मूरख अदना आदमी, दबे पै ही रस देय
श्लाघा हो विद्वान की,
आदर करते धनवान।
सभा बीच वागीश की,
विरल होय पहचान ।। 496।।
मुक्ति की इच्छा यदि,
त्याग दे सारे ऐब।
निर्मल रख इस चित्त को,
मतकर कभी फरेब ।। 497।।
मीत के राज प्रकट करै,
वह नीचों का नीच।
दम घुटकै मर जाएगा,
सांप ज्यों बांबी बीच ।। 498।।
सोना बिन सुगंध के,
गन्ना हो फलहीन।
फूल बिना चंदन रहै,
विप्र होय धनहीन ।। 499।।
यहां विप्र से अभिप्राय विद्वान व्यक्ति से है। उपरोक्त पंक्तियों का सार यह है कि संसार में कुछ बातें ऐसी हैं जो आदिकाल से ही होती आयीं हैं।
औषधियों में श्रेष्ठ है,
अमृत का रसपान।
अंगों में श्रेष्ठ तो शीश है,
इन्द्री आंख महान ।। 500।।
राही सेवक विद्यार्थी,
सोते होय तो जगाय।
राजा सांप शिशु मूर्ख को,
भूलकै नही जगाय ।। 501।।
गन्ना तिल दही पान तो,
रगड़े पै रस देय।
मूरख अदना आदमी,
दबे पै ही रस देय ।। 502।।
धैर्य धारण जो करै,
लगै निर्धनता अनुकूल।
जिसमें होय सुशीलता,
चुभै न कुरूप का शूल ।। 503।।
विद्या भूषण मनुष्य का,
सभी गुणों की खान।
प्रतिभा को यह निखारती,
बनाती है विद्वान ।। 504।।
कार्य से पहले मनन कर,
देखले गुण और दोष।
भावुकता में मत बहै,
रखना जोश में होश ।। 505।।
कवि कल्पना लोक में,
करता है दृष्टिïपात।
हठ करती हैं स्त्रियां,
कौवा सब कुछ खात ।। 506।।
लीला प्रभु की अपार है,
जब होवे मेहरबान।
रंक को राजा करे,
निर्धन को धनवान ।। 507।। क्रमश: