रैन काट पक्षी उड़े, सूना रह जाए नीड
भिखारी शत्रु लोभी का,
मूरख का गुणगान।
चोरों का शत्रु चंद्रमा,
कुल्टा का पति जान ।। 508।।
बुद्घिहीन को ज्ञान दे,
वृथा ज्ञान को खोय।
बांस बसे चंदन निकट,
खुशबू न वैसी होय।। 509।।
बुद्घिहीन को व्यर्थ है,
चारों वेदों का सार।
जैसे अंधे को आइना,
लगता है बेकार ।। 510।।
गुदा न कभी मुख हो सके,
चाहे धोओ सैकड़ों बार।
दुर्जन सज्जन हो नही,
रहै सारा श्रम बेकार ।। 511।।
गैरों से रखे बैर जो,
निज धन का हो नाश।
आत्म द्वेष के कारनै,
मृत्यु का बनै ग्रास ।। 512।।
आत्मद्वेषाद से अभिप्राय है कि अपनी ही आत्मा से द्वेष रखना, बैर रखना, अपनी आत्मा का हनन करना।
वन में रहना श्रेष्ठ है,
गर नर हो धनहीन।
अपने संगों के बीच में,
बैठ होय यशहीन ।। 513।।
माता जिसकी लक्ष्मी,
पिता होय भगवान।
प्रभु-भक्त बंधु बनै,
है कोई पुण्यवान ।। 514।।
रैन काट पक्षी उड़े,
सूना रह जाए नीड़।
जीव जाए तन छोड़ कै,
रह जाए बंधु-भीड़ ।। 515।।
बुद्घि जहां है बल वहां,
मूरख ठोकर खाय।
बुद्घि से खरगोश ने,
शेर दिया मरवाय ।। 516।।
शूरवीर सहनशील हो,
भले बुरे का ज्ञान।
दानी और नि:स्वार्थी,
प्रभु कृपा की पहचान ।। 517।।
अर्थात यदि मनुष्य शूरवीर यानि कि पराक्रमी है, सहनशील यानि कि धैर्यवान है उत्साह से भरा हुआ है, हिम्मत वाला है, गुण-दोष की विवेचना करके निर्णय लेने वाला है प्रसन्नचित रहने वाला मृदुभाषी है, संसार का उपकार नि:स्वार्थ भावना से करने वाला है तो समझो ये गुण प्रभु प्रदत्त हैं। क्रमश: