लगभग सारे से इतिहासकार और उनसे दीक्षित बौद्धिक गुलाम आपको ये तर्क देते मिल जाएंगे कि अंग्रेज भारत के हित में रेल ले आये । बड़े बड़े कंस्ट्रक्शन किये । आदि आदि ।
1929 में J Sunderland ने 33 साल की रिसर्च के बाद एक बुक लिखी #इंडिया_इन_बाँडेज ।उसी से प्रस्तुत है ।
” अमेरिका से लंदन और फिर वहां से भारत जाने के लिए हम भव्य स्टीमर का प्रयोग करते हैं ।जिसमे बहुत ही रुचिकर सहयात्रियों से आपका पाला पड़ता है , जिनमे व्यापारी और अन्य यात्री होते हैं , जिसमे बहुधा भारतीय सेना के ऑफिसर होते है जो छुट्टी में परिवार के साथ समय बिताकर भारत लौट रहे होते हैं ।हम बम्बई में उतरते हैं जो आपको पेरिस लंदन न्यूयॉर्क या वाशिंगटन की याद दिलाता है ।हमारे होटल इंग्लिश स्टाइल के होते हैं ।हम 1500 मील दूर स्थित कलकत्ता पहुँचने के लिए संसार के भव्यतम निर्मित रेलवे स्टेशन पहुचते है , जो कभी भारत की राजधानी हुवा करता था । कलकत्ता पहुँचने पर , जो महलों के शहर के नाम से जाना जाता है , उसके नाम से चमत्कृत नहीं होते।
इन स्टीमेरों का मालिक कौन है , जिससे हम भारत पहुँचते हैं ? ब्रिटिश । बम्बई के भव्य रेलवे स्टेशन का निर्माण किसने किया ? ब्रिटिश । कलकत्ता पहुँचने के लिए रेल का निर्माण किसने किया ? ब्रिटिश ।कलकत्ता की आलीशान बिल्डिंग्स का मालिक कौन है ? ज्यादातर ब्रिटिश । हमे पता चलता है कि बम्बई और कलकत्ता बड़े व्यापार के केंद्र हैं ।ये आश्रयजनक रूप से वृहद् व्यापार किसके हाथों में है ? ब्रिटिश । हमे पता चलता है कि भारत की ब्रिटिश सर्कार ने 40 000 के आसपास की रेलवे लाइन बिछाई है ; देश भर में संपर्क हेतु पोस्टल और टेलीग्राफ सिस्टम बनाया है ; इंग्लिश पैटर्न पर आधारित कानूनी कोर्ट बनाये हैं ; और अन्य बहुत से काम किये हैं भारत को यूरोपीय सभ्यता की दिशा में आगे ले जाने हेतु ।इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं कि भारत भ्रमण पर आया व्यक्ति यह बोले कि -” ब्रिटिश ने भारत के लिए कितना काम किया है ।” ” भारत के लिए ब्रिटिश शासन कितना ज्यादा लाभकारी है ।”
लेकिन क्या हमने सब कुछ देख लिया ? इसका दूसरा कोई पक्ष नहीं है क्या ? क्या हमने इस तथ्य की जांच कर ली कि इन भौतिक उपलब्धियों का आधार क्या है ? ये जो वैभव के लक्षण हमें दिख रहे हैं , क्या ये भारतीयो के बैभव के लक्षण है , या उनके शासक अंग्रेज मालिकान के वैभव के लक्षण है ?
अगर अंग्रेज यहाँ मौज मस्ती के साथ रह रहे हैं तो इस देश के लोग किस तरह से रह रहे हैं ? इन विलासी और भव्य महलों में जिन पर ब्रिटिश का कब्जा है और जिसके निर्माण की क्रेडिट वो खुद को दे रहे हैं , आखिर उसके निर्माण में लगे खर्च का भुगतान कौन कर रहा है ? इसी तरह रेलवे टेलीग्राफ और अन्य चीजों का भी ? क्या ब्रिटिश (भुगतान कर रहा है ) ? या उसका भुगतान इस देश से उगाहे गए टैक्स से हुवा है जो आज दुनिया का सबसे गरीब देश है ? क्या हम इस देश के गावँ और शहरों में रह रहे भारतीयों की दशा का अध्ययन कभी किया है ? इस देश का 80 प्रतिशत जनता रैयत है – यानि छोटा किसान जो जमीन की पैदावार पर गुजारा करता है ।क्या कभी हमने ये जानने का प्रयास किया है कि वो किस दशा में रह रहे हैं , उनकी हालत साल दर साल बेहतर हो रही है या बदतर हो रही है ?
विशेषकर क्या हमने उन अकालों के बारे में जान्ने का प्रयास किया है क्या , आधुनिक दुनिया की दिल दहलाने वाली घटना , जो भारत में मौत की बारिस कर रही है , जिसके परिणामस्वरूप प्लेग और संक्रामक रोगों का साया लोगों के सर पर मंडरा रहा है ? भारत को समझने के पूर्व भारत के इस पक्ष को भी परिचित होने की आवश्यकता है ।पिछले कुछ वर्षों के भारत के इतिहास का ये सबसे डिस्टर्बिंग तथ्य है जिसने क्रमिक अकालों के कारन प्लेग जैसी महामारियों को जन्म दिया है । “”
पेज 9 -11
अब यूरोप के लोग दरिद्रता से तंग आ चुके हैं , जो कि सभ्यता के एडवांस होने और एप्लाइड साइंस के प्रयोग के बावजूद भी अभिशप्त जीवन जीने को बाध्य है । गोरी नश्ल ,किसी ऐसे अनजान नियम के तहत जिसको वो खुद भी नही जानते, उनकी जनसँख्या में आश्चर्यजनक रूप से बढ़ोत्तरी हो रही है , और यूरोप जिसकी खुद की जमीन बहुत उपजाऊ नही है , उनके पास पर्याप्त धन जीने के लिए नही है ।हर जगह पर सभी शहरों में एक अकुलाहट है , और ग्रेट ब्रिटेन को छोड़कर सभी देशों में धनी व्यक्तिओ के प्रति एक अजीब सी दुर्भावना व्याप्त है। शासक निरंतर निचले तबके के विध्वंश होने से भयभीत रहता है , और ये बात उनके मन में निरंतर भरता रहता है कि खेती से कुछ नही होने वाला , और सुख सुविधा की नींव यानि “धन बैभव” सिर्फ व्यवसाय के विस्तार से ही मिल सकता है। एक्सपर्ट लोग दोनों (शासक और शासित) को यह बताते रहते हैं कि विशाल बाजार सिर्फ एशिया में मिलेगा, जहाँ पर मनुष्यों की बहुसंख्यक जनसंख्या निवास करती है , जिसने अपने आपको इस तरह विक्सित मानव समूह में सुरक्षित कर रखा है , कि उनके साथ व्यवसाय में अधिकतम लाभ मिलने की पूरी संभावना है ।ब्राजील के लोगों को 40% से ज्यादा पर बेंचने से बेहतर हिंदुओं और चीनियों से 10% पर बेंचना ज्यादा बेहतर होगा ।
– 1901 में छपी पुस्तक की प्रस्तावना से
Benjamin Tudela नाम का स्पेनिश यहूदी जिसने अपनी यात्रा 1159 या 1160 में विश्व के बहुतायत जगहों पाए 13 -14 साल की यात्रा पर निकलता है ।उसके पेशे के बारे में तो नहीं पता और न ये पता है कि वो धन कमाने निकला था कि वैज्ञानिक तथ्यों की खोज करने निकला था हाँ उसकी यात्रा वृत्तांत से इतना निष्कर्ष अवस्य निकलता है कि वो विश्व भर में फैले यहूदियों के नैतिक और धार्मिक स्थिति को जानना चाहता था।यद्यपि उसका भारत भ्रमण तुलनात्मक रूप से बहुत कम था उसके बर्लिन के Mr Asher द्वारा किये गए बेहतरीन अनुवादों से निकाले गए कुछ तथ्य यहाँ प्रस्तुत हैं । उसके 136 -143 पेजों से उद्धृत जानकारी नीचे उद्धृत हैं :—-
ये (Tigris) नदी नीचे जाकर इंडियन ओसियन में गिरती है (Persian gulf) जिसके बगल में एक Island (टापू) है जिसका नाम किश (Kish) है । इसका फैलाव 6 किलोमीटर है ।यहाँ के निवासी खेतीबाड़ी नहीं करते क्योंकि यहाँ कोई नदी नहीं है मात्र एक झरने को छोड़कर ; ; अतः पीने के लिए बरसाती पानी पर निर्भर हैं ।इसके बावजूद यहाँ बहुत बड़ा बाजार है जहाँ भारत के व्यापारी और इस टापू के निवासी अपना माल लेकर आते है ; और मेसोपोटामिया यमन और पर्शिया के लोग यहाँ से सिल्क छींट के कपडे flax, कॉटन पटुआ , mash (एक तरह की दाल) गेहूं जौ मिलेट राइ और अन्य तरह की वस्तुए यहाँ से आयातित करते हैं, साथ में वे ढेर सारे मसाले भी इम्पोर्ट करते हैं ।और इस टापू के निवासी दोनों तरफ से मिलने वाली brockrage से अपना गुजारा करते हैं ।इस टापू पर 500 यहूदी हैं।
यहाँ से 10 दिन की समुद्री यात्रा के बाद El-Cathif नामक शहर है जहाँ पांच हजार इस्रायली बसते हैं ।इसके आस पास pearls पाये जाते हैं: Nisan के महीने के 24वें दिन (अप्रैल) में बरसात की बड़ी बड़ी बूंदे पानी की सतह पर गिरती हैं जिसको पीकर Reptils अपना मुहं बंद करके पानी की तलहटी में चली जाती हैं : और Thisri (अक्टूबर) के मध्य में कुछ लोग रस्सी की मदद से समुद्र में गोता लगाकर इन Reptiles (सीपी) को इकठ्ठा करते हैं और ऊपर लाकर इनको खोलते हैं और उसमे से Pearls / मोती बाहर निकाल लेते हैं ।
यहाँ से 7 दिन की दुरी पर chulam नामक जगह है जो सूर्य की पूजा करने वालों के अधिकार में है । ये लोग कुश के वंशज हैं , ये एस्ट्रोलॉजी के बहुत शौक़ीन हैं और सबके सब काले हैं ।
ये देश व्यापार के मामले में अत्यंत विस्वास्नीय है , और जबी भी इनके यहाँ कोई भी विदेशी व्यापारी इनके बंदरगाह में दाखिल होता है ,तो राजा के तीन सचिव तुरंत इनकी जहाज की देखभाल और रिपेयरिंग में लग जाते हैं , तथा उनका नाम लिखकर तुरंत राजा को सूचित करते हैं। राजा इनके सामान की सुरक्षा का दायित्व लेता है ,जिसको वो खुले मैदान में बिना किसी रखवाली के छोड़ सकते हैं ।
राजा का एक अफसर बाजार में बैठता है जो इधर उधर गिरी पड़ी लावारिश वस्तुओं को लाकर इकठ्ठा करता है और कोई व्यक्ति जो उन वस्तुओं की minute डिटेल्स बताकर उनको वापस प्राप्त कर सकता है।ये संस्कृति राजा के पूरे साम्राज्य में प्रचलित है।
इसी पुस्तक के पेज 59 – 60 से।
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नोट – इसके विपरीत रोमन साम्राज्य की मुख्य संस्कृति लूटमार (Plunder) गुलामी (Slavery) और सैन्य शक्ति पर आधारित थी ।
और इंग्लैंड का तो जन्म भी नहीं हुवा था , जिसकाल ये वृत्तांत है।
भारत के ऐतिहासिक सम्पन्नता का वर्णन : इन वस्तुओं का निर्माता कौन था ??
– जब ब्राम्हण मात्र पूजा पाठ और शिक्षक था।
– क्षत्रिय योद्धा था ; राजसत्ता का मालिक
– वैश्य व्यापार करता था
और
– शुद्र दलहित चिंतकों के अनुसार menial job / घृणित काम करने को बाध्य था।
India in the fifteenth century .
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being a collection of
“Narratives of Voyages of India”
By
R. H. Major Esq., F.S.A.
से उद्धृत
“Introduction page v
50 AD में egypt रोमन साम्राज्य का हिस्सा हो चूका था , जोकि रोम के लिए भौगोलिक और व्यावसायिक दृस्टि से बहुत महत्व्पूर्ण था ।यह रास्ता भारतीय समुद्र से जोड़ने का रास्ता / highway था , जोकि पश्चिम के विलासी और महंगी बस्तुये जिनको सुदूर पूर्व से प्राप्त करना संभव था ; जो इनके विजय के कारन (egypt पर विजय) पैदा हुई ख़ुशी और गौरव (grandeur) की भूंख को शांति करने के लिए आवश्यक था।
Erythrean sea के Periplus ( जो समभवतः Arrian था जिनके हम दक्कन के खूबसूरत और सटीक वर्णन के आभारी हैं ) , का लेखक बताता है किHippalus,जो कि भारतीयों से व्यापर करने वाली नावों का कमांडर था; किस तरह अरब की खाड़ी में फंस जाता है ; जो अपने पूर्व में अनुभव के आधार पर कुछ प्रयोगों को आजमाता है और उन्ही प्रयासों से दक्षिण पश्चिमी मानसून के कारण मारी- सस पहुँच जाता है ।
Pliny ने भी इसका विवरण दिया है । वह कहता है —- इस बात को नोटिस में लिया जाना चाहिए कि चूँकि भारत हर वर्ष हमारे ‘ 550 मिलियन Sesterces (रोमन सिक्के हमारे यहाँ से ले लेता है और उसके बदले वो जो वस्तुएं (Wares) हमको देता है , वो उनकी प्राइम मूल्य की 100 गुना दाम पर बेंची जाती हैं ‘ ।जिस धनराशि का वर्णन किया गया है उसकी गणना हमारे धन का 1,400,000 (14 लाख ) डॉलर है।
पेज – v और vi
उस समय जो सामान (भारत से) आयात होता था उसमे महन्गे स्टोन्स और Pearls , मसाले और सिल्क थे । इतिहास हमे बताता है कि जिन pearls और diamonds की रोमन में बहुतायत से मांग थी ,उनकी सप्लाई मुख्यतः भारत से होती थी ।
Frankincense ,Cassia ,Cinnamon जैसे मुख्य मसाले पूजा के लिए नहीं बल्कि मुर्दों को जलाने में किया जाता था ; और सिल्क जिसका एक मात्र निर्यातक भारत हुवा करता था , रोम की धनी महिलाओं की पहली पसंद थी ; और तीसरी शताब्दी के उत्तरार्ध में Aurelian के समय में (सिल्क ) इसका मूल्य सोने में आँका जाता था (was valued at its weight in gold ) ।
नॉट – अब मैं महान फलित चिंतको से पूंछना चाहता हु कि भारत के चार ऊपर वर्णित वर्णों में से कौन वर्ण इसका मैन्युफैक्चरिंग करता था ?
और अगर मैन्युफैक्चरर है तो वो दरिद्र तो नहीं रहा होगा ?
और निर्माण से निर्यात तक के में किस वर्ण के लोग शामिल थे।
क्योंकि 3000 साल तक की बात दलितों के दलितापे की बात करते हैं ; तो क्या ये दलित चिंतकों के पास मेरे प्रश्न का उत्तर है ??
पेज – viii
पोप फ्रांसिस अब मेक्सिको की यात्रा करने वाले हैं. वहां के मूल निवासी रेड इंडियंस ने उन्हें संदेश भेजा है।
ज्ञातव्य हो कि यूरोपीय नीली आँख सफ़ेद चमड़ी और सफ़ेद बाल वाले milatonin हॉर्मोन की कमी वाले ईसाईयों ने वहां के रेड इंडियंस के सोना चांदी के खदानों और भण्डारण पर कब्जा किया और उनका कत्ल किया – जैक गोल्डस्टोन : Rise of Europe 1500 to 1850 .
ईसाईयों ने रिलिजन के नाम पर 1500 से 1800 के बीच 200 मिलियन यानि 20 करोड़ मूलनिवासियों का कत्ल किया – #गुरुमूर्ति ।
आज तक इस रहस्य पर पर्दा पड़ा है ।
ज्ञातव्य हो कि 1900 में भारत की कुल जनसँख्या 22 करोड़ थी ।
और 1850 से 1900 के बीच ईश्वरीय आदेश ( Providence) भारत पर शासन करने को White Man’s burden समझने वाले शासकों के शासन से 2 करोड़ लोग अन्न के आभाव में मृत्यु को प्राप्त करते हैं क्योंकि उनकी जेब में अन्न खरीदने का पैसा नहीं था जबकि अन्न गुड़ खांण और अन्य भोज्य पदार्थ भारत से यूरोप और इंग्लैंड एक्सपोर्ट होता था ।
ज्ञातव्य हो कि विल दुरांत से लेकर नौरोजी गांधी अमिय बागची पॉल बैरोच और अनगस मैडिसन के अनुसार भारत की 20 % आबादी हेंडीक्राफ्ट पर निर्भर थी जो 0 AD से 1750 तक विश्व जीडीपी का 25% शेयर मन्युफॅक्चर करती थी ।
जिसे कालान्तर में #डिप्रेस्ड_क्लास का नाम दिया गया ।
इसी डिप्रेस्ड क्लास को #आंबेडकर ने 1928 में Untouchable in #Notional sense सिद्ध करने की कोशिश की साइमन कमीशन के सामने ।
और 1931 में lothian समिति को प्रस्ताव भेजा कि जो अछूत चमार नहीं हैं उनको भी अछूत माना जाय ।
गांधी ने 1942 में जब #अंग्रेजों_भारत_छोडो का नारा दिया तो आंबेडकर क्या कर रहे थे इसका जबाव न तो गूगल बाबा देते हैं और न ही #दिव्यांग_चिंतक।
1946 में कक्षा 10 पास संस्कृतज्ञ #मैक्समूलर , MA शेरिंग और झोला छाप संस्कृतज्ञ जॉन मुइर की #ओरिजिनल_संस्कृत_टेक्स्ट और बाइबिल पढ़कर इस निष्कर्ष पर पहंचते है कि ऋग्वेद की पुरुषोक्ति प्रक्षिप्तांश है और ब्राम्हणों की शाजिश है , इस्सलिये आज शूद्रों को निम्न कार्य अलॉट किया गया है पिछले 3000 वर्षों से ।
जबकि विल दुरांत तथ्यों के साथ 1930 में लिखता है कि लोग वर्तक्सशन के कारण जमीन जब्त किये जाने से बेघर होकर शहरों की ओर भागे , और जो उनमे से शौभाग्यशाली थे उनको गोरो का #मैला उठाने का कार्य मिला , क्योंकि यदि गुलाम इतने सस्ते हों तो शौचालय बनाने का झंझट कौन पाले ।
लेकिन कुछ दलहित चिंतकों ने भारत के 25% जीडीपी के निर्माताओं के वंशजों को पिछले 68 वर्ष में कुंठा घृणा और आत्महीनता के कुएं में धकेल दिया ।
उनसे किस तरह माफी मांगने की बात बोला जाय ?
✍🏻डॉ त्रिभुवन सिंह की पोस्टों से संकलित