गायत्री मंत्र में राष्ट्रवाद का संदेश और हमारे नेता
26 जनवरी को जब राष्ट्र अपना 72 वां गणतंत्र दिवस मना रहा था, तब किसान के रूप में राष्ट्र विरोधी शक्तियों ने जो तांडव देश की राजधानी दिल्ली में मचाया वह बहुत ही शर्मनाक था। राष्ट्र विरोधी शक्तियों की सोच थी कि प्रधानमंत्री श्री मोदी इन तथाकथित किसानों पर लाठी प्रहार करवाएं और इनमें से कुछ किसान मारे जाएं तो आने वाले वर्षों में मोदी सरकार को बदनाम करने के लिए गणतंत्र दिवस के स्थान पर शोक दिवस मनाया जाना आरंभ किया जाए, लेकिन हमारे सुरक्षा बलों ने राष्ट्र विरोधी शक्तियों की इस प्रकार की सोच को फलीभूत नहीं होने दिया। इसके लिए उनके धैर्य ,संयम और समझदारी की जितनी प्रशंसा की जाए उतनी कम है। यह उनकी कायरता नहीं बल्कि वीरता थी कि उन्होंने उपद्रव को उस सीमा तक भी सहन किया जिसमें उनकी जान के लिए गंभीर खतरा बिल्कुल सामने खड़ा दिखाई दे रहा था। दिल्ली के उच्च पदस्थ अधिकारी ने टीवी चैनल पर आकर यह कहा कि हम चाहते तो आधे घंटे में उपद्रवियों को शांत कर सकते थे, पर हमने ऐसा किया नहीं।
देश का विपक्ष इस समय उस कम्युनिस्ट विचारधारा से प्रभावित हो चुका है जो भारत में लाल झंडे को फहराने के लिए राष्ट्र विरोध की हर सीमा को लांग सकती है कांग्रेश इस समय नेतृत्व की स्थिति में नहीं है बल्कि वह स्वयं भी कम्युनिस्टों के नेतृत्व को स्वीकार करती हुई दिखाई दे रही है। यही कारण है कि इस समय राष्ट्र विरोधी शक्तियां जितना भी अधिक नंगा नाच कर सकती हैं, उतना करने देने का समर्थन विपक्ष उन्हें देता हुआ दिखाई दे रहा है। कम्युनिस्टों के बारे में हमें यह समझना चाहिए कि यह वही लोग हैं जिन्होंने 1962 में चीन के आक्रमण के समय चीन के नेता माओ को अपना राष्ट्रपति कहा था और भारत के प्रधानमंत्री नेहरू को प्रधानमंत्री मानने से इनकार कर दिया था। इतना ही नहीं, नेताजी सुभाष चंद्र बोस को तोजो का कुत्ता कहने वाले कम्युनिस्टों ने उस समय चीन की सेनाओं का स्वागत करते हुए उनका मार्गदर्शन करना भी आरंभ कर दिया था। कुछ वही स्थिति इस समय दिखाई दी है । जब पूरी सुनियोजित योजना के अंतर्गत दिल्ली के लाल किले पर झंडा फहराने के लिए राष्ट्र विरोधी शक्तियों को प्रोत्साहित किया गया। सारी दुनिया ने भारतवर्ष के शर्मनाक दृश्य को देखा है और कम्युनिस्ट संसार को यही दिखाना चाहते थे कि इस समय मोदी के विरोध में सारा देश सड़कों पर आ गया है। गणतंत्र दिवस की वजह से विश्व की मीडिया की नजरें भारत के राजपथ पर थीं और राष्ट्र विरोधी शक्तियों ने इसी बात को समझ कर 26 जनवरी का दिन निश्चित किया था।
जो लोग अभी तक भी यह मान रहे थे कि जो लोग दिल्ली के लाल किले में घुसे और जिन्होंने किले की प्राचीर पर अपना झंडा फहराया वह किसान थे उन्हें अब इन तथाकथित किसानों को खालिस्तानी मानकर इनकी पीठ थपथपाने वाले और किले पर झंडा फहराने वाले को इनाम देने की घोषणा करने वाली शक्तियों की पोल खुलने पर यह पता चल गया होगा कि यह लोग कौन थे?
इन राष्ट्र विरोधी और देशद्रोही लोगों के विषय में मैं सोच रहा था कि भारत के लोग गायत्री मंत्र का जाप करते हैं और बड़ी से बड़ी विनाशकारी शक्तियों का विनाश इस मंत्र के माध्यम से करने की बात कहते हैं तो गायत्री मंत्र में ऐसी कौन सी शक्ति है जिससे ऐसी राष्ट्र विरोधी शक्तियों का भी विनाश हो सकता है? इस पर यदि चिंतन करें तो निश्चय ही हमें इस मंत्र के माध्यम से ऐसी शक्तियों का विनाश करने की असीम ऊर्जा प्राप्त होती है। आइए, तनिक विचार करें कि गायत्री मंत्र इस संबंध में क्या कहता है :-
ओ३म – ईश्वर का निज नाम ।सर्वोत्पादक, सर्वहितकारी, न्याय कारी, अजन्मा ,अनंत आदि जिसके विशेषण है।
भू: – जगत का उत्पत्तिकर्त्ता। इंग्लिश में जिसको जनरेटर कहते हैं। परमेश्वर की इस शक्ति का नाम ब्रह्मा है। घर में यह स्थान माता का है। राष्ट्र में यह स्थान राष्ट्रपति का या विधायिका का है।
भुवः – संसार का पालन पोषण वृद्धि और विकास करने वाला होने से परमपिता परमेश्वर को दु:खहर्ता कहा जाता है । इसी शक्ति का नाम विष्णु है । घर में इसे पिता के रूप में देख सकते हैं। इंग्लिश में इसी को ऑपरेटर कहते हैं। राष्ट्र में यह स्थान प्रधानमंत्री का या कार्यपालिका का है।
स्व:- सुखों का दाता होने से परम पिता परमेश्वर का नाम सुख प्रदाता भी है । इसी शक्ति का नाम महेश है। संसार में इसे गुरु के नाम से भी समझ सकते हैं। इंग्लिश में डिस्ट्रॉयर कहा जाता है। क्योंकि गुरु हमारे सभी दुर्गुणों का संहार करता है। राष्ट्र में यह स्थान हमारे प्रधान न्यायाधीश का है पिया न्यायपालिका का है । जो अपने न्यायकारी शक्तियों से उन लोगों को दंडित करता है जो संविधान विरोधी और कानून विरोधी कार्य करते हैं अर्थात एक प्रकार से उनका संहार करता है।
इंग्लिश में इन्हीं तीनों शब्दों अर्थात जनरेटर ऑपरेटर और डिस्ट्रॉयर के शुरुआती अक्षरों को लेकर जी ओ डी – गॉड बना दिया। गॉड वास्तव में ओ३म का ही स्वरूप है। जो ईश्वर की ब्रह्मा विष्णु महेश तीन शक्तियों का प्रतीक है।
विधायिका कार्यपालिका और न्यायपालिका जब अपने – अपने कर्तव्य धर्म को समझ लेती हैं अर्थात ‘भू: भुव: स्व:’ के अनुसार कार्य करने लगती हैं तो राष्ट्र ‘एकत्व’ की प्राप्ति की साधना में लीन हो जाता है। इससे राष्ट्रीय एकता और अखंडता को शक्ति प्राप्त होती है। लोगों की एकत्व की साधना का अभिप्राय है कि वे ‘एक देव- एक देश’ के उपासक बन जाते हैं। अनेकता एकता में समाविष्ट होती चली जाती है और राष्ट्र की सारी सकारात्मक शक्तियों का विकास होने लगता है।
तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि–
उस परमपिता परमेश्वर के (जिसके ऐसे – ऐसे उपरोक्त लिखित गुण हैं ) हम वरणीय तेज स्वरूप का ध्यान करते हैं । तेज स्वरूप का अर्थ है कि वह शत्रुओं का नाश करने वाला है। हम भी ऐसे हों कि जो लोग हमारे शत्रु हैं, हमारी संस्कृति के, हमारे धर्म के, हमारे देश के, हमारे राष्ट्र के और हमारे समाज के शत्रु हैं ,उनका संहार करने की शक्ति हमारे पास हो।
ईश्वर के वरणीय तेजस्वरूप का ध्यान करने से हमें जिस ऊर्जा की प्राप्ति होती है उससे हम ऐसे -ऐसे हथियारों, अस्त्र शस्त्रों का निर्माण करने में सक्षम और समर्थ होते हैं जिनसे शत्रुओं का विनाश हो सके । इस प्रकार परमपिता परमेश्वर का वरणीय तेजस्वरूप हमको वैज्ञानिक उन्नति करने और सैन्य संगठन को मजबूत करने की प्रेरणा देता है। जिससे विनाशकारी शक्तियां या राष्ट्रद्रोही और समाजद्रोही शक्तियां समाज में कभी विकसित न होने पाए। स्मरण रहे कि जो हथियार आपके हाथ में होकर भी शत्रु का संहार न कर सके वह निरर्थक है ।
वेद का यह गायत्री मंत्र राष्ट्रवासियों और राष्ट्रप्रेमियों को यह संदेश देता है कि अपने पौरुष और पराक्रम का ध्यान करते हुए ईश्वर के तेज स्वरूप को अपने भीतर अनुभव करो और उस शक्ति अनुसंधान पर निरंतर कार्य करते रहो जिसके अपनाने से आपके राष्ट्र में उपद्रवी ,उग्रवादी, उत्पाती और राष्ट्रद्रोही लोग कभी सिर न उठा सकें।
जब हमारे देश में इस प्रकार की गायत्री साधना का लोप हो गया और तो हम तेजहीन और पराक्रमहीन होते चले गए। देश अंत में गुलाम हो गया । पिछले 70 – 75 वर्षों में हमें धर्मनिरपेक्षता की भांग पिलाकर सुला दिया गया है और कहा गया है कि हिंदुत्व उदार होता है ,वह शत्रु को अपना कलेजा भी खा लेने देता है। धर्मनिरपेक्षता की इस तथाकथित उदारता ने हमको फिर तेजहीन और पराक्रमहीन कर दिया है। जिससे देश विरोधी शक्तियां समाज में यत्र तत्र सर्वत्र सिर उठाती हुई दिखाई देती हैं। फिर कुछ ऐसे राष्ट्र द्रोही राक्षस इस देश में पैदा हो गए हैं जो विदेशी शक्तियों तक को आमंत्रित कर देश को कमजोर करने की गतिविधियों में लगे हुए हैं । उन सबके विनाश के लिए गायत्री साधना करते हुए सारे राष्ट्र को उठ खड़ा होना होगा।
धियो यो न: प्रचोदयात् :-
हे परमपिता परमेश्वर अपने ऐसे तेज स्वरूप को हमें प्रदान करके हमारी बुद्धियों को आप सन्मार्ग में प्रेरित करो ।हम अपने धर्म, संस्कृति ,इतिहास ,समाज और समाज की अच्छी मर्यादाओं ,अच्छे गुणों के प्रति समर्पित रहकर दिव्यता को धारने वाले बनें।
ध्यान रहे कि वेद के मंत्रों में राष्ट्रबोध अनिवार्य है। उसकी प्रार्थनाओं में सामूहिकता है। सबको साथ लेकर चलने की उत्कृष्ट भावना है । सबको साथ लेकर चलने की प्रार्थना तभी सार्थक हो सकती है जब सब मिलकर उन राष्ट्र विरोधी तत्वों का विनाश करने के लिए भी कटिबद्ध हों, जो किसी भी प्रकार से राष्ट्र के शांत जनों की शांति को भंग करते हैं।
आजादी के बाद देश के वैदिक आदर्शों और मान्यताओं को ताक पर रखने की नेताओं ने मूर्खता की। छद्म धर्मनिरपेक्षता के नाम पर उन्होंने राष्ट्र को खंड खंड करने के लिए देश में बहुदलीय शासन व्यवस्था लागू की। आज जितने भी राजनीतिक दल हैं ये सारे के सारे मध्यकालीन आक्रमणकारियों की उन आक्रमणकारी सेनाओं का ध्यान दिलाते हैं जो इस देश को लूटने के लिए अलग-अलग मोर्चों पर खड़ी हुई थीं। ये सारे देश के लुटेरे हैं। जिनका ध्यान केवल देश की धन संपत्ति को लूटने पर है । इनकी सोच में, चिंतन में और कार्यशैली में विखंडन है। एकत्व की साधना का बोध कहीं से दिखाई नहीं देता। यही कारण है कि देश में विनाशकारी राष्ट्रद्रोही शक्तियां दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं। क्योंकि ये राजनीतिक दल और उनके नेता ऐसी शक्तियों को अपने-अपने स्वार्थ में प्रोत्साहित करते हैं।
26 जनवरी को देश की राजधानी में जो कुछ हुआ और जिस प्रकार उग्रवादी लालकिले की प्राचीर तक पहुंचने में सफल हुए ,उसमें देश की सारी राजनीति नंगी हो गई है। संभवत: राजनीति के नंगे सच को देखकर ही इसे कुछ लोगों ने वेश्या तक कहा है।
जैसे वेश्या हर हालत में केवल अपने ग्राहक पटाती है और उसे ही अपना धर्म समझती है ,वैसे ही राजनीति भी हर हालत में आग लगाने का काम करती है और इस आग लगाने को ही अपना धर्म समझती है।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत