मन में ढेर सारी इच्छाएं, सपने दबाए अम्मा एक रोज अचानक चली गयी। आज आधुनिकता के ये साजो सामान मेरे किस काम के। अम्मा ने तो उसे भोगा ही नही। हमने हड़बड़ी न दिखाई होती तो शायद थोड़ा वक्त वो और साथ रहती। उसके दिल के वाल्व खराब हो गये थे। इसलिए उनका दिल असामान्य धड़कता था। डॉक्टरों का कहना था ऑपरेशन हुआ तो ज्यादा समय के लिए दिल ठीक रह सकता है। नही हुआ तो पांच सात साल से ज्यादा नही है। हमने ऑप्रेशन करा दिया। वह नही चाहती थी। उनसे यह झेला ानही गया। वह चली गयी। हमोर लिए तो वे स्नेह, त्याग, उदारता, सहनशीलता के प्रतिमान गढ़ती थी। खुद का सवाल होता तो दर्द को पी लेती थी।
मेरे जन्म के वक्त भयानक बरसात हो रही थी। पानी रूकने का नाम नही ले रहा था। घन घमंड नभ गर्जत घोरा। कच्चे घर के टूटे छप्पर से जगह जगह पानी चू रहा था। पूरी रात मेरी मां इस जुगाड़ में मुझे चारपाई पर इधर से उधर हटाती बढ़ाती रही कि टपकते पानी से मैं कहीं भीग न जाऊं। पानी रोकने के लिए कही थाली रखी गयी कहीं बाल्टी प्रसव पीड़ा के बावजूद बच्चे के प्रति इस हद तक आसक्ति का भाव। यही है मां।
कच्चा घर और टूटी छप्पर तो मेरे जन्म के साथ जाते रहे। पर नही गया तो अम्मा का स्नेह। जिसका स्नेहिल स्पर्श आज भी मैं जब मुश्किल में होता हूं, महसूस करता हूं। अब न मेरे मकान में छप्पर है। न पानी टपकने के लिए गुंजाइश। मौसम को नियंत्रित करने के सभी उपकरण भी हैं। नही हैं तो अम्मा। होती तो बहुत खुश होती। वह आज जहां भ्ीहोगी। इसी चिंता में लगी होगी कि उसके बेटे को तकलीफ न हो। उसकी इसी इच्छाशक्ति ने उसे जीवित रखा है।
इसलिए अपना मानना है वह जिंदा है। निदा फाजली के शब्द उधार लूं तो तुम्हारी मौत की सच्ची खबर जिसने उड़ाई है वह झूंठा था। कोई सूखा हुआ पत्ता हवा से गिरके टूटा था। वह तुम कब थी। मैं तुझमें कैद हूं। तुम मुझमें जिंदा हो।
ये सही है कि अपने अपने दर्द होते हैं। लेकिन दर्द सहने का मापक यंत्र मां ही होती है। मनुष्य के शरीर में अधिकतम 45 डेल (दर्द मापने की इकाई) दर्द सहने की क्षमता होती है। प्रसव के वक्त ये दर्द 57 डेल तक पहुंच जाता है। इतना दर्द 20 हड्डियों के एक साथ टूटने जितना होता है। हमें दुनिया दिखाने के लिए मां को कितना दर्द सहना पड़ता है।
पौराणिक कथा है नारद ने ब्रह्मा से पूछा आप क्या बना रहे हैं? ब्रह्मा ने कहा जिसकी कोख से इंसानियत जन्मती हो। जिसकी गोद में दुनिया समा जाए। जो बच्चे की आवाज से उसकी परेशानी जान जाए। जिसकी संतान परदेश में रोये आंचल देश में भीगे। लाख तकलीफों के बावजूद जिसके दिल से दुआ निकले। जिसके मन में जमाने भर का दर्द समा जाए और अधरों पर आह न आए। मां ऐसे बनती है। मां ऐसी होती है।