हम जो कुछ भी होते हैं वह अपनी मां के कारण होते हैं

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मां का हमारे जीवन में अमूल्य योगदान है । संसार के जितने भर भी महापुरुष हुए हैं उनके निर्माण में सबसे बड़ा योगदान मां का रहा है। जो महापुरुष युगधारा को परिवर्तित करते हैं और इतिहास को मोड़ने की क्षमता रखते हैं उन सबके निर्माण में मां का विशेष योगदान रहा है । इस प्रकार संसार में जितनी भर भी युग परिवर्तनकारी घटनाएं घटित हुई हैं, उन सबके पीछे भी मां की प्रेरणा ही मानी जाएगी । संसार में मानवता को जिंदा रखने के लिए जिन जिन महापुरुषों ने जितना – जितना बड़ा आंदोलन या संघर्ष किया है उसके पीछे भी मां की ममता या उसकी प्रेरणा ही काम करती रही है । अब चाहे वह रामचंद्र जी की मां कौशल्या रही हो, चाहे कृष्ण जी की मां रही हों या फिर कुंती के द्वारा अपने पांचों पांडवों को दी गई प्रेरणा शक्ति रही हो या जीजाबाई द्वारा अपने पुत्र शिवाजी को दी गई प्रेरणा शक्ति रही हो । हर माँ ने हर काल में, हर युग में अपने बेटे के माध्यम से युगांतरकारी घटनाओं को जन्म दिया है ।

मां के योगदान ने ही सृष्टि के प्रारंभ में अनेकों ऋषियों को जन्म दिया । मां की कोख और गोद से ही अनेकों सम्राटों का निर्माण हुआ, जिन्होंने इस संपूर्ण भूमंडल पर अपने साम्राज्य स्थापित किए और संपूर्ण भूमंडल के प्राणियों का पिता के समान पालन किया। मां की कोख और गोद से ही उन अनेकों कवियों, लेखकों, साहित्यकारों, वैज्ञानिकों और शोधकर्ता विद्वानों ने जन्म लिया जिन्होंने संसार को अनेकों प्रकार के ज्ञान विज्ञान से पूरित किया।
तनिक विचार कीजिए कि यदि मां की ममता ना होती तो संसार में प्रेम नाम के तत्व की खोज कौन करता ? कौन इसे समझ पाता कि एक ऐसा सूत्र है जो हम सबको एक धागे में बांधे रखता है। इस ममता का मूल्य समझने से ही हमें प्रेम नाम के इस सूत्र का ज्ञान हुआ । मां की ममता ने ही हमें एक दूसरे के प्रति आकर्षण के साथ बांधने का काम किया। मां की ममता ने ही संसार को एक परिवार बनाकर रखने का चिंतन ऋषियों को प्रदान किया। मां की ममता ने ही वसुधैव कुटुंबकम और कृण्वन्तो विश्वमार्यम का उद्घोष कराया।
मेरी मां ने भी मुझे बचपन में ऐसी अनेकों कथाएं, किस्से, प्रेरक प्रसंग सुनाए जो आज तक भूले नहीं भुलाए जाते। माँ ने ही अनेकों कष्टों को झेलकर कष्ट झेलने की प्रेरणा दी। माँ ने ही हर स्थिति में परमपिता परमेश्वर को याद करते रहकर आगे बढ़ने का हौसला दिया। मां ने ही समझाया कि हर समस्या के बाद समाधान प्रस्तुत होता है। ऐसी पूजनीया, वंदनीया मां जो स्वयं अपने बच्चों के लिए एक पाठशाला बन जाती है, सचमुच हमारे जीवन का आधार होती है।
उसके ऋण से उऋण होने के लिए जीवन छोटा पड़ जाता है। मां ने मानव धर्म की शिक्षा दी और हमें मानव बनाया । सचमुच उसकी यह शिक्षा हमारे लिए सबसे बड़ी शिक्षा रही।
विनोबाजी कहते हैं- “माँ के मुझ पर अनंत उपकार हैं। उन्होंने मुझे दूध पिलाया, खाना खिलाया, बीमारी  रात-रात जागकर मेरी सेवा की, ये सारे उपकार तो हैं ही लेकिन उससे कहीं अधिक उपकार उन्होंने मुझे मानव के आचार-धर्म की शिक्षा देकर क्या किया है।
एक बार मेरे हाथ में एक लकड़ी थी और उसमें से मैं मकान के खम्भे को पीट रहा था। माँ ने मुझे रोककर कहाः “उसे क्यों पीट रहे हो ? वह भगवान की मूर्ति है। क्या उसे तकलीफ देनी चाहिए ?” मैं रुक गया। सब भूतों (जड़ पदार्थों एवं चर-अचर प्राणियों) में भगवद्भावना रखें, यह बात बिल्कुल बचपन में माँ ने मुझे पढ़ायी।
स्कूलों में क्या पढ़ाई होती है ? क्या किसी स्कूल कॉलेज में या किसी पुस्तक द्वारा मुझे ये संस्कार मिल सकते थे ? मेरे मन पर मेरी माँ के जो संस्कार हैं, उनके लिए कोई उपमा नहीं है।”
शुरु से ही विनोबाजी में संन्यास जीवन के प्रति आकर्षण था। कम खाना, सुबह जल्दी उठना, जमीन पर सोना, ‘दासबोध’, ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ जैसे सत्शास्त्रों का वाचन-मनन करना आदि सदगुण बचपन से ही उनमें प्रकट हुए थे। बेटे को संन्यास-पथ पर बढ़ते देख माता रुक्मिणी को दुःख नहीं होता था। वे कहती थीं- “विन्या ! गृहस्थाश्रम का अच्छी तरह पालन करने एक पीढ़ी का उद्धार होता है परंतु उत्तम ब्रह्मचर्य पालन से 42 पीढ़ीयों का उद्धार होता है।”
इस प्रकार उन्होंने विनोबा जी को आत्मजिज्ञासूपर्ति के पथ पर प्रोत्साहित किया।

‘अथातो ब्रह्मजिज्ञासा’

विनोबाजी जब घर छोड़कर गये तो चिट्ठी लिखीः ‘अथातो ब्रह्मजिज्ञासा (अब यहाँ से ब्रह्मविचार आरम्भ किया जाता है) – मैं घर छोड़ रहा हूँ।’

अड़ोस-पड़ोस  में बात फैली। लोग कहतेः ‘आजकल के लड़के होते ही ऐसे हैं, माँ-बाप की परवाह नहीं करते हैं।’ तब विनोबजी की माँ कहतीं- ‘मेरा विन्या कोई नाटक-वाटक (सिनेमा आदि) जैसी गलत बातों के लिए थोड़े ही घर छोड़कर गया है, वह तो ब्रह्म की खोज के लिए गया है ! वह देश, धर्म, संस्कृति, समाज और ईश्वर की सेवा के लिए घर छोड़कर गया है। मेरे मन में इसका बड़ा संतोष व गौरव है।”

विनोबा जी के उज्जवल चरित्र के पीछे माँ द्वारी दिये गये सुसंस्कारों का अमूल्य योगदान है। ऐसी माँओं के समाज पर अनंत उपकार हैं, जिन्होंने समाज को ऐसे पुत्ररत्न प्रदान किये। वे माताएँ धन्य हैं ! ऐसी माताओं के माता-पिता व कुल गोत्र भी धन्य हैं  !!
कल्पना कीजिए कि यदि रामचंद्र जी का निर्माण कौशल्या विशेष रूप से न करतीं तो रावण जैसे महान घमंडी शासक का मस्तक कौन झुकाता ? शिवाजी के साथ माता जीजाबाई नहीं होती तो मुगलों के साम्राज्य को मराठा शक्ति हिंदुस्तान से कैसे उखाड़ पाती ? यदि महाराणा प्रताप को मां से प्रेरणा नहीं मिली होती तो शिवाजी के गर्व को कौन तोड़ पाता ? यदि सुभाष चंद्र बोस को उनकी मां सुभाष न बनाती तो भारत से ब्रिटिश शासन को उखाड़ने का महान कार्य कौन संपादित करता ?
मैं अपनी पूजनीया माता जी श्रीमती सत्यवती आर्या जी और संसार की सभी उन माताओं के प्रति ह्रदय से श्रद्धा व्यक्त करता हूं जिनके दिए हुए संस्कार जीवन में पग-पग पर मार्गदर्शन करते हैं और जिनके आशीर्वाद से हम प्रत्येक प्रकार की उन्नति को प्राप्त करते जा रहे हैं।

– डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

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