गतांक से आगे….
पाश्चात्य विद्वानों ने इतनी लंबी स्कीम देखकर और वर्तमान भौतिक अंधाधुंध से आरी आकर जो विचार प्रकट किये हैं, उन्हें हम ‘कुदरत की ओर लौटो’ नामी पुस्तक से लेकर बहुत कुछ लिख चुके हैं। अब आगे उन्हीं सिद्घांतों की पुष्टि में भिन्न भिन्न विद्वानों ने जो अन्य पुस्तकें और लेख लिखे हैं, उनके कुछ उदाहरणों को उद्धृत करके दिखलाना चाहते हैं कि किस प्रकार पाश्चात्य सहृदय विद्वान वर्तमान भौतिक जंजाल से निकलकर सात्विक प्रकाश में आना चाहते हैं।
भौतिक उन्नति में विलास प्रधान वस्तु है। विज्ञान का मूल ध्येय अत्यधिक रति है। श्रंगार, मादक वस्तुओं का सेवन और मांस मत्स्य का आहार उसके सहायक हैं और तज्जन्य अनिवार्य बीमारियों के इलाज के लिए वैज्ञानिक ढूंढ़ तलाश आवश्यक है। इसी तरह श्रंगार के लिए नाना प्रकार के चित्ताकर्षक पदार्थों की आवश्यकता है और उनकी उत्पत्ति के लिए शिल्पकला की उन्नति अनिवार्य है। इस सब आयोजन के लिए बिना विपुल धनराशि के बनता ही नही और न वह धन बिना व्यापार के इकट्ठा ही हो सकता है। अतएव व्यापार कौशल से दूसरों का धन अपहरण करने के लिए यांत्रिक कारखानों और कंपनियों की आवश्यकता होती है, तथा इस समस्त पाप की रक्षा के लिए सेनाबल और सैनिक विज्ञान की उससे भी अधिक आवश्यकता होती है। जातीय अभिमान, हुकूमत और किसी खास सभ्यता का प्रचार आदि उस पाप के छिपाने के बहाने बना लिये जाते हैं और दूसरों का खून चूसकर कामक्रीडा की जाती है। विद्वानों ने इस कामक्रीड़ा जात विघातक नीति से घबराकर लोगों को कुदरत की ओर लौटने का आदेश किया है। आगे हम कामक्रीड़ा, विलास, शिल्प पाश्चात्य सभ्यता, राज्य युद्घविज्ञान और सात्विक मार्ग आदि पर जो वहां के विद्वानों ने अपनी रायें दी हैं, उनको संक्षेप से लिखते हैं।
वहां की कामुकता की क्या हालत है, उससे क्या हानि हो रही है, कृत्रिम उपायों से कैसे भयंकर परिणाम हो रहे हैं और उस पर विद्वान अब किस प्रकार का नियंत्रण करना चाहते हैं? यहां हम नाममात्र-नमूने के रूप में दिखलाना चाहते हैं। जंजीबार के बिशप ने ब्रिटिश साम्राज्य की राजधानी आधुनिक सभ्यता के केन्द्र लण्डन के बारे में लिखा है कि London is glorious city but is terribly in the hands of Station अर्थात लन्दन एक सुंदर और ऐश्वर्यशाली शहर है, परंतु वह शैतान के पंजों में बुरी तरह से फंसा हुआ है। सन 1925 में ट्रूथ नामक मशहूर समाचार पत्र ने लिखा था कि इंगलैंड में हर साल 37000 बच्चे नाजायज तौर पर उत्पन्न होते हैं, जिनका न कोई बाप होता है और न कोई मां। विज्ञान और कला में उन्नत जर्मनी की राष्ट्र प्रतिनिधि सभा को 30,000 आदमियों ने अपने हस्ताक्षरों से एक आवेदन पत्र भेजा थ कि जर्मनी में नर को नर से अर्थात पुरूष को पुरूष से शादी करने की इजाजत दी जाए। विषय पर रीस्टाग में बहस भी हुई थी। अमेरिका के प्रसिद्घ जज लिंडसे का कहना है कि चौदह साल की अवस्था तक पहुंचने से पहिले ही देश में से एक अमेरिकन अविवाहित बालिका गर्भवती हो जाती है। अमेरिका में डेनवर नाम का एक छोटा सा कस्बा है, जिसकी आबादी केवल तीस हजार है। उसमें दो हजार युवतियां विवाह होने से पहले ही गर्भवती पाई गयी हैं। विलायत में बलात्कारों के संबंध में जो अनुसंधान कमेटी बनी थी, उसकी रिपोर्ट के आधार पर लाला लाजपत राय ने इस विषय में बहुत कुछ लिखा है। इसी प्रकार जज लिंडसे और थस्र्टन आदि विद्वानों ने भी लिखा है। जब से मिस मेयो ने भारत के नापदान की रिपोर्ट प्रकाशित की है तब से पश्चिम के देशों की ऐसी छीछालेदर सुनने को मिल रही है कि बस तौबा। लोगों ने वहां के अपवित्र, बीभत्स और पाशविक कृत्यों का ऐसा वर्णन किया है कि उसको पढ़़कर योरोप निवासियों की मनोवृत्ति का चित्र सामने आ जाता है। वह सब अमंगल और अपवित्र वर्णन यहां हम नही करना चाहते, किंतु हम यह अवश्य दिखलाना चाहते हैं कि पाश्विक कृत्यों का वहां के मानसिक, शारीरिक और सामाजिक जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा, वैज्ञानिक साधनों ने क्या असर किया और अब विचारशील भद्र विद्वानों की अंतिम राय क्या है?
गुजराती नवजीवन के दो अंगों (20 सितंबर और 14 अक्टूबर सन 1928) में थस्र्टन साहब की ‘वैवाहिक तत्वज्ञान’ नामी पुस्तक के विषय में एक लंबा लेख छपा है। उसमें लिखा है कि थस्र्टन साहब अमेरिका की सेना में दश वर्ष तक रहे और मेजर के पद तक पहुंचे। सन 1919 में नौकरी से निवृत्त होकर न्यूयार्क में रहने लगे। अठारह वर्ष तक उन्होंने जर्मनी, फ्रांस, फिलीपाइन, चीन और अमेरिका के विवाहित दंपतियों का खूब अनुभव किया। अपने निरीक्षण के साथ ही सैकड़ों प्रसूतिशास्त्र निपुण स्त्रीरोग चिकित्सक डॉक्टरों के साथ परिचय और पत्र व्यवहार भी किया। इसके सिवा लड़ाई में सम्मिलित होने वाले उम्मीदवारों के शारीरिक परीक्षापत्रों तथा आरोग्यरक्षक मण्डलों की इक_ा की हुई सामग्री से भी परिचय प्राप्त किया। इतने अनुभव के बाद आप कहते हैं कि निरंकुश विषय भोग से स्त्रियों के ज्ञानतंतु अत्यंत निर्बल हो जाते हैं। असमय में ही बुढ़ापा आ जाता है, शरीर रोग का घर बन जाता है, और स्वभाव चिड़चिड़ा तथा उत्पाती हो जाता है। ये बच्चों की भी संभाल नही कर सकतीं। गरीबों के यहां इतने बच्चे पैदा होते हैं कि उनका पोषण और सेवा करना मुश्किल हो जाता है। ऐसे बालक रोगी होते हैं और बड़े होने पर जरायम पेशा हो जाते हैं। बड़े लोगों में प्रजोत्पत्ति रोकने और गर्भपात करने वाले साधनों का उपयोग होता है। इन साधनों का उपयोग साधारण स्त्रियों को सिखलाने से उनकी संतान रोगी, अनीतिमान और भ्रष्ट होकर अंत में नाश हो जाती है। अतिशय संभोग के कारण पुरूष का पुरूषार्थ नष्ट हो जाता है। वह काम करके अपना निर्वाह करने में भी अशक्त हो जाता है और अनेक रोगों के कारण असमय में ही मर जाता है। अमेरिका में आज विधुरों की अपेक्षा विधवाएं बीस लाख अधिक हैं। इनमें थोड़ी लड़ाई के कारण विधवा हुई हैं। अधिक तो इस कारण विधवा हुई हैं कि विवाहित पुरूषों का अधिक भाग 50 वर्ष की उमर पर पहुंचने के पहले ही जर्जरित हो जाता है। पुरूष और स्त्री दोनों में एक प्रकार की हताशा आ जाती है। संसार में आज जो दरिद्रता है, शहरों में जो घने और गरीब मुहल्ले, वे मजदूरी न मिलने के कारण नही हैं। किंतु आज की वैवाहिक स्थिति से पोषण पाए हुए निरंकुश विषयभोग के कारण हैं। गर्भावस्था में विषय भोग के कारण उत्पन्न हुए बच्चे खामी वाले विकलांग होते हैं। अमेरिका में इनकी परीक्षा हुई तो 18 से 45 वर्ष की उमर तक के 25 लाख 10 हजार सेना योग्य जवानों में से केवल छह लाख 72 हजार की आदमी साबित निकले, शेष सब हीनांग थे।
कृत्रिम उपायों से संतति निरोध का जो मार्ग अवलंबन किया गया है, उससे तो और भी अधिक भयंकर परिणाम हुए हैं। थस्र्टन साहब कहते हैं कि स्त्रियां गर्भाधान रोकने के लिए जिन साधनों का प्रयोग करती है, उनके विषय में डॉक्टरों की राय है कि प्रति सैकड़ा 75 को नुकसान पहुंचा है।
कृत्रिम साधनों से गर्भ रोकने के कारण अकेले पेरिस में ही 75 हजार रजिस्टर्ड और इससे अनेक गुणा अनरजिस्टर्ड वेश्याएं हैं। फ्रांस के अन्य शहरों में भी इसी प्रकार वेश्याओं और व्यभिचारिणी स्त्रियों की बेहिसाब संख्या है। कृत्रिम साधनों के द्वारा प्रजोत्पत्ति रोकने का प्रश्न बड़ा गंभीर है। मैं अपने अवलोकनों और अन्वेषणों से बलपूर्वक कहता हूं कि आज तक इसका प्रमाण नही मिला कि इन साधनों से हानि नही होती। किंतु ज्ञानवान स्त्रीरोग चिकित्सक कहते हैं कि इन साधनों से शरीर और नीति पर बड़ा भयंकर परिणाम होता।
क्रमश: