ईश्वर का न्यायकारी स्वरूप जो हम सबका कल्याण करता है
आपके व आपके परिवार के प्रति अति शुभ कामनाओं के साथ सुप्रभातम।
ईश्वर न्याय कारी है क्योंकि ईश्वर न्याय करता है ।
वह हमारे प्रत्येक किए गए कर्म का फल कर्म के अनुसार देता है ।
इसलिए हम पूरे जीवन कर्म फल से बंधे हैं प्रत्येक चीज जो हम अपने जीवन में प्राप्त करते हैं चाहे सुख है चाहे दुख है चाहे धन हैं चाहे गरीबी है चाहे मान हैं चाहे अपमान है वह सब हमारे कर्मों का फल है।
कर्म फल से ही जीवन आयु और भोग मिलता है।
इस संबंध में ईश्वर दयालु नहीं है।
इस संबंध में केवल अल्लाह दयालु है जो अनाचार ,अत्याचार, व्यभिचार, हिंसा और गुनहा को भी माफ कर देता है ,परंतु ईश्वर ऐसा नहीं करता ।
यदि आप किसी को सम्मान दोगे तो सम्मान पाओगे ।
यदि आप किसी का अपमान करोगे तो अपमान पाओगे।
यदि आप किसी को धनसंपदा बांटोगे तो आपको धन संपदा प्राप्त होगी।
यदि आप सृष्टि में सभी से प्रेम करोगे तो आपको सर्वत्र सभी के द्वारा प्रेम मिलेगा।
यदि आप दान करोगे तो ईश्वर आप को और अधिक देगा। यह ईश्वर का विधान है
ईश्वर कभी भी हाथ पकड़कर किसी को कार्य करने से नहीं रोकता बल्कि कर्म करने में हम सभी को स्वतंत्रता प्रदान की हैं। ईश्वर तो केवल हमारे द्वारा किए गए कर्मों का फल देता है। इसलिए तो विद्वान कहते हैं कि कर्म फल भोगने में हम परतंत्र हैं।
आत्मा जो शरीर के अंदर साक्षी रूप में बैठा है वह एक बार हम को इंगित अवश्य करता है कि यह पाप है ।
अगर मनुष्य यही समझ गया और इंगित करने पर वही रुक गया और आत्मा की आवाज को पहचान गया तो वही मनुष्य बन गया।
इसीलिए ईश्वर ने वेदों में मनुष्य को मनुष्य या आदमी को आदमी या इंसान को इंसान बनाने की ही तो सारी शिक्षा दी है।
ईश्वर ने हमारे लिए वेद ज्ञान की पुस्तकें दी है ।जिसमें सब प्रकार का ज्ञान दिया है।
जैसे जब हम एक बाइक खरीदते हैं या कार खरीदते हैं तो उसके साथ एक बुकलेट मिलती है जिसमें उसके प्रत्येक पुर्जे के विषय में लिखा होता है ।
इसी प्रकार सृष्टि को रचने के बाद ईश्वर ने वेदों को आदि ऋषि अग्नि, वायु, आदित्य ,अंगिरा के माध्यम से उतारा है।
आओ लौट चलें वेदों की ओर।
आपका दिन शुभ हो।