[…एक वर्ष पूर्व की पोस्ट]
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ये तथ्य कितने लोगों को पता है कि मुग़ल शासकों ने जहां भारतबर्ष के हर प्रदेश को रौंदा वहीं पूर्वोत्तर भारत के वीरों ने उनके अपवित्र कदमों को कभी भी अपने धरती पर चढ़ने नहीं दिया ?
अहोम राजाओं ने 500 बर्षों तक आक्रमणों से इसकी रक्षा की। महाप्रतापी सेनापति लाचित बरफुकन ने शराईधाट के मैदान में मुगलों की ऐसी शिकस्त दी थी कि फिर कभी कोई मुगल शासक इस भूभाग की तरफ नजर उठाने की हिम्मत न कर सका पर सन् 1881 का जनगणना आंकड़ा असम का दुर्भाग्य लाने वाला साबित हुआ।
इस जनगणना आंकड़े पर टिप्पणी करते हुये सर विलियम हंटर ने कहा था कि ‘ब्रह्मपुत्र नदी धाटी का जितना सुंदर और व्यापक विस्तार है; उसके हिसाब से यहां कि जनगणना अत्यंत कम है।‘
उसकी इस टिप्पणी ने कईयों के मन में असम को हड़पने का लालच भर दिया। 1906 में ढ़ाका में मुस्लिम लीग का सम्मेलन हुआ जिसमें नबाब सलीमुल्ला खां ने प्रस्ताव दिया कि उम्मती असम में जाकर बसना शुरु करें। उसकी इस सलाह पर पूर्वी बंगाल के उनके लोगों ने फौरन अमल किया और असम में धुसपैठ की शुरुआत हो गई और उस दशक में सीमावर्ती इलाकों की उनकी आबादी में 30 प्रतिशत तक की जर्बदस्त वृद्धि हुई।
अवैध आव्रजन का यह सिलसिला चलता ही रहा।
ऐसा नहीं था कि असम के प्रबुद्ध लोगों व तत्कालीन नेताओं का ध्यान इस तरफ नहीं था उन्होनें सरकार से इस घुसपैठ को रोकने की मांग की पर उनकी इस मांग पर तत्कालीन नेतृत्व ने ध्यान नहीं दिया और असम की समस्या बढ़ती ही चली गई। देश का तत्कालीन हिंदू समाज भले ही इस संकट की ओर से आँखें मूंदे हुये था पर वो लोग अपने द्वारा प्रायोजित इस योजना पर पूरी निगाह रखे हुये थे।
पाकिस्तान की मांग उठनी शुरु हो गई थी । मोहम्मद अली जिन्ना और तमाम मुस्लिम लीगी नेताओं की यह मंशा थी कि किसी तरह असम में अपने लोगों आबादी बढ़ाई जाये ताकि उसे भी मुस्लिम बहुल क्षेत्र होने के कारण बाद में पाकिस्तान में सम्मिलत करवाया जा सके।
असम के माथे पर दुर्भाग्य की एक और काली छाया तब पड़ी जब असम के लौहपुरुष गोपीनाथ बारदोलोई के त्यागपत्र देने के बाद सर सादुल्ला असम की गद्दी पर सत्तासीन हुये और धान उपजाने के बहाने असम में धुसपैठ करवाना ही उनका एकमात्र मकसद बन गया।
असम के इस्लामीकरण के उनके इस अभियान को लार्ड वैवेल ने भांपलिया और सादुल्ला के अधिक धान उपजाओ को अधिक “मुस्लिम उपजाओ” अभियान करार दिया।
आजादी के साथ पाकिस्तान बना पर इतने लंबे समय तक सुनियोजित घुसपैठ करवाने के बाबजूद जिन्ना को असम का ‘धान्य भंडार‘ कहा जाने वाला सिलहट जिला ही मिल पाया और असम को पाकिस्तान में मिलाने की जिन्ना की मंशा अधूरी रह गई। जिन्ना तो बंटबारे के बाद पाकिस्तान हिजरत कर गये पर उसके अधूरे स्वप्न को मूर्त रुप देने की आकांक्षा लिये उसका प्रमुख सिपहसालार मोईनुल हक चैधरी असम में ही रह गया और मंत्री बन गया।
उसने जिन्ना को आश्वासन दी कि कुछ दिन और इंतजार कीजिये मैं आपको असम चांदी की थाली में रहकर प्रस्तुत करुँगा।
असम का प्रचुर पेट्रोलियम भंडार और इसके वन संसाधनों पर पाकिस्तान की लालची नजरें जमीं हैं। प्रत्यक्ष युद्ध करके तो पाकिस्तान के लिये असम को हासिल करना असंभव है तो वो घुसपैठ रुपी निःशब्द आक्रमण के द्वारा अपनी अपवित्र मंशा पूरी करने में जुटें हैं।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संध के द्वितीय सरसंघचालकगुरुजी गोलवलकर ने दशकों पहले देश को आगाह करते हुये कहा था :-
‘असम में जिस तरह से बांग्लादेश से आव्रजन चल रहा है अगर ऐसा ही चलता रहा तो वो दिन दूर नहीं है जब हमारा असम वृहत्तर बांग्लादेश का हिस्सा बन जायेगा।‘
उनकी भबिष्यवाणी अक्षरशः सत्य साबित हो रही है। 2001 के जनगणना आंकड़ें इस दिल दहला देने वाली सच्चाई का खुलासा करती है। जिस रफ्तार और योजनाबद्ध तरीके से घुसपैठ हो रही है उस आधार पर यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि आने वाले दिनों क्या होगा।
राज्य की आबादी के दशकवार आंकड़ों को देखने से पता चलता है कि हर जनगणना में उनकी आबादी असाधारण रुप से बढ़ी हुई मिलती है जो सामान्य प्रजनन रीति से संभव ही नहीं है। बांग्लादेश के साथ असम की लंबी सीमा लगती है और सीमा पर तारबंदी भी नहीं है फलतः घुसपैठिये आसानी से सीमा पार कर भारत में धुस जातें हैं।
2011 में असम में हुये दंगे इस आने वाले विराट संकट की झलक मात्र है। असम के स्थानीय निवासियों को पूरी तरह खदेड़ देने घुसपैठ की मंशा अब स्पष्ट परिलक्षित हो रही है। घुसपैठ और उच्च प्रजनन दर के द्वारा अपनी जनसं0 बढ़ाकर असम को पूरी तरह निगल जाना उनका मकसद है।
जमायत-उलेमा-ए-हिंद के प्रमुख मौलाना असद मदनी ने असम में हुये विदेशी नागरिक विरोधी आंदोलन से डरे हुये अपने लोगों को निश्चिंत करते हुये कहा था ‘आप लोग बंगाली लोग हैं और आपको पता है कि रसगुल्ले को कैसे खाया जाता है, उसे खाने के लिये दांतों का उपयोग नहीं करना पड़ता वरन् मुँह में डालते ही सीधा निगल लिया जाता है, हमने भी घुसपैठ और उच्च प्रजनन दर के द्वारा ऐसे ही असम को निगलने की योजना बनाई हैं।‘
बांग्लादेशी घुसपैठ की इस समस्या से केवल असम ही नहीं वरन् पूरा पूर्वोत्तर भारत पीड़ित है। त्रिपुरा लगभग चारों ओर से बांग्लादेश से धिरा हुआ है और यह भी अवैध आव्रजन से परेशान है। मणिपुर में भी असम के कछार जिले व अन्य दूसरे रास्तों से घुसपैठ की धमक सुनाई दे रही है। मणिपुर का थौबल जिला घुसपैठ से सर्वाधिक पीड़ित है। मणिपुर में ये घुसपैठिये आबादी के हिसाब से एक चैथाई हो चुकें हैं। घुसपैठ से सबसे ज्यादा त्रस्त है नागालैंड। आज नागालैंड की स्थिति ये है कि मणिपुर की तरह ही घुसपैठिये आज उनकी आबादी का लगभग एक चैथाई हो गये हैं। इतना ही नहीं बांग्लादेशी नागा कन्याओं को अपने प्रेमजाल में फांस कर उनसे शादी भी कर रहें हैं और उनकी संपत्तियों पर कब्जा कर रहें हैं।
इन राज्यों की सरकारें वोट बैंक के लालच में इन घुसपैठियों को राशन कार्ड आदि बनवा देती रही है ,येन-केन प्रकारेण भारत की नागरिकता हासिल करने के बाद इनका अगला लक्ष्य होता है बैंक में एकाउंट खोलना। ब्लाॅक व बैंकों के माध्यम से सामाजिक उत्थान व रोजगार मुहैया कराने की सरकार की तमाम कोशिशें इसलिये नाकाम हो जातीं है क्योंकि इन योजनाओं को ये घुसपैठिये हड़प लेतें हैं। ये वहां के स्थानीय लोगों का रोजगार छीन रहें हैं। सबसे बड़ी बात तो ये है कि ये घुसपैठिये राजनीतिक प्रक्रिया में पूरी सक्रियता से हिस्सा लेतें हैं। मोदी के आने के पहले कई विधानसभा सीटों पर ये स्थिति थी कि यहां घुसपैठिये जिसे चाहतें थे वही जीतता था।
बांग्लादेशी घुसपैठियों के कारण पूरा क्षेत्र नकली नोटों का कारोबार, नशीली दवाओं और हथियार और लड़कियों की तस्करी से पीड़ित है। घुसपैठिये के प्रभाव वाले समस्त क्षेत्र आई0 एस0 आई0 , हूजी समेत कई अन्य आतंकवादी संगठनों की शरणस्थली है।
देश को बांग्लादेश के रास्ते हो रहे इस निःशब्द आक्रमण से कई प्रबुद्ध लोग समय-समय पर आगाह करतें रहें हैं पर वोट बैंक के लालच में कोई भी राजनीतिक दल सिवाय भाजपा इस खतरे की तरह ध्यान ही नहीं देना चाहता।
इसी कारण यह समस्या बढ़ती ही चली जा रही है ऐसे में सर्जील इमाम का अभिनंदन करिये क्योंकि उसने तो केवल आपको नींद से जगाया है।
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