उन्मुक्त विकसित सहृदय था प्राचीन भारत

जो लोग भारत को पिछड़ा हुआ कहता हैं उन्हें प्राचीन भारत का अध्ययन करना चाहिए विशेषतः विदेशी यात्रियों के वृतांत का। ऐसा ही एक यात्री था चीनी यात्री ह्वेन त्सांग । उसने अपनी यात्रा 29 वर्ष की अवस्था में 629 ई. में प्रारम्भ की थी। यात्रा के दौरान ताशकन्द, समरकन्द होता हुआ ह्वेन त्सांग 630 ई. में ‘चन्द्र की भूमि‘ (भारत) के गांधार प्रदेश पहुँचा। गांधार पहुंचने के बाद ह्वेन त्सांग ने कश्मीर, पंजाब, कपिलवस्तु, बनारस, गया एवं कुशीनगर की यात्रा की। कन्नौज के राजा हर्षवर्धन के निमंत्रण पर वह उसके राज्य में लगभग आठ वर्ष (635-643 ई.) रहा। इसके पश्चात् 643 ई. में उसने स्वदेश जाने के लिए प्रस्थान किया। ह्वेन त्सांग अपनी यात्रा के दौरान 639 इसवी में कुछ समय के लिए महाराष्ट्र में आया जहाँ सोलंकी राजा पुलकेशी का शासन था। ह्वेन त्सांग के अनुसार, “जिसके पास ऐसे प्रचंड योद्धा थे जो अकेले ही 1000 लोगों का सामना कर सकते थे तथा सेकड़ों मतवाले हाथी थे” ह्वेन त्सांग के शब्दों में, “इन योद्धाओं और हाथियों के कारण यहाँ का राजा अपने पड़ोसियों की और तिरस्कार की दृष्टि से देखता था। राजा जाती का क्षत्रिय है, और उसका नाम पुलकेशी है”।


ह्वेन त्सांग ने पुलकेशी के दरबार का जो वर्णन किया है उसे जानकार आपको अत्यंत आश्चर्य होगा विशेषकर उस समय के भारत की स्त्रीयों के वस्त्र विन्यास के बारे में जानकर। आज की तथाकथित आधुनिक युवतियां भी उनके आगे कुछ नहीं ।उस समय एक ईरानी दूतमंडल भी पुलकेशी के दरबार में आया था ह्वेन त्सांग ने उसकी वेशभूषा का भी विस्तृत जिक्र किया है।

ह्वेन त्सांग के शब्दों में, “राजा गद्दी बिछे हुए सिंहासन पर लम्ब्गोलाकृतिक तकिये के सहारे बैठा हुआ है। आसपास चमर तथा पंखा करने वाली स्त्रियाँ, तथा अन्य परिचारक स्त्री पुरुष, कोई खड़े और कोई बैठे हुए हैं। राजा के सिर पर मुकुट , गले में बड़े बड़े मोती व माणक की एक लड़ी कंठी , और उसके नीचे सुन्दर लडाऊ कंठा है । दोनों हाथों में भुजबंध और कड़े हैं। जनेऊ के स्थान पर पचलड़ी मोतियों की माला है, जिसमे प्रवर के स्थान पर पांच बड़े मोती हैं, पोशाक में आधी जांघ तक कछनी , और बाकी सारा शरीर ढंका नहीं है। दक्षिणी लोग जैसे समेट कर दुपट्टा गले में डालते हैं , उसी प्रकार समेटा हुआ केवल एक दुपट्टा कन्धों से हटकर पीछे के तकिये पर पड़ा हुआ है । राजा का शरीर प्रचंड, पुष्ट और गौर वर्ण है । दरबार में जितने भी हिन्दुस्तानी पुरुष हैं उनके शरीर पर आधी जांघ तक कछनी के सिवाय कोई दूसरा वस्त्र नहीं है, और नाही किसी के दाढ़ी या मूंछ है । स्त्रियों के शरीर का कमर से लगाकर आधी जांघ या कुछ नीचे तक का हिस्सा वस्त्र से ढंका हुआ है, और छातियों पर कपडे की पट्टी बंधी हुयी है, बाकि सारा शरीर खुला हुआ है । ईरानी और हिन्दुस्तानियों की पोशाक में दिन रात का अंतर है। जबकि हिन्दुस्तानियों का सारा शारीर खुला हुआ है उनका दोगुना ढंका हुआ है। उनके सिर पर लम्बी ईरानी टोपी, कमर तक अंगरखा, चुस्त पायजामा, और कितनों के पैरों में मौजे भी हैं, और दाढ़ी मूंछ सबके है
✍🏻अरुण उपाध्याय

,*भारत एक कृषिप्रधान देश था/ हैं, ये हमको मार्कसवादी चिन्तकों ने पढाया / इस झूठ के ढोल मे कितना बडा पोल है ??*
देश को उद्योंगों की क्यों जरूरत हैं ? भारत का आर्थिक मॉडल भिन्न क्यों होना चाहिए ? अपने ही इतिहास से सीख नहीं सकते क्या हम ?
देश को उद्योंगों की क्यों जरूरत हैं ?
भारत एक कृषिप्रधान देश था/ हैं, ये हमको मार्कसवादी चिन्तकों ने पढाया / इस झूठ के ढोल मे कितना बडा पोल है ??

हमें पढाया गया कि भारत एक अध्यात्मिक और कृषि प्रधान देश था लेकिन ये नहीं बताया कि भारत विश्व कि 2000 से ज्यादा वर्षों तक विश्व की सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति थी / angus Maddison, paul Bairoch, अमिय कुमार बागची और Will Durant जैसे आर्थिक और सामाजिक इतिहास कारों ने भारत की जो तस्वीर पेश की , वो चौकाने वाली है /

Will Durant ने 1930 मे एक पुस्तक लिखी Case For India। ये इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रोफ लाल बहादुर वर्मा के अनुसार दुनिया के आ तक सबसे ज्यादा पढे जाने वाले writer हैं और निर्विवाद हैं / इनको अभी तक किसी ism में फित नहीं किया गया है / उन्हीन की पुस्तक के कुछ अंश कि भारत को क्यों उद्योगों को बढ़वा देना चाहिये अपना स्वर्णिम आर्थिक युग वापसी के लिये ?? और उसका खुद का मॉडेल होना चाहिये न कि अमेरिका या यूरोप की नकल करनी चाहिये..

विल दुरान्त लिखता है:

” जो लोग आज हिंदुओं की अवर्णनीय गरीबी और असहायता आज देख रहे हैं , उन्हें ये विस्वास ही न होगा ये भारत की धन वैभव और संपत्ति ही थी जिसने इंग्लैंड और फ्रांस के समुद्री डाकुओं (Pirates) को अपनी तरफ आकर्षित किया था। इस ” धन सम्पत्ति” के बारे में Sunderland लिखता है :
” ये धन वैभव और सम्पत्ति हिंदुओं ने विभिन्न तरह की विशाल (vast) इंडस्ट्री के द्वारा बनाया था। किसी भी सभ्य समाज को जितनी भी तरह की मैन्युफैक्चरिंग और प्रोडक्ट के बारे में पता होंगे ,- मनुष्य के मस्तिष्क और हाथ से बनने वाली हर रचना (creation) , जो कहीं भी exist करती होगी , जिसकी बहुमूल्यता या तो उसकी उपयोगिता के कारण होगी या फिर सुंदरता के कारण, – उन सब का उत्पादन भारत में प्राचीन कॉल से हो रहा है । भारत यूरोप या एशिया के किसी भी देश से बड़ा इंडस्ट्रियल और मैन्युफैक्चरिंग देश रहा है।इसके टेक्सटाइल के उत्पाद — लूम से बनने वाले महीन (fine) उत्पाद , कॉटन , ऊन लिनेन और सिल्क — सभ्य समाज में बहुत लोकप्रिय थे।इसी के साथ exquisite जवेल्लरी और सुन्दर आकारों में तराशे गए महंगे स्टोन्स , या फिर इसकी pottery , पोर्सलेन्स , हर तरह के उत्तम रंगीन और मनमोहक आकार के ceramics ; या फिर मेटल के महीन काम – आयरन स्टील सिल्वर और गोल्ड हों।इस देश के पास महान आर्किटेक्चर था जो सुंदरता में किसी भी देश की तुलना में उत्तम था ।इसके पास इंजीनियरिंग का महान काम था। इसके पास महान व्यापारी और बिजनेसमैन थे । बड़े बड़े बैंकर और फिनांसर थे। ये सिर्फ महानतम समुद्री जहाज बनाने वाला राष्ट्र मात्र नहीं था बल्कि दुनिया में सभ्य समझे जाने वाले सारे राष्ट्रों से व्यवसाय और व्यापार करता था । ऐसा भारत देश मिला था ब्रिटिशर्स को जब उन्होंने भारत की धरती पर कदम रखा था ।”
ये वही धन संपत्ती थी जिसको कब्जाने का ईस्ट इंडिया कंपनी का इरादा था / पहले ही 1686 में कंपनी के डाइरेक्टर्स ने अपने इरादे को जाहिर कर दिया था –” आने वाले समय में भारत में विशाल और सुदृढ़ अंग्रेजी राज्य का आधिपत्य जमाना ” / कंपनी ने हिन्दू शाशकों से आग्रह करके मद्रास कलकत्ता और बम्बई में व्यवसाय के केन्द्रा स्थापित किये , लेकिन उनकी अनुमति के बिना ही , उन केन्द्रों मे ( जिनको वे फॅक्टरी कहते थे ) उन केन्द्रों को गोला बारूद और सैनकों से सुदृढ़ किया”….

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स्वर्णिम भारत का एक दृश्य :

तेवेर्निर बंजारा समुदाय का वर्णन 350 साल पूर्व वर्णन किया है ।
350 साल पूर्व उसने यातायात के लिए बंजारों का वर्णन किया है जो चार तरह के होते थे जो सिर्फ एक ही वस्तु का ट्रांसपोर्ट एक स्थान से दूसरे स्थान पर करते थे, और जीवन भर सिर्फ यही व्यवसाय करते थे। इन चार वस्तुओं में ज्वार बाजरा मक्क , चावल, दलहन, और नमक को देश के अंदर और बाहर भेजने के लिए करते थे ।
एक कारवां में 10,000 से 12,000 तक बैलगाड़ियां होते थे। उनके नायकों को राजकुमार कहा जाता था जो गले में मोतियों की माला पहनते थे ।
इन बैलगाड़ियों का कारवाँ गुजरता था तो तेवेर्निर जैसे यात्रियों को कभी कभी रास्ता में पास पाने हेतु 2-2 या 3-3 दिन का इंतजार करना होता था।
कभी कभी इन कारवां के नायकों में , किसका कारवां पहले गुजरेगा , इस बात को लेकर खुनी जंग भी हो जाती थी । ऐसी स्थिति में इन नायकों को मोघल बादशाह व्यापर के सुचारु रूप से चलाने हेतु अपने पास मिलने हेतु बुलाता था और दोनों को समझाकर और भविष्य में झगड़ा न करने का आश्वासन लेकर उनको एक एक लाख रूपये और मोतियों की माला देकर विदा करता था

व्यक्तिगत रूप से बैलगाड़ी के लिए उसको 600 रुपये उस समय देने पड़े 60 दिन की यात्रा के लिए।

अनुवादक ने बताया कि इनको अब भी देखा जा सकता है लेकिन रेलवे ने इनको इस कार्य से कार्यमुक्त कर बेरोजगार कर चुका है।

Ref: Travels in India : Tevernier; P. 40-41 Volume-l

मध्यकालीन भारत का वैभव और समाज का वर्णन एक अरेबिक यात्री ABD-ER-RAZZZAK की यात्रा वृत्तांत से
अब इसी पुस्तक से एक अन्य यात्री ABD-ER-RAZZZAK की यात्रा वृत्तांत के बारे में ।
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साल 845 ( 1442 AD) , इस यात्रा वृत्तांत का लेखक Abd-er- razzak , Ishak का पुत्र सार्वभौमिक नरेश के आदेश के पालन हेतु Omurz प्रान्त से समुद्र तट की ओर चल देता है ।
अंततः 18 दिनों की यात्रा के उपरांत , वहां के राजा और शासक की मदद से हमारी नौका कालीकट में जा खड़ी हुई ।अब इस विनम्र दास इस देश के वैभव और परम्पर और संस्कृति की चर्चा सुनें।
कालीकट एक सुरक्षित बंदरगाह है जहा Omurz की तरह हर देश और शहर से व्यापारी अपना सामान ले आते हैं ।यहाँ पर मूल्यवान वस्तुओं का भंडार है जो कि Abyssinia Zirbad (दक्कन) Zanguebar से आते हैं। समय समय पर अल्लाह के घर (मक्का) से जहाज आते रहते हैं ।इस कस्बे में काफ़िर (infidels) रहते हैं।जोकि इस hostile समुद्री तट के किनारे बसे हुए हैं।
यहाँ पर्याप्त मात्रा में मुसलमान भी रहते हैं जिन्होंने यहाँ दो मस्जिद बना रखी है और जिसमे हर शुक्रवार को वो नमाज पढ़ने जाते हैं । यहाँ एक क़ाजी है जो Schfei समुदाय का है।
इस कसबे में सुरक्षा और न्याय इस तरह से स्थापित है कि अन्य देशो से सबसे धनी व्यापारी जब समुद्री मार्ग से अपना सामान ले आते है तो जहाज से सामान उतरवाकर सीधे बिना किसी हिचकिचाहट के सामन सीधे बाजार में भेज देते है ; यहाँ तक कि उसका हिसाब किताब रखने की या उस पर निगाह रखने की आवाश्याकता भी महसूस नहीं करते। कस्टम हाउस के अधिकारी स्वयं इन समानो की देख रेख का इंतजाम करते हैं जो इन पर 24 घण्टे निगाह रखते हैं।जब सामन बिक जाता है तो सामान की कीमत 1/40 वां One fortieth हिस्सा ड्यूटी के रूप में देना पड़ता है।जो सामान नहीं बिकता उस पर कोई टैक्स नहीं लगता।
( N । B । याद रखें कि उस समयकाल में कालीकट में हिन्दू राजाओ का राज्य था।अब दूसरे बंदरगाहों का क्या हाल था ?)
दूसरे बंदरगाहों में अजीब सी रिवायत है।जैसे ही कोई जहाज दुर्योग से हवा की रुख के कारन वहां पहुचता है, वहां के निवासी उसको लूट लेते हैं।लेकिन कालीकट में ऐसा नहीं है , हर जहाज चाहे वो जहाँ से भी आई हो और कही भी उतरती हो , जब भी बंदरगाह पर लगती है तो उससे एक सा ही व्योहार किया जाता है , और किसी को कोई समस्या नहीं होती।
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इस देश के काले लोग सर्वथा नंगे रहते हैं, मात्र शरीर के मध्यभाग में एक कपड़ा लपेटे रहते हैं जिसको लंगोटा (Lankautah) कहते हैं जो नाभि से घुटने तक लटकता है।उनके एक हाँथ में भारतीय तलवार (Poignard) होती है जो एक पानी की बूँद की तरह चमकदार होती है; और दूसरे हाँथ में एक ढाल (Buckler of oxide) होती है ।ये परंपरा राजा से लेकर रंक तक सब के लिए एक सामान है। This custom is common to the king and beggar.
जहाँ तक मुसलमानों की बात है वे अरबों की तरह शानदार (Apparel ) और हर बात में बैभव (Luxury) का प्रदर्शन करते हैं।
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कुछ समय अवधि के बाद जब मेरे पास पर्याप्त काफिरों और मुसलमानों को देखने का अनुभव हो गया , और पर्याप्त सुविधा से मेरे आवास की व्यवस्था हो गयी और तीन दिनों के उपरांत राजा से मिलने का अवसर प्राप्त हुवा तो मैंने बाकी ऊपर वर्णित हिंदुओं की वेश – भूसा वाले नंगे बदन के जिस व्यक्ति को देखा उसे समरी ‘(Sameri) के राजा ‘ के नाम से जाना जाता था।जब इसकी मृत्यु होगी तो इसके बहन के लड़कों को इसका उत्तराधिकार मिलेगा ; न कि इसके बेटों या भाइयों को या अन्य किसी रिष्तेदार को उत्तराधिकार मिलेगा। ताकत के दम पर ( जोर जबरदस्ती ) कोई सिंहासनारूढ़ नहीं हो सकता।
यहाँ काफ़िर काफी गुटों में बंटे हुए है जैसे Bramins (ब्राम्हण) Djogis (जोगी) व अन्य। यद्यपि सारे लोग बहुदेवबाद और मूर्तिपूजा के मूलभूत सिद्धांतों से सहमत हैं लेकिन सब समुदायों के अपने विशेष रीति रिवाज हैं।
(Forbes की हिंदुस्तानी डिक्शनरी के अनुसार Djoghis हिन्दू Ascetics ( संत) हैं : ये हिन्दूओं की एक जाति है जो मुख्यतः बुनकर हैं )
नोट — इस तर्क पर कबीर को समझें। उनका समयकाल भी लगभग इसी के आस पास का है ।
जब मैं राजकुमार से मिलने गया तो पूरा हाल दो या तीन हजार हिन्दुओ से भरा हुवा था , जिनकी वेश भूषा ठीक वैसे ही थी जिसका पूर्व में जिक्र किया जा चूका है ; मुस्लमाओं के भी प्रमुख लोग वहां थे।
अब्देररज्जाक को जब विजयनगर के राजा का आमन्त्रण मिलता है तो , वो बतलाता है कि यद्यपि सामरी (कालीकट का राजा ) जिसके राज्य में कालीकट जैसे 300 बंदरगाह थे और जिसके राज्य का पूरा चक्कर लगाने में 3 महीना गुजर जाय विजयनगर के राजा के अधीन नहीं था लेकिन वो उनका बहुत सम्मान करता था और उनके डर ( सम्मान होना चाहिए क्योंकि एक अरब सिर्फ ताकत की जुबां ही जानता है ) से खड़ा हो जाता है।
कालीकट से जहाज लगातार मक्का जाते रहते हैं जिसमे मुख्यतः काली मिर्च भरा होता था।
कालीकट के निवासी बहुत साहसी सामुद्रिक नाविक हैं जिनको Techini – betechegan (चीनी के पुत्र ) के नाम से जाना जाता है और समुद्री लुटेरों की हिम्मत इनके जहाजों पर आक्रमण करने की नहीं पडती है।
इस बंदरगाह पर हर इच्छित चीज उपलब्ध है । सिर्फ एक ही चीज की मनाही है और वह है गोबध और उसका मांस भक्षण : यदि ऐसे किसी व्यक्ति का पता चल जाय कि किसी ने गाय का वध किया है या उसका मांस खाया है तो उसको तुरंत मृत्यदंड दी जाती है। यहाँ पर गायों का इतना सम्मान है कि लोग गाय के सूखे गोबर का तिलक लगातेहैं । पेज -123
इसके बाद जब रज्जाक बेलूर (Belour) पहुँचता है तो उसका भी वर्णन करता है –” यहाँ के घर पैलेस की तरह विशाल हैं और यहाँ की औरतों ने मुझे हूरों की खूबसूरती की याद दिला दी । अगर मैं इन भवनों के बारे में वर्णन करूँगा तो लोग मुझ पर अतिशयोक्ति का आरोप लगाएंगे। लेकिन एक सामान्य खाका खींचना उचित होगा । कस्बे के मध्य में एक 10 घेज़ (Ghez) का खुला मैदान है जिसकी तुलना जन्नत के बाग़ से की जा सकती है। पेज – 126
इस कसबे में दो तीन दिन बिताकर अप्रैल के अंत में हम विजयनगर शहर पहुँचते है।राजा अपने अनुचरों को हम लोगों से मिलने के लिए भेजता है और हमारे निवास की खूबसूरत व्यवस्था करता है।
अब्दुर्रज़्ज़ाक ने विजयनगर का भी वर्णन किया है।उसने एक विशाल जनसंख्या वाली जगह देखी जिसका राजा महान और विशाल राज्य का स्वामी था जो सेरेंडिब से kalbergah तक फैला हुवा था। बंगाल के सीमान्त से मालाबार तक एक हजार Parasang ( ये दुरी की पर्शियन इकाई है जसका अर्थ 3.5 मील या 5.6 किलोमीटर होता है ) से ज्यादा विशाल साम्राज्य है
इसकी जमीन उपजाऊ है और ये उत्तम कृषि वाला देश है , जिसके अंतर्गत लगभग 300 बंदरगाह हैं। यहाँ 1000 से ज्यादा विशालकाय हांथी हैं जो दैत्य जैसे भयानक और पहाड़ जैसे विशालकाय हैं।यहाँ की सेना में 11 लाख सैनिक हैं । पेज – 127
पूरे हिंदुस्तान में राय (राजाओं) का एकाधिकार है । इस देश के राजा क़ी टाइटल भी राय है ।इसके बाद दूसरा नंबर ब्राम्हणो का है जो सामाजिक रूप से बाकियो से श्रेष्ठ माने जाते हैं ।
kalilah और dimna (कालिदास और वेद ??) की पुस्तकें, विद्वता के साहित्य की उत्क्रिस्ट कृतिया हैं जो पर्शियन भाषा में भी उपलब्ध है।
विजयनगर एक ऐसा शहर है जिसकी बराबरी विश्व में कोई भी नहीं कर सकता है और ऐसा शहर न लोगों ने न अपनी आँखों से देखा होगा न कानों से सुना होगा। पेज – 127
इस साम्राज्य में इतनी विशाल जनसंख्या निवास करती है कि इसकी विस्तृत व्याख्या किये बगैर इसके बारे में बताना असंभव है। राजा के महल में अनेक कोठरियां हैं जो धन दौलत से भरी पड़ी हैं।
इस देश के सभी निवासी ( All inhabitants of this country) , चाहे वो ऊचें राजपद पर हों या नीचे राजपद पर हों , या फिर बाजार के अर्टिसन ( down to the artisan of the Bazar) , सबके सब अपने कानों में मोती या अन्य महगें पथरो से मढ़ी हुई बालियां , हार अगुंठिया बाजूबंद अपने कानों गले उँगलियों और भुजाओं में धारण करते हैं।

✍🏻डॉ त्रिभुवन सिंह

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