-विचारणीय विषय क्र. 8
धारा 3 के अनुसार Hostile Environment अर्थात् उपद्रवी माहौल (वातावरण) बनाना या भयावह वातावरण बनाकर किसी के मौलिक अधिकारों का हनन करना अपराध माना जाएगा। इसका तात्पर्य यह है कि यदि आतंकी या दंगों की घटनाओं में लिप्त कुछ मुसलमान अपराधियों को जेल से छोडऩे की घोषणा कोई सरकार (यथा-उ.प्र. की स.पा. सरकार तथा केन्द्र सरकार का गृहमंत्रालय) करती है तो उसके विरुद्ध कोई वक्तव्य देना, लेख लिखकर, प्रदर्शन करके माँग पत्र देना उपद्रव माना जाएगा तथा जेल से छोड़े जा रहे अपराधियों के मौलिक अधिकारों का यह हनन करने वाला उत्पात माना जाएगा। ऐसी माँग करने वाले देशभक्त जेल के सींखचों में भेजे जाएँगे और वास्तविक अपराधी मुक्त कर दिये जाएँगे। धारा 3 के अनुसार यदि हिन्दू की दुकान पर बिक्री अधिक होने से मुस्लिम का व्यवसाय घट रहा है तो उस हिन्दू व्यवसायी को गिरफ्तार किया जा सकता है। धारा 3 (iii) में दिये गए मौलिक अधिकारों का हनन करने का अर्थ होगा कि बकरीद पर यदि मुसलमान आपके मोहल्ले में भैंस, बकरी आदि काटता है तो उसे मना नहीं कर सकते।
-विचारणीय विषय क्र. 9: विधेयक की धाराएँ भारतीय दंड संहिता (1860) पर प्रहार
आई.पी.सी (भारतीय दंड संहिता) 1860 के नियमों को परिवर्तित करने का संकेत स्पष्टत: विधेयक की धारा 9। में दर्शाया गया है। इसके अनुसार सामान्य घटना को भी साम्प्रदायिक घटना में परिवर्तित किया जाएगा। इसका अर्थ होगा कि भारत के संविधान के अनुसार 14 व 15 (1) में दिये गये अधिकारों से नागरिकों को वंचित करके उन्हें धार्मिक व भाषाई आधार पर विभाजित किया जाएगा। यह प्रक्रिया सामाजिक विघटन का आधार बनेगी जो निश्चित ही सामाजिक समरसता, सौहाद्र्र व समान अधिकारों पर बड़ा प्रहार होगा।
-विचारणीय विषय क्र.- 9 पुलिस अधिकारियों पर अत्याचार का प्रबंध
कोई पुलिस अधिकारी यदि किसी धर्म या भाषा विशेष के दंगाग्रस्त व्यक्ति से किसी घटना क्रम के तथ्य को जानने, दंगे की घटना से जुड़े अपराधियों के विषय में जानने अथवा अन्य किसी सूचना की जानकारी प्राप्त करने के लिए पूछताछ करेगा, तो यह कार्य अत्याचार (ज्वतजनतम) की श्रेणी में माना जाएगा। घटना से जुड़ा धर्म विशेष का अपराधी अथवा संदिग्ध व्यक्ति कोई भी हो, पुलिस उससे मानसिक दबाव देकर पूछताछ नहीं कर सकेगी, शारीरिक दबाव (जैसे हथकड़ी लगाना) देना भी क्रूर दण्ड (ज्वतजनतम) की श्रेणी में माना जाएगा। इस अपराध के लिए पुलिस अधिकारी को भी जेल भेजा जायेगा।
-विचारणीय विषय क्र. 10 : पुलिस अधिकारियों का दमन
धारा 10 ए: किसी क्षेत्र में साम्प्रदायिक उपद्रव को नियंत्रण न कर पाने पर पुलिस अधिकारी दण्ड के भागी होंगे। विदित हो कि अब तक स्वतंत्र भारत में हुए दंगों के इतिहास में ऐसी कितनी ही घटनाएँ घट चुकी हैं जहाँ दंगाइयों द्वारा पुलिस पर भी गोलियाँ दागने के कारण अनेक पुलिस कर्मी मारे गए या घायल हो गए।
अनेक दंगे ऐसे रहे जिनमें पुलिस ने भीषण संघर्ष व बलिदान करके भी भयावह साम्प्रदायिक दंगों पर नियंत्रण करने में कीर्तिमान स्थापित किया। वर्तमान संदर्भित विधेयक पुलिस कर्मियों के द्वारा अब तक किए गए अगणित सफल संघर्षों के लिए पुरस्कृत करने के स्थान पर उन्हें दण्डित करने का प्रावधान लाने जा रहा है। यह ऐसा प्रावधान है जो अब तक चली आ रही कानून व्यवस्था को कुण्ठित करके उपद्रवियों को ही हर प्रकार से प्रोत्साहित करने में सहायक बनेगा।
-विचारणीय विषय 10
किसी पुलिस अधिकारी द्वारा साम्प्रदायिक दंगे पर नियंत्रण करने में अक्षम होना, कत्र्तव्य की अनदेखी करना, शासन द्वारा प्रदत्त अधिकारों का समय पर उपयोग न करना दण्डनीय अपराध माना जा सकता है। परन्तु एक प्रशंसनीय निर्देश भी धारा 10 ए के अंत में किया गया है: किसी अधिकारी द्वारा अपने उच्च अधिकारी के गैरकानूनी आदेश को न मानना तथा अवैध कार्य को न करना कत्र्तव्य पालन का उल्लंधन नहीं माना जाएगा। कवाल ग्राम (मुजफ्फरनगर) दंगे (7 सितम्बर 2013) की घटना में गौरव व सचिन के नामजद हत्यारों को पकड़कर फिर ऊपर के राजनीतिक आदेश (आजम खान द्वारा) से उन्हें तत्काल छोड़ देना बाद में 60 अन्य नागरिकों की हत्या तथा 50,000 लोगों को निर्वासित होकर शिविरों में रहने की विवशता का कारण बना। अवैध आदेश का पालन यदि स्थानीय पुलिस न करने का साहस दिखाती तो एक बड़ा साम्प्रदायिक घटनाक्रम टाला जा सकता था।
-विचारणीय विषय 10 : अधीनस्थ अधिकारी के अपराध पर वरिष्ठ अधिकारी को दण्डित करना अनुचित
विधेयक की धारा 10 (बी) के अनुसार वरिष्ठ अधिकारी दंडित किये जाएँगे यदि उनके अधीन कार्यरत सहायक अधिकारी साम्प्रदायिक उपद्रव को रोकने में सफल नहीं होंगे। मनौवैज्ञानिक व प्रशासनिक दोनों दृष्टि से यह सर्वथा अनुचित होगा, अत: दण्ड का पात्र वही अधिकारी होना चाहिए जो कत्र्तव्य उपेक्षा के लिए सीधे उत्तरदायी है।
-विचारणीय विषय क्र. 11:
धारा 14 (1) के अनुसार सक्षम अधिकारी द्वारा स्थिति देखकर किसी क्षेत्र विशेष को संवेदनशील क्षेत्र (Communally disturbed area´) घोषित किया जा सकता है (प्रथम बार में 2 माह तक के लिए)। धारा 15 (5) के अनुसार लाइसैंस के हथियार जब्त कर लिये जाएँगे। इसका तात्पर्य होगा कि दंगा होने से पहले ही सम्मानित नागरिकों को निशस्त्र बना दिया जाएगा और आततायियों का सामना करने योग्य उन्हें नहीं रहने दिया जाएगा।
शेष अगले अंक में