कुदरत की ओर से दी गयी यह एक गंरथि है, जिनमें से यह रस निकलता है। सूफियों ने अपने भोजन में सबसे अधिक दूध को ही अपनाया है।
मध्य पूर्व के देशों में खनिज तेल निकालने से पहले सबसे बड़ा व्यवसाय पशु पालन ही था। इसलिए गाय, बकरी, शीप भेड़, और ऊंटनी के दूध का विवरण अनेक स्थानों पर मिलता है। ऊंट अरब देशों का सबसे अधिक उपयोगी पशु है, इसलिए उसके दूध का कारोबार आज भी चलता है। दूध का महत्व इसलाम में इस बात से आंका जा सकता है कि जो पशु दूध दे रहा हो, उसे काटने की सख्ती से मनाही है। जो पशु गर्भ धारण किये हुए हो उस बकरी, गाय, ऊंटनी और भेड़ को काटना गैर इसलामी है। धार्मिक प्रक्रिया कितनी ही अनिवार्य हो, लेकिन उस समय भी गर्भवती मादा की हत्या नही की जा सकती। यह सिद्घांत इस बात का द्योतक है कि एक नये आने वाले प्राणी को और उसकी माता को तुम कत्ल नही कर सकते। यानी आदमी कितना ही हिंसक बने, उसे धर्म पग पग पर मारने से रोकता है। सऊदी अरब में तो ऊंट के कारवां के पास से निकलवे वाले वाहन की गति दस किलोमीटर कर दी जाती है, क्योंकि गर्भवती ऊंटनी के गर्भपात की घटना घटित हो सकती है। पशु हमारे लिए दूध का सबसे बड़ा स्रोत है, इसलिए उसके प्रति दया अत्यंत अनिवार्य है। दुनिया में जिस दिन दूध देने वाले पशु नही होंगे उस दिन यह विश्व दूध जैसे अमृत से वंचित हो जाएगा। मनुष्य की क्रूरता कुछ भी कर सकती है, लेकिन ईश्वर के नियम और पर्यावरण का चक्र इस प्रकार का है कि बहुत चाहने पर भी मनुष्य कुछ नही कर सकता। इसलिए मांसाहारियों को इस बात का उत्तर देना होगा कि वे अपनी लपलपाती जबान के लिए अपने पेट को जानवरों का कब्रिस्तान बनाएंगे या फिर दूध जैसी शुद्घ, सात्विक और पवित्र वस्तु की इस धारा को जग में प्रवाहित होने देंगे? दूध नही होगा तो दही कहां से होगा? दही के अभाव में मानव समाज अनेक बीमारियों से अपना छुटकारा प्राप्त नही कर सकेगा। दही भोजन का हिस्सा तो है ही, अनेक भयंकर बीमारियों की दवा भी है। प्रसिद्घ यूनानी बू अली सीना का कहना हे कि दूध और दही ईश्वर की ओर से दिये गये वे शस्त्र हैं जिनसे इनसान अपने असंख्य शत्रुओं कीटाणुओं से लड़ता है और जीवन संग्राम में अपनी विजय पताका फहराता है। दुनिया के किसी भी महाद्वीप में रेगिस्तान का भाग हो, वहां दो वस्तुएं स्पष्टï दिखाई पडेंग़ी-एक होगा ऊंट और दूसरा होगा वृक्ष। कुदरत ने ये दो भेंटें उन लोगों के लिए दी हैं जिनका जीवन वहां संकटों से भरा है। ऊंट को रेगिस्तान का जहाज कहा जाता है। आज अंतरिक्ष में पहुंचा हुआ मानव जब रेगिस्तान की यात्रा पर निकलता है तो उसे इसी चार पांव वाले जहाज की आवश्यकता पड़ती है। खजूर का फल सामान्य भाषा में वहां तमर कहलाता है, जिसका अर्थ होता है फल। रेगिस्तानी प्रदेशों में जब कोई अन्य वृक्षों पर लगने वाले फल सरलता पूर्वक नही मिलते हैं तो जो उपलब्ध होता है उसी को फल कह दिया जाता है। उदाहरण के लिए अरबी व्यापारी जब भारत में आए तो यहां की इमली ने उन्हें बहुत प्रभावित किया, इसलिए वे उन्से तमरेहिंद कहने लगे। यह शब्द दूर दूर तक प्रचलित हो गया। यहां तक कि अंग्रेजों को जब इमली के लिएए योग्य शब्द नही मिला तो वे इसे टेमेरिंड कहने लगे, जो तमरेहिंद का अपभ्रंश है। अरब भूखंड में 19 देश हैं, जिन्हें अरब लीग का सदस्य कहा जाता है। इन सभी देशों में खजिन तेल नही मिलता, लेकिन हर जगह खजूर की फसल होती है। इसलिए आज भी अरबों का बड़ा व्यापार खजूर का ही है। भारत में सर्वाधिक खजूर अरब अमीरात से आता है। लेकिन कहा जाता है कि सऊदी अरब में एक विशेष प्रकार की प्रजाति है, जिसकी तुलना किसी अन्य देश की खजूर से नही की जा सकती। खजूर की इस जाति का नाम अजवा है। यह पैगंबर साहब को अत्यंत प्रिय थी। इसके लिए उनकी हदीस शरीफ है अल अजवतो मिलन जिन्नते, यानी यह स्वर्ग की पैदावार है। आज भी यह सबसे मूल्यवान और दुर्लभ खजूर मानी जाती है। पवित्र कुरान में 20 स्थानों पर खजूर का वर्णन आया है। सूरा मरियम की बीसवीं आयत से पच्चीसवीं आयत तक हजरत ईसा के जन्म का विवरण दिया गया है। खजूरी के वृक्ष को नखल कहा जाता है।
खनिज तेल प्राप्त होने से पूर्व तो किसी अरबवासी की संपन्नता इसी बात से आंकी जाती थी कि उसके पास खजूर के वृक्ष कितने हैं और ऊंटों की संख्या कितनी है? इसलिए अरबस्तान में तेल क्रांति आने से पूर्व अरबों के घरों की छत पर ये पत्ते ही डालते जाते थे। क्रमश:
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