देश के जननायक नहीं धन के नायक लोग ।
धर्म से निरपेक्ष हैं,महामारी का रोग।।35।।
देशहित नहीं बोलते,करें स्वार्थ की बात।
गिद्ध देश में पल रहे, नोंच रहे दिन रात।।36।।
राष्ट्रीयता की बात कर, राष्ट्रधर्म से है दूर ।
सबके हित कुछ ना करें ,स्वार्थ में गये डूब॥37॥
देश को आंख दिखा रहे ,अदने – अदनेे देश ।
छल छ्दमी बैठे यहाँ ,बना ‘जयचंदी’ वेश ॥38॥
मजहबपरस्ती सिर चढ़ी ,वतनपरस्ती दूर ।
भाषा धर्म पर लड़ रहे ,ढूंढ रहे कोहिनूर ? ॥39॥
शिक्षा से संस्कार को, कर दिया है दूर ।
चित्र चरित्र जिसका नहीं ,बाँट रहे हैं नूर॥40॥
नचकैंया हीरो बने ,’नायक’ दिये भुलाय।
आदर्श भौंडे लोग है,तनिक लजावें नाय॥41॥
युवा पीढ़ी सो रही,लेती कुछ नहीं सीख।
मात-पिता चुप कर दिये, कहते क्यों रहे चीख ?॥42॥
सिसक रहा बूढ़ा पिता, रोती मां की कोख ।
आंसू सागर बन गये, कौन सकेगा सोख॥43॥
बहन सिसकती रह गयी, राखी का त्यौहार।
भाई कुछ बोला नहीं, किया नहीं सत्कार॥44॥
उल्टी रीति चलायी, भूल गये निज चाल।
ऋषियों के इस देश में ,घूम रहे चाण्डाल ॥45॥
बादे मुद्दत देश में ,’नायक’ जन्मा एक ।
जयचन्द भी छल में लगे ,देख रहा है देश ॥46॥
मोदी जी संघर्ष करो, देश तुम्हारे साथ ।
बहुत करना शेष है ,चैन नहीं दिन-रात॥47॥
युवा पीढ़ी ध्यान से ,करे एक संकल्प ।
विश्व गुरु भारत बने ,विकल्प नहीं संकल्प॥48॥
जिस देश का युवा जागता,उसका उज्ज्वल भाग्य ।
आलिंगन नियति करें ,खड़ी पसारे हाथ ॥49॥
देश – धर्म के कारने धारे रहो शरीर।
देशहित मांगो सदा परमेश्वर से भीख।।।50।।
भारत को ‘भा’ ‘रत’ बना,करना है अभिषेक ।
‘स्वच्छता अभियान’ को ,अपना ले ‘राकेश’॥51॥
— डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत