योगेश कुमार गोयल
भारत को विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा 13 जनवरी 2014 को पोलियो मुक्त देश घोषित कर दिया गया था। उसी दिन पोलियो से करीब साढ़े तीन दशकों की विकट लड़ाई के बाद भारत को विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा ‘पोलियो मुक्त’ घोषित किया गया था।
देश को पोलियो के खतरे से मुक्त रखने के लिए राष्ट्रीय पल्स पोलियो टीकाकरण अभियान शुरू हो गया है, जो 2 फरवरी तक चलेगा। राष्ट्रीय पल्स पोलियो प्रतिरक्षण अभियान के तहत 0-5 वर्ष आयु के सभी बच्चों को पोलियो की ड्रॉप पिलाई जाती है। 31 जनवरी को लक्षित आयु वर्ग के बच्चों को तैयार किए गए बूथों पर पोलियो ड्रॉप पिलाने के बाद एक तथा दो फरवरी को घर-घर जाकर इस आयु वर्ग के बच्चों को पोलियो ड्रॉप पिलाई जाएगी। हालांकि राष्ट्रीय पोलियो टीकाकरण कार्यक्रम इस वर्ष 17 जनवरी से प्रारंभ होना था किन्तु कोविड-19 के टीकाकरण की शुरूआत के कारण इसे स्थगित कर दिया गया था। भारत में पोलियो का आखिरी मामला करीब दस वर्ष पहले जनवरी 2011 में पश्चिम बंगाल में सामने आया था और विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा भी वर्ष 2014 में भारत को पोलियो मुक्त घोषित कर दिया गया था। ऐसे में सवाल यह है कि देश को पोलियो मुक्त घोषित करने के बाद भी इस अभियान को चलाए जाने की क्या जरूरत है? इसका कारण यही है कि अभी तक दुनिया के तीन देशों पाकिस्तान, अफगानिस्तान और नाइजीरिया में पोलियो पर लगाम नहीं लगाई जा सकी है। पाकिस्तान में तो वर्ष 2019 से अब तक पोलियो संक्रमण के सैंकड़ों मामले सामने आ चुके हैं। ऐसे में यह संक्रमण भारत तक नहीं पहुंच सके, इसीलिए हर साल वर्ष में दो बार राष्ट्रीय टीकाकरण दिवस के तहत पल्स पोलियो अभियान चलाया जाता है।
भारत को विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा 13 जनवरी 2014 को पोलियो मुक्त देश घोषित कर दिया गया था। उसी दिन पोलियो से करीब साढ़े तीन दशकों की विकट लड़ाई के बाद भारत को विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा ‘पोलियो मुक्त’ घोषित किया गया था। जनवरी 2011 से जनवरी 2014 तक देश में तीन वर्षों के अतराल तक पोलियो का एक भी मामला नहीं मिलने पर देश को पोलियो मुक्त घोषित किया गया था। पोलियो के टाइप-2 वायरस के दुनियाभर से खात्मे की घोषणा भी विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा 25 अप्रैल 2016 को कर दी गई थी। बच्चों को आजीवन विकलांग बना देने वाली पोलियो जैसी भयानक बीमारी से बचाने के लिए नवजात शिशुओं से लेकर पांच वर्ष तक के बच्चों को पोलियो की खुराक पिलाई जाती है। पोलियो के तीन तरह के वायरस होते हैं पीवी-1, पीवी-2 और पीवी-3 और पोलियो का कोई इलाज नहीं होता लेकिन पोलियो का टीका बार-बार देने से बच्चों को जीवन भर इससे सुरक्षा मिल जाती है।
पोलियो एक ऐसा रोग है, जिसने कई बार वर्षभर में ही हजारों बच्चों को पंगु बना डाला था। वर्ष 1988 में तो पोलियो के सर्वाधिक मामले सामने आए थे, जब करीब साढ़े तीन लाख बच्चे इससे संक्रमित हुए थे लेकिन पल्स पोलियो अभियान के चलते वर्ष 2015 में दुनियाभर से पोलियो के मात्र 74 मामले ही सामने आए थे। अक्तूबर 1994 में देशभर में ‘पोलियो उन्मूलन अभियान’ की शुरूआत की गई थी, जिसके सकारात्मक परिणाम सामने आए। पोलियो को जड़ से उखाड़ फेंकने के अभियान को ‘दो बूंद जिंदगी की’ नाम दिया गया था। 20 लाख से अधिक कार्यकर्ताओं ने इस अभियान से जुड़कर घर-घर जाकर पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों को पोलियो की खुराक पिलाकर देश को पोलियो मुक्त बनाने में अमूल्य योगदान दिया था।
पोलियो के करीब 95 फीसदी मामलों में बच्चों में कोई लक्षण नहीं दिखाई देता, जिन्हें असिम्प्टोमैटिक (स्पर्शोन्मुखी) मामले कहा जाता है। शेष 5 फीसदी मामलों को अबॉर्टिव पोलियो, नन-पैरालिटिक पोलियो और पैरालिटिक पोलियो में वर्गीकृत किया जाता है। अबॉर्टिव पोलियो में बुखार, थकावट, सिरदर्द, गले में खराश, मितली, दस्त जैसे लक्षण नजर आते हैं। नन-पैरालिटिक पोलियो में अबॉर्टिव पोलियो के लक्षण तो शामिल होते ही हैं, साथ ही रोशनी के प्रति संवेदनशीलता और गर्दन की अकड़न जैसे कुछ न्यूरोलॉजिकल लक्षण भी दिखाई देते हैं। पैरालिटिक पोलियो में वायरल जैसे लक्षणों के बाद मांसपेशियों में दर्द और असंयमित पक्षाघात जैसे लक्षण दिखाई देते हैं।
पोलियो एक बहुत ही संक्रामक बीमारी है, जो लोगों के बीच सम्पर्क से, नाक और मुंह के स्रावों द्वारा और संदूषित विष्ठा के सम्पर्क में आने फैलता है। पोलियो वायरस शरीर में मुंह के जरिये प्रवेश करता है, पाचन नली में द्विगुणित होता है, जहां यह आगे भी द्विगुणित होता रहता है। पोलियो टीकाकरण अभियान के दौरान अक्सर कहा जाता रहा है कि एक भी बच्चा छूट गया तो सुरक्षा चक्र टूट गया, इसलिए भविष्य में पड़ोसी देशों से पोलियो संक्रमण को भारत पहुंचने से रोकने के लिए इस अभियान को सफलतापूर्वक चलाया जाना बेहद जरूरी है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार तथा कई पुस्तकों के लेखक हैं, उनकी हाल ही में पर्यावरण संरक्षण पर 190 पृष्ठों की पुस्तक ‘प्रदूषण मुक्त सांसें’ प्रकाशित हुई है)