वैदिक संपत्ति : भारत में विदेशियों के तृतीय दल का आगमन
गतांक से आगे…
विदेशियों के तृतीय दल का आगमन
कहलाडे कौन हैं ?
दक्षिण में चितपावन जाति से संबंध रखने वाली एक तीसरी जाती और है ,जिसका नाम ‘कहलाडे ब्राह्मण ‘ है ।यह भी बाहर वाले हैं ।विद्वानों का अनुमान है कि यह चीन देश के रहने वाले हैं ।आगे के वर्णन से स्पष्ट हो जाता है कि यह चीन के ही हैं ।क्योंकि हेमाद्री में जिन चीनी ब्राह्मणों का जिक्र है वे यही है ।यह लोग नरबलि देनेवाले थे और अपने दामाद को भी विष देकर मार डालते थे ।इनके विषय में लिखा है कि-
कहलाडदेशनामा च दुष्टदेश: प्रकीर्तित:सर्वलोकाच्श्र कठिना दुर्जना: पापकर्मिण:
अर्थात कहलाड देश दुष्ट देश है। वहां के रहने वाले कठिन ,दुर्जन और पापी होते हैं ।इनके विषय में महाराष्ट्र देशवासियों की यह उक्त प्रसिद्धि है कि ‘कसायाच विश्वास धरवेल, पण कहलाडयाचा धरवणार नाही.’ अर्थात कसाई का विश्वास करने पर कहलाडे का विश्वास नहीं करना ।इनके विषय में प्रसिद्ध विद्वान बालाजी विट्ठल गावस्कर कहते हैं कि, ‘मिस्टर बिलफर्ड़ और केंबेल का मत है कि यह लोग बारह सौ वर्ष पूर्व चीन से आए ।यह बात मुझको भी सत्य प्रतीत होती है। क्योंकि मनुष्य मारने की जो प्रथा उन देशों में है ,वहीं इनमें भी पाई जाती है। हेमाद्रि के श्लोक में जिन चीनी ब्राह्मणों का वर्णन है, वे यही कहलाडे ही है’।
इनके विषय में रत्नागिरी गैजेटियर में भी लिखा है कि, ‘प्राचीन समय में वे कभी-कभी अपने दामादओं ,मुलाकात करने वालों और अतिथियों को विष देकर अपनी देवी को इसलिए बलिदान देते थे कि वंशवृद्धि के लिए उनके संतान उत्पन्न हो’।इस प्रकार की एक घटना का वर्णन मिडफर्ड विद्वान ने बड़ी ही विचित्रता के साथ किया है। वह लिखते हैं कि कंपनी के राज्य में नरमधे अब तक गुप्त रीति से परंतु बहुतायत से प्रचलित है। दशहरा के उत्सव में कहलाडे लोगों का जो यज्ञ होता है, वह नरमेध कहलाता है ।डॉक्टर कॉलियर ने मुझसे नीचे लिखी हुई घटना कही है,जो गत पेशवा के पिता बालाजी बाजीराव के समय खास पूना में हुई थी ।यह असाधारण बात बताती है कि किस प्रकार प्रत्येक पवित्र मनोभाव अत्यंत क्रूर धर्मान्धता के तीर्थ में अपवित्र किए जाते थे।
एक दिल एक कहलाडे ने अपने दरवाजे से एक मुसाफिर को सामने वाले कुए पर बैठा हुआ देखा और सोचा कि आने वाले दशहरे में बलिदेने के लायक यह अच्छा शिकार है ।उसने उस मुसाफिर को अपने घर बुलाया और बहुत कुछ कह सुनकर घर में ठहरा लिया ।कुछ दिन के बाद उस मुसाफिर ने अपने आदर,आतिथ्य करने वाले गृहस्वामी से छुट्टी लेकर अपने घर जाने चाहा ।परंतु दशहरा दूर होने से और उसको शंकाहीन करने के अभिप्रया से कहलाडे महाशय ने उसका ब्याह अपनी लड़की के साथ कर दिया। मुसाफिर को अन्धा बनाने के लिए यह उपाय काफी था। मुसाफिर फंस गया और मुसाफिर का ससुर अपना दुष्ट हेतु सिद्ध करने के लिए दशहरे के उत्सव की राह देखने लगा ।परंतु उसकी लड़की अपने इस बलिपशु पति को बहुत ही चाहती थी ।जब बलि का समय आ गया, सब तैयारी हो गई, उसके पिलाने के लिए जहर का प्याला भी बन गया और उस स्थान में जाने का मौका भी आ गया ,जहां उसका गला काटकर भवानी के चरणों में उसका शरीर अर्पण होने वाला था, जिससे बलिदाताओं का कल्याण हो ,तब उसकी स्त्री ने वह जहर का प्याला बदल दिया ।
फल यह हुआ कि वह पति के स्थान में भाई को पिला दिया गया। इस घटना से सारा रहस्य खुल गया और अपराधी पकड़कर पेशवा की अदालत में लाये गये। पेशवा सरकार ने इनको सजा दी और इस संप्रदाय के समस्त व्यक्तियों को पूना से निकाल दिया। महाराष्ट्र प्रांत में कहलाडे लोग अब तक बहुतायत से रहते हैं।
क्रमशः