सेना राजा की शक्ति है, ब्राह्मण वेद-विचार
बाल वृद्घ गुरू कन्या को,
नही लगाओ पैर।
कुपित होय परमात्मा,
मांगे मिलै न खैर।। 480।।
दूसरों को खुश देखकै,
सज्जन मोद मनाय।
देख दूसरों को दुखी,
दुर्जन खुश हो जाय ।। 481।।
समय परिस्थिति देखकै,
कभी विनय कभी वीरता,
वक्त का कर इंतजार ।। 482।।
स्त्रियों का बल रूप है,
यौवन मधुर व्यवहार।
सेना राजा की शक्ति है,
ब्राह्मण वेद-विचार ।। 483।।
वेद-विचार से अभिप्राय है-अध्यात्मिक ज्ञान।
जिसके पास में अर्थ है,
सब बनै उसके मीत।
वही श्रेष्ठ संसार में,
ऐसी जग ही रीत ।। 485।।
वृत्ति होवै दान की,
वाणी में होय मिठास।
ईश-भजन तर्पण करें,
समझो स्वर्ग में वास ।। 486।।
जो जीव इस संसार में स्वर्ग से आये हैं अथवा मरणोपरांत जिनका वास स्वर्ग में होगा उनके चार चिन्ह हैं अर्थात चार गुण हैं जिनके कारण वे अन्य जीवों से श्रेष्ठ कहाते हैं। इन्हीं चार गुणों के कारण उन्हें स्वर्ग से उतरा हुआ श्रेष्ठ प्राणी माना जाता है। ये चार चिन्ह हैं:-वाणी में मिठास, दान देने की प्रवृत्ति के साथ-साथ अहंकार शून्यता, ईश भजन में रूचि अथवा आराध्य देवों की पूजा और विद्वान ब्राह्मणों का तर्पण अर्थात उनका आदर सत्कार करके उन्हें तृप्त करना।
वृत्ति कुत्ते की तरह,
वाणी होय कठोर।
नीचों की करै संगति,
बंधी नरक तै डोर ।। 487।।
जो जीव इस संसार में नरक से आए हैं अथवा मरणोपरांत नरक में जाएंगे उनके भी चार चिन्ह होते हैं अर्थात चार प्रमुख अवगुण होते हैं जिसके कारण वे इस संसार में अन्य जीवों की अपेक्षा दुष्ट, राक्षस, नीच और पिशाच तक कहलाते हैं। इन प्रमुख दुर्गुणों के कारण उन्हें नरक से आया माना जाता है अथवा नरक गामी माना जाता है। ये चिन्ह निम्नलिखित हैं-अर्थ का अर्जन वे अपवित्र तरीके से करते हैं, छल, कपट, चोरी, हत्या, वीभत्स कृत्य अर्थात क्रूरता से करते हैं उनकी वाणी में चारों उद्वेषों की अधिकता होती है वे प्राय: रू़़खा, कड़वा कठोर ही बोलते हैं।
क्रमश: