अंत:करण में मल भरा, और वासना है प्रधान
गतांक से आगे….
उस व्यक्ति पर प्रभु की विशेष कृपा है। क्योंकि उपरोक्त ऐसे गुण हैं जो अभ्यास से नही अपितु मनुष्य के जन्म लेते ही उसके स्वभाव में आ जाते हैं।vijender-singh-arya

हथौड़ी पाहन तोड़ दे,
बेशक होय महान।
एक तेज के कारनै,
व्यक्ति हो बलवान ।। 518।।

भाव यह है कि हथौड़ा पर्वत की अपेक्षा आकार में छोटा होता है, किंतु अपनी चोटों से बड़े बड़े पर्वतों के सीने को काट कर लंबी लंबी सुरंग बना देता है। क्या पर्वत का आकार हथौड़े जितना हेाता है? कदापि नही। अत: ध्यान रखो, इस संसार में महत्व भीमकाय आकृति का नही अपितु तेज का होता है। तेजस्वी मनुष्य भीषण परिस्थितियों में भी परिवार, समाज और राष्टर की रक्षा करते हैं। इसीलिए तेज के कारण मनुष्य बलवान होता है।

मांसाहारी में कभी,
होय दया का न भाव।
विलासी व्यसनी में सदा,
पवित्रता का अभाव ।। 519।।

अंत:करण में मल भरा,
और वासना है प्रधान।
वह निष्पाप न हो सके,
चाहे तीर्थ करो स्नान ।। 520।।

निंदा करता जो रहे,
गुणों की नही पहचान।
मोती गज के साथ में,
पर भीलनी है अनजान ।। 521।।

भाव यह है कि कभी-कभी वन में रहने वाले भीलों के पास संयोगवश ऐसे हाथी भी होते हैं जिनके मस्तक में बहुमूल्य मोती होता है, किंतु वे उससे अनजान होते हैं, इसके महत्व को नही समझते हैं। ऐसे हाथी को भी वे लोग अंकुश मार-मार कर घायल करते रहते हैं और उनकी पत्नियां (भीलनी) कौडिय़ों की माला पहनकर दरिद्रतापूर्ण जीवन व्यतीत करती हैं कितने आश्चर्य की बात है?
ठीक इसी प्रकार कुछ दिव्य आत्माएं यदि किसी परिवार, समाज, राष्टर में आती हैं तो मूर्ख लोग उनकी निंदा आलोचना और उपहास करके हाथी की तरह उनके हृदय को विदीर्ण कर देते हैं, लहू-लुहान कर देते हैं भीलनी की तरह उनकी, श्रेष्ठता के महतव को नही समझ पाते और स्वयं नारकीय जीवन जीते हैं।
क्रमश:

Comment:

Latest Posts