थालियों और तालियों का बजना
उत्तर प्रदेश आजादी के बाद से ही देश की राजनीति में प्रमुख भूमिका निभाने वाला प्रांत रहा है। उत्तराखण्ड बनने तक प्रदेश के पास 85 लोकसभा सीटें होती थीं। आज भी इन सीटों में अधिक अंतर नही आया है। 82 सीटें अकेले उत्तर प्रदेश के पास आज भी हैं। इतनी सीटें किसी भी प्रांत के पास नही हैं। इसलिए आज भी देश की राजनीति की दिशा तय करने में उत्तर प्रदेश की भूमिका प्रमुख मानी जाती है।
यही कारण है कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती 23 जनवरी पर प्रदेश में गोरखपुर में जहां भाजपा के पी.एम. पद के प्रत्याशी नरेन्द्र मोदी दहाड़े। वहीं सपा सुप्रीमो ने बनारस में चुनावी सभा को संबोधित किया है और कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने अमेठी में प्रदेश की नब्ज टटोलने का प्रयास किया है। यह महज संयोग नही है कि एक ही दिन तीनों बड़ी पार्टियों के नेताओं ने उत्तर प्रदेश की जनता को अपने साथ लेने का प्रयास किया है, अपितु इस प्रयास के पीछे बहुत बड़ा गुणाभाग है, और है आने वाले कल की संभावनाओं को अपने अपने पक्ष में भुनाने की अहम कवायद।
सारे अनुमानों को विभिन्न टी.वी. चैनलों ने भी अपने ढंग से साबित करने का प्रयास किया है। सभी चैनलों ने भाजपा को अभी नंबर-1 पार्टी सिद्घ किया है। वैसे मोदी की भाषण कला और अपने विरोधियों को उनके द्वारा दी जा रही कड़ी चुनौती भी यही बता रही है कि भाजपा के सितारे अभी बुलंदी पर हैं।
भाजपा पूर्ण मनोयोग से चुनावों में उतर रही है और पूर्वांचल (जो कि सपा का गढ़ रहा है) में भी जनता मोदी बनाम मुलायम की जंग को बड़े ध्यान से देख रही है। सपा जितना ही मोदी को साम्प्रदायिक या इंसानियत का हत्यारा कह रही है, उतना ही मोदी को लाभ मिल रहा है। क्योंकि अभी मुजफ्फरनगर दंगों के दौरान लोगों ने देख लिया है कि वास्तव में इंसानियत के हत्यारे कौन हैं? मुजफ्फरनगर दंगों के लिए आज भी लोग यही कह रहे हैं कि यदि प्रारंभ में ही दोषी लोगों के विरूद्घ कड़ी कार्यवाही हो जाती तो जो भयंकर रक्तपात प्रदेश में हुआ वह नही होता। उस लापरवाही के लिए शासन प्रशासन जिम्मेदार रहा और अपनी जिम्मेदारी से मुलायम सिंह यादव भाग नही सकते। इसके अलावा मुलायम सिंह यादव ने उत्तर प्रदेश में चुनावी जंग को मोदी बनाम मुलायम सिंह की जंग बना दिया है। मोदी के लिए यही जंग लाभदायक रहेगी। कांग्रेस स्वयं ही हाशिए पर आ गयी है। कांग्रेस ने आज यहां मोदी बनाम मुलायम की जंग को चुनाव की अहम जंग बनाकर और उसमें स्वयं को हाशिए पर धकेलकर चाहे राहत की सांस ली हो, परंतु यह राहत ही चुनाव के बाद उसे आहत करेगी। मायावती चुप हैं, कांग्रेस बचावी जंग लड़ रही है और मुलायम सिंह यादव का पारा लुढ़क रहा है तो लाभ नमो को ही हो रहा है। कांग्रेस के युवराज को उनके लोकसभाई क्षेत्र के लोगों ने ही नापसंद कर दिया है। यह उनके लिए बहुत ही नुकसान दायक बनने वाली स्थिति है। स्थिति को भांपकर प्रियंका बढ़ेरा भी खामोश सी होती जा रही हैं। कांग्रेस ने अपने युवराज को मोदी के सामने पी.एम. पद का उम्मीदवार तो नही बनाया है, पर वह जनता ने कांग्रेसी पी. एम. पद के उम्मीदवार ही मान लिए हैं और वह उनमें कोई रूचि न दिखाकर उन्हें पी. एम. पद के उम्मीदवार के लिए अयोग्य घोषित कर रही है। मोदी को परिस्थितियों का पूरा लाभ मिल रहा है। किसी भी व्यक्ति के उत्कर्ष का अनुमान इसी बात से लगाया जाया करता है कि जब वह बोले तो थालियां बजें और जब उसका विरोधी बोले तो तालियां बजें। थालियों का बजना तालियों के बजने से कही अधिक महत्वपूर्ण हैं। थालियां बजाने वाले चुनाव की दिशा तय करते हैं और तालियां बजाने वाले नेता की दशा तय करते हैं। दोनों का अंतर इस समय सफल दीख रहा है। इसीलिए भाजपा को सभी टी.वी. चैनलों ने आगामी लोकसभा चुनावों में सबसे आगे दिखाया है। परंतु भाजपा की एक कमजोरी भी रही है कि ये पार्टी प्रमाद का शिकार जल्दी हो जाती है। इसे फीलगुड का आत्ममोह भी जल्दी ही आ घेरता है, यदि इसने अपनी इस दुर्बलता को त्याग दिया तो आगामी लोकसभा चुनाव में जनता इसे देश की कमान सौंप सकती है और यदि यह किसी भी तरह से आत्ममोह और प्रमाद में भटक गयी तो सत्ता की हांडी किसी और को भी मिल सकती है। वैसे उत्तर प्रदेश में नेताजी को कम करके आंकना भी गलती होगी।