पूरे विश्व में फैली कोरोना महामारी के चलते सभी देशों में तुलनात्मक रूप से राजस्व संग्रहण में बहुत कमी आई है। भारत में भी यही स्थिति देखने में आई है और करों की वसूली एवं अन्य स्त्रोतों से आय वित्तीय वर्ष 2020-21 में वर्ष 2019-20 की तुलना में बहुत कम रही है। हालांकि कोरोना महामारी के बाद, अब जब आर्थिक विकास दर में पुनः वृद्धि दृष्टिगोचर है तब करों की वसूली में भी सुधार देखने में आ रहा है। माह दिसम्बर 2020 में जीएसटी संग्रहण रिकार्ड स्तर पर, रुपए 1.15 लाख करोड़ रुपए का हुआ है। माह अक्टोबर 2020 एवं नवम्बर 2020 में भी यह एक लाख करोड़ रुपए से अधिक का रहा था।
कोरोना महामारी के चलते राजस्व के संग्रहण में आई कमी के चलते केंद्र सरकार ने आवश्यक ख़र्चों विशेष रूप से ग़रीब वर्ग एवं किसानों को सहायता पहुंचाने के लिए होने वाले ख़र्च में कोई कमी नहीं आने दी है। बल्कि, पूंजीगत ख़र्चों को तो पिछले वर्ष की तुलना में बढ़ाया ही है ताकि देश की अर्थव्यवस्था को बल मिल सके एवं रोज़गार के अधिक अवसर निर्मित हो सकें, जिसकी कि आज देश में बहुत अधिक आवश्यकता है। वित्तीय वर्ष 2020-21 में माह दिसम्बर 2020 को समाप्त अवधि तक 499 डीबीटी योजनाओं पर 2.21 लाख करोड़ रुपए ख़र्च किए गए हैं। विपरीत परिस्थितियों में आर्थिक विकास को गति देने के लिए सरकारी ख़र्चों को बढ़ाने की बहुत ज़रूरत है। माह अप्रेल 2020 से नवम्बर 2020 को समाप्त अवधि में केंद्र सरकार का कुल व्यय 19,06,358 करोड़ रुपए रहा है जबकि वित्तीय वर्ष 2019-20 की इसी अवधि के दौरान यह 18,20,057 करोड़ रुपए रहा था। इसी प्रकार पूंजीगत ख़र्चे भी वित्तीय वर्ष 2020-21 में नवम्बर 2020 तक 2,41,158 करोड़ रुपए के रहे हैं जो वित्तीय वर्ष 2019-20 में इसी अवधि का दौरान 2,13,842 करोड़ रुपए के रहे थे। वित्तीय वर्ष 2020-21 में केंद्र सरकार के कुल राजस्व की वसूली 830,851 करोड़ रुपए की रही है जबकि कुल ख़र्चे 19,06,358 करोड़ रुपए के किए गए हैं। इस प्रकार कम राजस्व वसूली का ख़र्चों पर किसी भी तरह से असर आने नहीं दिया गया है। ऐसा कोरोना महामारी जैसी विशेष विषम परिस्थितियों के चलते ही किया गया है ताकि देश की जनता को किसी भी प्रकार की परेशानी न हो सके एवं देश के विकास को गति मिल सके। विशेष रूप से देश में जब निजी निवेश भी गति नहीं पकड़ पा रहा हो, तो केंद्र सरकार को तो आगे आना ही होगा।
वैसे देश में अब परिस्थितियां तेज़ी से बदल रही हैं और आर्थिक विकास दर तेज़ी से वापिस पटरी पर आती दिख रही है। जैसे जैसे आर्थिक विकास दर की रफ़्तार बढ़ेगी वैसे वैसे केंद्र सरकार के राजस्व में भी तेज़ गति से वृद्धि होगी। साथ ही, कोरोना महामारी जैसी विषम परिस्थितियों के कारण विनिवेश के लक्ष्य भी हासिल नहीं किये जा सके और अब जब शेयर बाज़ार में तेज़ी दिखाई पड़ रही है और शेयर बाज़ार नित नई रिकार्ड ऊंचाईयों को छू रहा है। ऐसे में, केंद्र सरकार के लिए विनिवेश के लक्ष्य हासिल करना भी थोड़ा आसान होता दिखाई दे रहा है।
कुछ क्षेत्रों में विकास दर को हासिल करने में अभी और समय लगेगा जैसे टुरिज़म, एवीएशन एवं होटेल उद्योग आदि क्योंकि इन क्षेत्रों को अभी तक पूरे तौर पर खोला भी नहीं गया है। अतः केंद्र सरकार को इन क्षेत्रों सहित अन्य कई क्षेत्रों में प्रोत्साहन/सहायता कार्यक्रम चालू रखने होंगे, केंद्र सरकार ऐसा कर भी रही है।
कोरोना महामारी के कारण देश में बरोज़गारी की दर में भी इज़ाफ़ा हुआ है। इस मुद्दे को गम्भीरता एवं शीघ्रता से सुलझाने का प्रयास केंद्र सरकार कर रही है। विशेष रूप से हॉस्पिटैलिटी एवं ट्रैवल के क्षेत्रों को धीरे धीरे खोला जा रहा है ताकि इन क्षेत्रों में रोज़गार के अवसर एक बार पुनः कोरोना महामारी के काल के पहिले के स्तर को प्राप्त कर सकें। अभी तक ये क्षेत्र 50 प्रतिशत से कुछ अधिक खुल पाए हैं। ये थोड़े जोखिम भरे क्षेत्र हैं क्योंकि इन क्षेत्रों को पूरे तौर पर खोलने से कोरोना महामारी के वापिस फैलने का ख़तरा हो सकता है।
हालांकि केंद्रीय बजट में बजटीय घाटे की एक सीमा निर्धारित की गई है जिसका पालन केंद्र सरकार को करना होता है परंतु कोरोना महामारी जैसी विशेष परिस्थितियों के चलते इस सीमा का पालन किया जाना अब बहुत मुश्किल हीं नहीं बल्कि असम्भव भी होगा। अतः वित्तीय वर्ष 2021-22 के केंद्रीय बजट के लिए इस सीमा के पालन में छूट लेते हुए इसे बढ़ाया जाना चाहिए। बजटीय घाटे में यदि वृद्धि भी होती है तो देश की अर्थव्यवस्था पर कोई विपरीत प्रभाव पड़ने वाला नहीं हैं क्योंकि एक तो यह ख़र्चा पूंजीगत मदों पर अधिक किया जा रहा है, दूसरे अब देश में ब्याज की दरें काफ़ी कम हो गई हैं अतः केंद्र सरकार को बाज़ार से लिए जा रहे ऋणों पर कम ब्याज देना पड़ रहा है। साथ ही, यदि यह राशि पूंजीगत मदों पर ख़र्च की जा रही है तो इससे एक तो संपतियों का निर्माण होगा, दूसरे रोज़गार के नए अवसर निर्मित होंगे, तीसरे उत्पादों की मांग बढ़ेगी और इस तरह आर्थिक विकास का पहिया तेज़ी से घूमने लगेगा और केंद्र सरकार के राजस्व में वृद्धि करने में भी सहायक सिद्ध होगा। हां, निर्माण के क्षेत्र में, कृषि के क्षेत्र में एवं अधोसंरचना को विकसित करने के लिए, पूँजीगत ख़र्चे अधिक मात्रा में किए जाने चाहिए क्योंकि इन क्षेत्रों में तुलनात्मक रूप से रोज़गार के अधिक अवसर निर्मित होते हैं।
केंद्र सरकार ने पिछले 6 महीनों के दौरान कई क़दम उठाए हैं और उसका असर नवम्बर एवं दिसम्बर माह के राजस्व संग्रहण में दिखने भी लगा है। कोरोना महामारी के दौरान, दरअसल पूंजीगत ख़र्चे निजी क्षेत्र एवं सरकारी क्षेत्र, दोनों ही क्षेत्रों में कम हो गए थे। परंतु अब जब केंद्र सरकार ने अपने ख़र्चों में बढ़ौतरी करनी शुरू कर दी है तो आशा की जा रही है कि निजी क्षेत्र भी सरकार के साथ क़दम से क़दम मिलाकर चलेगा एवं अपने पूंजीगत ख़र्चों को बढ़ाएगा। विदेशी निवेशक भी अब आगे आ रहे हैं एवं उन्होंने नैशनल हाईवेज़ के प्रोजेक्ट्स में 10,000 करोड़ रुपए का निवेश किया है। इस तरह के प्रोजेक्ट की आस्तियों का मुद्रीकरण (Monetise) किया जा रहा है ताकि निवेश बढ़ाया जा सके। पूंजीगत ख़र्चों को हर हालात में बढ़ाया जा रहा है। एयरपोर्ट्स का निजीकरण किया जा रहा है इससे भी राजस्व की प्राप्ति केंद्र सरकार को होगी।
केंद्र सरकार ने स्ट्रीटीजिक उद्योग नीति की घोषणा की है। इससे कई क्षेत्रों का निजीकरण करने में आसानी होगी। क्षेत्र निर्धारित कर लिए गए हैं। यह एक बड़ा क़दम है, जो केंद्र सरकार द्वारा उठाया जा रहा है। अपने राजस्व में वृद्धि करने के लिए इसी प्रकार के कई क्रांतिकारी क़दम अब राज्य सरकारों को भी उठाने होंगे। देश के आर्थिक विकास को गति देने के उद्देश्य केंद्र एवं राज्य सरकारों को अब मिलकर काम करना आवश्यक हो गया है।
लेखक भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवर्त उप-महाप्रबंधक हैं।