मनमोहन कर गये देश को बर्बाद
इक़बाल हिंदुस्तानी
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अपने 10 साल के कार्यकाल में तीसरी प्रैसवार्ता में यह दावा किया है कि मोदी अगर देश के पीएम बने तो देश को तबाह कर देंगे लेकिन सत्य और तथ्य यह है कि मनमोहन ने अपनी भ्रष्ट और पूंजीवादी नीतियों से देश को पूरी तरह पहले ही तबाह कर दिया है। हालांकि यह नहीं कहा जा सकता कि मोदी कल सत्ता में आये तो देश को उनके मुकाबले बेहतर बनायेंगे या और बदतर कर देंगे लेकिन यह अधूरा और आंशिक सच है कि मोदी ने गुजरात का सीएम रहते 2002 में जानबूझकर गोधरा कांड के बाद क्रिया की प्रतिक्रिया के न्यूटन के सिध््दांत के बहाने राज्य में 10 दिन तक दंगे ना केवल होने दिये बल्कि आरोप यह भी है कि उनमें अल्पसंख्यकों के नरसंहार को सरकारी मशीनरी के सहयोग से आग में घी डालने का काम किया लेकिन यह भी मानना पड़ेगा कि इस बात का आज तक मोदी के खिलाफ कोई कानूनी सबूत नहीं मिला है जिससे मनमोहन सिंह को पीएम होने के नाते यह स्वीकार करना होगा कि जब तक मोदी के खिलाफ अपराध साबित ना हो जायें वे बेकसूर ही माने जायेंगे। दूसरी तरफ मनमोहन सिंह ने आज देश की जो हालत कर दी है उससे खराब हालत शायद ही किसी पीएम ने भारत की हो याद नहीं आता। यूपीए-2 सरकार आज की सबसे भ्रष्ट सरकार मानी जा सकती है जिसने किसी भ्रष्ट मंत्री से लेकर संतरी तक के खिलाफ तब बेशर्मी से कानूनी कार्यवाही नहीं की जब तक कोर्ट ने उसको इस के लिये मजबूर ना किया हो। विवादास्पद सीवीसी की नियुक्ति से लेकर पहले से ही संदिग्ध दूरसंचार मंत्री राजा को बचाने को लेकर पीएम सिंह ने पूरा जोर लगाया। ऐेसे ही भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे मायावती और मुलायम को सीबीआई का डर दिखाकर एक तरह से जबरन यूपीए सरकार को सपोर्ट दिलाया गया जिसके एवज़ में आज इन दोनों क्षेत्रीय क्षत्रपों को आय से अधिक मामलों में क्लीनचिट दे दी गयी है। रिटेल एफडीआई से लेकर पैट्रोलियम पदार्थों के दाम तेल कम्पनियों के हवाले करने के एक के बाद एक ऐसे फैसले मनमोहन के नेतृत्व की यूपीए सरकार करती चली जा रही है कि जिससे उसको दुश्मन की ज़रूरत ही नहीं है। दरअसल प्रधनमंत्री मनमोहन सिंह एक नौकरशाह से सीधे देश के मुखिया बना दिये गये जिससे उनको जनता की हालत ही नहीं उसकी चाहतों का भी नहीं पता। यही वजह है कि पीएम होकर भी आज तक उनकी यह हिम्मत नहीं हुयी कि वे जनता से सीध्ेा चुनकर आ सकें। यूपीए सरकार की नाकामी का एक कारण यह भी है कि कांग्रेस सुप्रीमो और यूपीए की मुखिया सोनिया गांधी विदेशी माहौल में पैदा होने के साथ ही पली बढ़ी होने की वजह से उनको आम देशवासी की आवश्यकताओं और मिज़ाज की बिल्कुल भी समझ नहीं है। मनमोहन जिनके लिये पीएम की कुर्सी खाली करने को तैयार हैं वे राहुल गांधी जिनको कुछ लोग युवराज और भावी पीएम होने का दावा करते है जबकि हमारा मानना तो यह है कि कहावत के अनुसार गधे को कुछ भी करके जिस तरह से घोड़ा नहीं बनाया जा सकता वैसे ही राहुल में पीएम तो दूर नेता बनने के ही गुण नहीं हैं तो केवल इसलिये कि वे स्व. राजीव गांधी और सोनिया गांधी के पुत्र हैं उनको थाली में रखकर यह पद दिया जाना देश का और भी बंटाधार करना होगा। सच तो यह है कि आज मनमोहन देशवासियों के हिसाब से नहीं बल्कि अपने आका अमेरिका, विश्वबैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की चिंता अधिक करते है। इसके साथ ही वह आम आदमी नहीं बल्कि पूंजीपतियों के हित में काम करने वाले पीएम बन चुके हैं। मनमोहन सिंह ने समाजवाद और समतावाद का रास्ता दिखावे के लिये इस्तेमाल करना भी छोड़ दिया है। अन्ना हज़ारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन को असफल करने के लिये मनमोहन सरकार ने जो घटिया और नीच तरीके अपनाये उससे देश की जनता का एक बड़ा वर्ग उससे बुरी तरह खफ़़ा हो चुका है। इसके बाद उसने बाबा रामदेव के आंदोलन से निबटने को जो हिटलरी और डराने धमकाने वाले तौर तरीके अपनाये उनसे भी जनता यूपीए सरकार से नाराज़ हुयी। इतना ही नहीं दिल्ली में 23 साल की दामिनी के साथ जिस वीभत्स तरीके से गैंगरेप हुआ और कानून सख़्त करने के बाद भी जैसे सामूहिक बलात्कार लगातार हो रहे हैं उसकी परतें अब धीरे धीरे खुल रही हैं कि हमारी सारी व्यवस्था ही भ्रष्टाचार के घुन से असफल हो चुकी है ।
मनमोहन खुले मन से यह स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं कि हमारी पुलिस से लेकर न्यायपालिका तक और चिकित्सालय से लेकर सत्ता के हर स्तर तक भ्रष्टाचार इतना बढ़ चुका है कि जनता के सब्र का पैमाना अब लब्रेज़ हो चुका है। जनता अब और सहन करने को तैयार नहीं है लेकिन मनमोहन सरकार है कि महंगाई बढ़ाने के साथ ही जनता की समस्याओं से आंखे चुराकर यह समझ रही है कि जनता के पास उनका कोई विकल्प नहीं है। यह बात किसी हद तक सही भी हो सकती है क्योंकि पीएम पद का प्रत्याशी बनने के बाद से मोदी के अब तक कोई विवादित मुद्दा ना उठाने के बावजूद भाजपा अपनी साम्प्रदायिक और फासिस्ट सोच छोडऩे का तैयार नहीं है और वामपंथी नास्तिक व चीन समर्थक समझे जाने की वजह से कांग्रेस का विकल्प बनने की स्थिति में नहीं हैं।
उधर आगामी चुनाव में दिल्ली की सत्ता में नई नई आई आम आदमी पार्टी पूरे देश में लोकसभा की काफी सीटों पर चुनाव लडऩे का ऐलान कर चुकी है जिससे मोदी की लहर का दावा कर रही भाजपा के सामने दिल्ली की तरह ही पूरे देश में केजरीवाल की आप की तरह ही बहुमत के करीब पहुंचकर भी सत्ता से दूर रहने का ख़तरा कांग्रेस की चाल से खड़ा हो गया है। कांग्रेस ने इसी दूर की कौड़ी के हिसाब से दिल्ली में ज़लील होकर भी केजरीवाल की आप सरकार उसी की शर्तों पर बनवाकर भाजपा को नई मुसीबत में डाल दिया है। भाजपा ने एक बार यूपी के विगत चुनाव में बसपा से बेआबरू करके निकाले गये महाभ्रष्ट बाबूराम कुशवाह को लिया था तो जनता ने उसे उसकी औक़ात बता दी थी जिसके बारे में हमने भी अपने एक लेख में भाजपा को पहले ही आगाह कर दिया था लेकिन वह नहीं मानी थी।
आज हम एक चेतावनी उसको और दे रहे हैं कि कर्नाटक में भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे पूर्व मुख्यमंत्री येदियुरप्पा को पार्टी में शामिल करके एक राज्य में वह इतना पायेगी नहीं जितना पूरे देश में केजरीवाल की आप के भाजपा विरोधी प्रचार से खो देगी। मनमोहन सिंह शायद इन सच्चाइयों को जानकर ही इतनी मनमानी करने पर उतारू हैं। ट्रांस्पेरेंसी इंटरनेशनल के सर्वे के मुताबिक एक साल में भारत ने भ्रष्ट देशों की सूची में 87 वें स्थान से छलांग लगाकर 95 वां मक़ाम हासिल कर लिया है। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन की सर्वे रिपोर्ट में आय और व्यय को लेकर किये गये सरकारी सर्वेक्षण में यह तथ्य सामने आया है। 60 फीसदी ग्रामीण जहां 35 रू. रोज में गुजर बसर कर रहे हैं वहीं इतने ही शहरी 66 रू. रोज़ में जीवन यापन कर रहे हैं।
संगठन के महानिदेशक जे दास ने बताया जुलाई 2009 और जून 2010 के दौरान हुए 66 वें सर्वेक्षण के मुताबिक अखिल भारतीय औसत मासिक प्रति व्यक्ति उपभोक्ता व्यय का स्तर ग्रामीण इलाकों में 1054 रू. और नगरीय क्षेत्रों में 1984 रू. रहा है। सर्वे में यह भी कहा गया है कि ग्रामीण इलाके में सबसे निचले पायदान पर 10 फीसदी आबादी ऐसी भी है जो मात्र 15 रू. रोज़ और शहरी इलाके में यह आंकड़ा 20 रू. रोज़ का है। ग्रामीण क्षेत्र के हिसाब से देखें तो यह आंकड़ा सबसे कम बिहार और 36गढ़ में 780 और उड़ीसा और झारखं डमें 820 रू. मासिक रहा है। दूसरी तरफ सबसे अधिक आय वाले राज्यों में केरल 1835 रू. और पंजाब और हरियाणा क्रमश: 1649 रू. और 1510 रू. रहा है। शहरी क्षेत्र के अनुसार महाराष्ट्र 2437 रू. के साथ सबसे आगे जबकि केरल 2413 रू. और हरियाणा 2321 रू. के साथ दूसरे तीसरे स्थान पर रहे हैं।
इस मामले में बिहार सबसे कम यानी 1238 रू. रहा है। महंगाई 10 फीसदी के पार हो चुकी है। औद्योगिक विकास दर दो फीसदी के करीब है। निर्यात में गिरावट और आयात में बढ़ोत्तरी दर्ज की जा रही है। संसेक्स दो साल के निचले स्तर पर है। डालर के मुकाबले रूपये का मूल्य 32 माह के निचले स्तर पर है। चालू वित्तवर्ष में जीडीपी के 7 फीसदी से नीचे रहने के आसार हैं। मानव विकास रिपोर्ट में भारत 169 देशों में 119 वें स्थान पर है। दुनिया के 15 सबसे भ्रष्ट देशों में भारत एक है। मॉर्गेन स्टेनली ने अगस्त में भारत की रेटिंग 15 से घटाकर 16 कर दी जबकि रेटिंग एजंसी मूडीज़ ने एसबीआई की रेटिंग पहले घटाई और फिर भारतीय बैंकिंग सिस्टम को निगेटिव कर दिया।सरकारी आंकड़ों के अनुसार 70 फीसदी लोग गरीब हैं। दुनिया में सबसे अधिक कर लगाने वाला भारत पेट्रोल और डीजल पर भी सबसे अधिक टैक्स लगाने वाला देश है।
कालेधन का बेताज बादशाह और घोटालों में भी आगे है। लालची और भ्रष्ट सरकारी तंत्र सुधरने के कोई आसार नजऱ नहीं आ रहे हैं। देश में 300 से अधिक आंदोलनों की अनदेखी हो रही है।2011-12 में सरकार ने फर्टिलाइजऱ में 67199 करोड़,
खाद्य पदार्थों में 72823 करोड़, पैट्रोलियम पदार्थों में 68481 करोड़ और आयकर में 42320 करोड़ यानी कुल 250723 करोड़ और उद्योग जगत को सीमा शुल्क में 276098 करोड़, उत्पाद शुल्क में 212167 करोड़ और कार्पोरेट कर में 51292 करोड़ की छूट देकर कुल 539552 करोड़ रू. की सब्सिडी दी गयी। 2010 में ही 15964 किसान राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार आत्महत्या कर चुके हैं। एक महीने में आन्ध्रा में 90 किसान और एक सप्ताह में ही विदर्भ में 17 किसान अपनी जान दे चुके हैं। पंजाब के 89 फीसदी किसान कर्ज में डूबे हैं।
प्रति कृषि परिवार पर पौने दो लाख रूपये का कर्ज यानी प्रति हेक्टेयर भूमि पर 50,140 रूपये का कर्ज है। 1995 से 2010 के बीच कजऱ् में फंसे ढाई लाख किसान आत्महत्या कर चुके हैं। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन के अनुसार देश का हर दूसरा किसान कर्ज़दार है। बहरहाल कांग्रेस की मनमोहन सिंह सरकार को भी इस बार समझ में आ सकता है कि बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से आये। मनमोहन आज भले ही अपनी नाकामी और बदनामी का ठीकरा मीडिया और विपक्ष पर फोड़ें लेकिन इतिहासकार भी उनकी काली करतूतों को नजऱअंदाज़ नहीं कर पायेंगे और इसका सबसे बड़ा सबूत खुद जनता उनको लोकसभा चुनाव में आईना दिखाकर देने जा रही है।