हे दयानिधे! तुझे किन किन नामों से पुकारें ?

vedas-1

प्रिय आत्मन ।
प्रातः कालीन
सादर समुचित अभिवादन एवं शुभाशीष।

ईश्वर अजन्मा है ।
ईश्वर का आदि अंत नहीं है।
ईश्वर अंतर्यामी है ।
ईश्वर सभी काल में विद्यमान रहता है ।
इसलिए कहा जाता है कि हे ईश्वर तू ही तू है ।
तू ही माता है ।
तू ही पिता है।
तू ही भ्राता है ।
तू ही सखा है ।
तू ही पैदा करने वाला है ।
तू ही सृष्टि कर्ता है ।
तू ही धरता है।
तू ही भरता है।
तू ही हरता है।
तू ही करता है ।
तू ही सर्वेश्वर है ।
तू ही रक्षक है ।
तू ही संहारक है ।
तू ही राजा है ।
तू ही गुरु है ।
तू ही आचार्य है।
तू ही रोम रोम में समाया हुआ है ।
तू ही कण-कण में व्याप्त है ।
तू ही सर्व आधार है।
तेरी माया अपरंपार है।
तू अजब रचनाकार है ।
तू अजब गजब का सिरजनहार है।
तू ही दयालु है ।
तू ही कृपालु है।
तू ही ज्ञान का सागर है।
तू ही इस जगत का आधार है ।
तू ही अजर है ।
तू ही अमर है।
तू ही सर्व नियंता है ।
तू ही नियामक है।
तू ही रवि है ।
तू ही सोम है।
तू ही मंगल है ।
तू ही शुद्धबुध है ।
तू ही बृहस्पति है ।
तू ही शुक्र है ।
तू ही शनि है।
तू ही सर्वशक्तिमान है ।
तू ही सर्व अंतर्यामी है।
तू ही ब्रह्मा है।
तू ही विष्णु है।
तू ही शिव है ।
तू ही अनंत है।
तू ही सब में ओतप्रोत है।
तू ही अग्नि है।
तू ही प्राण है।
तू ही प्रजापति है।
तू ही मनु है।
तू ही अक्षर है ।
तू ही इंद्र है ।
तू ही विराट है ।
तू ही सूक्ष्म तम है।
तू ही वरुण है।
तू ही विश्व है।
तू ही विश्वंभर है ।
तू ही हिरण्यगर्भ है।
तू ही वायु है ।
तू ही तेज है ।
तू ही तेजस है ।
तू ही आदित्य है ।
तू ही यज्ञ है ।
तू ही प्रज्ञ है ।
तू ही परमेश्वर है।
तू ही न्यायाधीश है।
तू ही कल्याणकारी है ।
तू ही आत्मा है ।
तू ही परमात्मा है।
तू ही देव है ।
तू ही वसु है।
तू ही आकाश है।
तू ही प्रकाश है।
तू ही ज्ञान है।
तू ही ज्ञान का अथाह भंडार है ।
तू ही ज्ञान का आदि स्रोत है।
तू ही पृथ्वी है।
तू ही जल है ।
तू ही अत्ता है ।
तू ही रूद्र है।
तू ही राहु है।
तू ही केतु है ।
तू ही होता है ।
तू ही चित् है ।
तू ही अज है ।
तू ही नित्य है ।
तू ही पवित्र है ।
तू ही सच्चिदानंद है।
तू ही निराकार है ।
तू ही सगुण है ।
तू ही निर्गुण है ।
तू ही जगदीश्वर है।
तू ही गणेश है।
तू ही गणपति है ।
तू ही देवी है ।
तू ही शक्ति है ।
तू ही सरस्वती है ।
तू ही लक्ष्मी है ।
तू ही न्याय है ।
तू ही न्याय कारी है।
तू ही विद्या है ।
तू ही यम है ।
तू ही शंकर है।
तू ही आप्त है ।
तू ही काल है ।
तू ही प्रिय है ।
तू ही स्वम है ।
तू ही स्वयंभू है ।
तू ही राम है।
किस-किस नाम से जाना जाए तुझे?
कब तक पुकारा जाए तुझे? क्योंकि
तेरी कथा ही अनंत है ।
नेति _नेति ।

देवेंद्र सिंह आर्य एडवोकेट
चेयरमैन उगता भारत समाचार पत्र

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