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आज का चिंतन

प्राण प्रदाता है परमपिता परमेश्वर

शुभकामनाएं एवं सुप्रभातम।
परमपिता परमात्मा प्राण को देने वाला है।
प्राण आत्मा का सहायक है।
प्राण इस शून्य प्रकृति को चलाने वाला है।
इंद्र हमारे जीवन का संचालक है, जो अपने जीवन को ऊंचा करना चाहते हैं जो अपने जीवन का कल्याण करना चाहते हैं, वह इंद्र की उपासना करें।

अंबर में चंद्र मंडल, सूर्य मंडल, ध्रुव मंडल, सप्त ऋषि मंडल, भू:, भुव:,मह:,जन:तप: सत्यम, आरुणि: अगस्त अचंग आदि लोक लोकांतर समाए हुए हैं ,अर्थात ये सभी अंबर में रहते हैं।

अंतरिक्ष में हमारा प्रत्येक वाक्य रमण करता है ।इसी प्रकार से हमारे ऋषि और मुनियों द्वारा उच्चरित वाक्य एवं शब्द इस आकाश में भ्रमण करते रहते हैं। उनको हम अपनी बुद्धि यों के अनुकूल, अपनी विद्या के अनुकूल ,अपनी मेधा के अनुकूल, अंतरिक्ष से ग्रहण करते रहते हैं ।मेधा ,बुद्धि का संबंध अंतरिक्ष से है।

पृथ्वी हमारी माता है। हमारी दो प्रकार की माता होती हैं, एक जननी माता ,दूसरी पृथ्वी माता।
हमारे लिए अन्नआदि सभी वस्तुएं पृथ्वी से ही प्राप्त होती हैं। इसलिए पृथ्वी भी कल्याणकारी है। इस पृथ्वी पर आप कुछ भी बनना चाहते हैं बन सकते हैं ।आप वैज्ञानिक बनना चाहते हैं। आध्यात्मिक बनना चाहते हैं। शांति प्रदाता बनना चाहते हैं ।वैसे ही पृथ्वी पर बन सकते हैं ।वास्तव में पृथ्वी तो हमारी कामधेनु है। हमारी कामनाओं की पूर्ति करने वाली है ।पृथ्वी को वेदों ने देवी भी पुकारा है ।
पृथ्वी ही नाना प्रकार के मणि और मोतियों को, वज्रों को, विद्युत को प्रदान करती है।
संसार में तेज के कारण जल का उत्थान होता है, अर्थात उठता है। और जल से मेघ बनते हैं। मेघ से पृथ्वी पर वृष्टि होती है । नाना प्रकार की वनस्पतियों वृष्टि से उत्पन्न होती हैं। जिनको मनुष्य खाता है ।जिससे मनुष्य खाकर के ब्रह्मचर्य का पालन करें तो सर्वत्र सुरक्षित रहता है । उसकी स्मृति ऊंची होती है। अंतःकरण पवित्र होता है। बुद्धि पवित्र होती है। मन पवित्र होता है। वाणी पवित्र होती है । संसार की प्रत्येक अच्छी जानकारी शुद्ध बुद्धि से प्राप्त होती है।
ब्रह्मचर्य से बढ़कर संसार का कोई पदार्थ नहीं है।
ब्रह्मचर्य को ही प्राप्त करके लोमस मुनि महाराज बहुत लंबी आयु को प्राप्त करके मोक्ष को प्राप्त किए थे।
ब्रह्मचारी मनुष्य ही संसार में ऊंचा कहा जाता है। तेजस्वी कहा जाता है। आदित्य कहा जाता है। मृत्युंजय नाम से पुकारा जाता है।
रूद्र कहते हैं।
इसलिए ब्रह्मचर्य की रक्षा करो । मनुष्य यदि मृत्यु पर विजय प्राप्त करना चाहता है तो ब्रह्मचर्य का पालन करो।
ब्रह्मचर्य के कारण ही अगस्त मुनि महाराज ने तीनों समुद्रों का पान किया था।
अगस्त मुनि महाराज ने जिन तीन समुद्रों का पान किया था वह ज्ञान, कर्म, और उपासना नाम की तीन विद्या होती हैं। जो संसार रूपी समुद्र हैं। और इन 3 विद्याओं का पान करना इस संसार को पान कर लेना होता है ।इसका तात्पर्य कदापि यह नहीं कि जो हम पृथ्वी पर समुद्र भरा हुआ देखते हैं चारों ओर वह अगस्त मुनि ने पी लिया था। यह मात्र एक भ्रांति है। अगस्त मुनि के लिए जो कहा जाता है वह एक अलंकारिक भाषा है। जिसको केवल विद्वत जन ही समझ सकते हैं।
हमारे ऋषि मुनि और पूर्व के राजा महाराजा विमानों में घूमा करते थे। बुध बृहस्पति ,मंगल, चंद्रमा आदि अंबर में स्थित सभी मंडलों की यात्रा किया करते थे ।
रामचंद्र जी अयोध्या के लिए विमान से लौटे थे। हनुमान जी हिमालय पर्वत से संजीवनी बूटी अर्थातऔषधि लेने के लिए विमान से आए थे। उनके विषय में जो भ्रांति है उसको भी दूर कर दो कि वह आकाश से स्वयं उड़कर कर आए थे। ऐसा कदापि संभव नहीं हो सकता। इस प्रकार अगस्त मुनि के विषय में एवं हनुमान जी के विषय में इसके विपरीत कल्पना करना मात्र हास्यास्पद है, वास्तविकता से परे है।

हार्दिक शुभकामनाओं सहित
देवेंद्र सिंह आर्य एडवोकेट चेयरमैन उगता भारत

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