व्योम की तरंगों से संभव है
विचारों का सूक्ष्म आदान-प्रदान
– डॉ. दीपक आचार्य
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हममें से कई लोगों का यह अनुभव रहा है कि अक्सर हमें वे लोग संपर्क साधने की कोशिश करते हैं जिनके जेहन में हम आ जाते हैं अथवा जो हमारे जेहन में आ जाते हैं। कई बार यह भी देखा जाता है कि जिन्हें याद किया जाता है उनका फोन आ जाता है अथवा वे स्वयं हमारे करीब आ जाते हैं और तब हमें भी आश्चर्य होता है और लोक भाषा में ऎसा अवसर अनायास उपस्थित हो जाने पर कहा जाता है कि जिनका स्मरण होते ही जो सामने आ जाता है अथवा संपर्क सूत्र कायम हो जाता है उनकी आयु लंबी है।
हम सभी के साथ ऎसा जीवन में कई बार होता रहता है लेकिन हम गंभीरता से नहीं लिया करते और बात यों ही उड़ा दिया करते हैं। यह पूरा संसार मन-मस्तिष्क की तरंगों से ही चल रहा है और इन्हीं के आधार पर ब्रह्माण्ड में व्यापक परिवर्तन की भाव भूमि बनती-बिगड़ती रहती है।
इन तरंगों का मनोविज्ञान जो समझ लेता है वह निहाल हो उठता है तथा इनके माध्यम से विचार सम्प्रेषण की सूक्ष्म विधाओं में सिद्ध हो जाता है। आमतौर पर चित्त की शुद्धि जितनी अधिक होती है उतना ही तरंगों का वेग और तीक्ष्णता ज्यादा होती है और इसका अनुभव भी साफ-साफ होना संभव है।
मन की मलीनता रहते हुए ये संकेत और वैचारिक आदान-प्रदान का क्रम बाधित और स्थूल हो उठता है तथा इस अवस्था में जो संकेत प्राप्त होते हैं या भिजवाए जाते हैं उनमें स्पष्टता का अभाव रहता है। हम इसे कर्षण शक्ति कह लें या आकर्षण शक्ति, इसका प्रयोग और अनुभव अपने आप में भावातीत है और किसी चमत्कार से कम नहीं है।
तरंगों के नेटवर्क को समझने और उनका उपयोग करने में माहिर व्यक्तियों को अपने विचार सम्प्रेषण और दूसरों से प्रस्फुटित विचारों की ग्राह्यता में कहीं कोई दिक्कत नहीं होती तथा वे दिव्य तरंगों के माध्यम से आसानी से विचारों का आदान-प्रदान कर सकने में समर्थ हुआ करते हैं।
विचारों के सूक्ष्म सम्प्रेषण से माध्यम से किसी को भी अपनी ओर आकर्षित किया जा सकता है तथा उनमें सकारात्मक या नकारात्मक भावों का सृजन किया जा सकता है। यह अपने आप में सूक्ष्म थैरेपी है जिसका अभ्यास कर लिए जाने पर विचारों को अपनी संकल्प शक्ति की धार देते हुए तीखा और तीव्र बनाया जा सकता है और इनका व्यक्तियों तथा समुदाय के हित मेंं उपयोग किया जा सकता है।
यह कर्षण या आकर्षण शक्ति हमारे कई प्रकार के रोजमर्रा के कामों को भी प्रभावित करती है। कई बार हम किसी काम में दत्त चित्त होते हैं और पूरी तल्लीनता से काम कर रहे होते हैं, इस बीच अचानक मन उचट जाता है और ध्यान भंग हो जाता है। इसी प्रकार कोई सा काम करने पर अपने मन में किसी ओर का विचार आ जाने पर वह व्यक्ति हमसे संपर्क साधने की कोशिश करने लगता है।
कई सारे लोग ऎसे भी होते हैं जिन्हें हम अपने कामों से दूर रखना चाहते हैं लेकिन वे हमारे कामों के बीच अचानक अवचेतन से बाहर निकल कर चेतन में आ जाते हैं और हमें उनकी याद आ ही जाती है। ऎसे में हमारे मन-मस्तिष्क की सूक्ष्म तरंगें उनकी ओर आकृष्ट होकर उनका आकर्षण करने लगती हैं और ऎसे में यदि सामने वाला व्यक्ति ज्यादा गंभीर काम नहीं कर रहा होता हो अथवा बिना काम का बैठा हो, तब उसका ध्यान सूक्ष्म तौर पर हमारी ओर होने लगता और उसे हमारी याद आने लगती है।
इसी प्रकार हमें जब अच्छे और हमारे अपने काम के लोगों की भी याद आती है तब सूक्ष्म तरंगों से उनका हमारी ओर आकर्षण होने लगता है। दोनों ही स्थितियों में संदेशों का आवागमन और अनुभूति का स्तर दोनों ही पक्षों की चित्त शुद्धि पर निर्भर करता है।
यह भी देखा गया है कि कभी-कभार हम अपने से उच्च पदों पर बैठे अधिकारियों या सेठ-साहूकारों या विशिष्टजनों से दूरी रखना चाहते हैं लेकिन किसी वजह से अनायास स्मरण हो आने पर दोनों पक्षों के बीच सूक्ष्म तरंगों का सेतु कायम हो जाता है और हम उनकी ग्राह्यता परिधि में आ जाते हैं और तब उनकी ओर से हमें किसी न किसी काम से याद कर लिया जाता है।
दूसरी ओर जिनसे हम सम्पर्क स्थापित करना चाहते हैं उन्हें भी इन सूक्ष्म तरंगों से आकर्षित किया जा सकता है। दोनों ही स्थितियों में सूक्ष्म वैचारिक तरंगों का आदान-प्रदान निर्भर करता है हमारी संकल्प शक्ति पर। जितना हमारा संकल्प मजबूत होगा, उतनी ताकत से सूक्ष्म विचारों का आवागमन होने लगेगा। तरंगों के इस विज्ञान को समझना मुश्किल जरूर है मगर असंभव नहीं।