कल्पना करें कि जब महात्मा गांधी की साजिश का शिकार होकर के 1939 में सुभाष चंद्र बोस को देश छोड़ने के लिए विवश कर दिया गया था।
महात्मा गांधी ने तो यहां तक कह दिया था कि जब पट्टाभी सीतारामय्या कांग्रेस के अध्यक्ष पद हार गए ,यह सीतारामय्या की हार नहीं मेरी हार है। जबकि महात्मा गांधी को महात्मा कहने वाला प्रथम व्यक्ति सुभाष चंद्र बोस ही था। उसी कथित महात्मा ने सुभाष चंद्र बोस के साथ यह अपघात किया था।
महात्मा गांधी की इस बात को सुनकर के सुभाष चंद्र बोस ने तुरंत कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देकर देश छोड़ दिया था।
उनका सपना कांग्रेस का अध्यक्ष पद संभालना नहीं था बल्कि उनका प्रण भारत माता को गुलामी की बेड़ियों से स्वतंत्र करना था ।जिस उद्देश्य के प्राप्ति में अध्यक्ष पद आड़े आ रहा था।
जो आजादी का उनका सपना था उसको पूरा करने का उन्होने प्रण लिया था।
1945 में सुभाष चंद्र बोस ने अंग्रेजों को भारत से खदेड़ने की पूरी योजना बनाकर आक्रमण किया।
उस वीर, साहसी और अदम्य पराक्रम के धनी योद्धा ने विदेशों में जाकर के सेना को इकट्ठा किया।
धन की व्यवस्था की।
उन विषम परिस्थितियों में किस प्रकार यह सब कार्य किया गया होगा कल्पना तीत है।
तथा अंग्रेजों के विरुद्ध एक
वातावरण तैयार किया पूरी दुनिया में। फिर सिंगापुर की तरफ से दहाड़ लगाई “तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा”।
अंग्रेज गांधी के चरखे से डर कर के नहीं भागे थे बल्कि सुभाष चंद्र बोस की दहाड़ की वजह से भागे थे। इसलिए नेहरू और गांधी ने दूसरा षड्यंत्र यह किया कि अंग्रेजों को यह वायदा किया था कि सुभाष चंद्र बोस जब भी पकड़े जाएंगे तो वह उनको युद्ध अपराधी के रूप में सौंप देंगे।
युद्ध अपराधी का महत्व आप समझते होंगे।
इतिहास हमको उल्टा पढ़ाया जाता रहा है। नेहरू और गांधी को भारत की स्वतंत्रता का योद्धा परोसा जा रहा है।
स्वतंत्रता के पश्चात भी सुभाष चंद्र बोस को जो सम्मान मिलना चाहिए था वह कांग्रेस ने कभी नहीं सोचा।
ऐसा क्यों हुआ क्योंकि उससे नेहरू और गांधी के अपकृत्य, दुष्ट आचरण, साजिश का पर्दाफाश होता । उनका इतिहास में महत्व कम हो जाता । इसलिए दोनों ने मिलकर के चाचा और पिता देश का बनने की साजिश रच रखी थी।
आज भारत के जनमानस में यह तथ्य पूरी तरीके से समावेशित हो चुका है की हमारे कथित चाचा और पिता नेहरू और गांधी नहीं थे बल्कि सुभाष चंद्र बोस जैसे लोग इस देश में पूजा किए जाने योग्य है।
आज भारत के प्रबुद्ध वर्ग के लोग यह मांग रखते हैं कि भारत का स्वतंत्रता का इतिहास पुन: लिखा जाना चाहिए।
आज सुभाष चंद्र बोस की 125 वीं जयंती पर पूरा राष्ट्र उनको श्रद्धा पूर्वक स्मरण करते हुए नतमस्तक होकर अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि एवं भावांजलि अर्पित कर रहा है।
विशेषत:
नेताजी सुभाष चंद्र बोस का अध्यक्ष पद पर दोबारा चुनाव 29 जनवरी 1939 को हुआ था । गांधी, पटेल व सभी सदस्यों के असहयोग को देखते हुए अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया ।इसके बाद उन्हें 3 मई को कांग्रेस पार्टी से 6 वर्ष के लिए निष्कासित कर दिया गया ।सरदार पटेल गांधी के समर्थन में और सुभाष के विरोध में इसलिए गए थे कि पटेल साहब के बड़े भाई विट्ठल भाई ने अपनी वसीयत में अपनी संपत्ति का एक बड़ा भाग नेताजी सुभाष चंद्र बोस को दान कर दिया था। जिसे लेकर दोनों में कानूनी लड़ाई चली थी। उस लड़ाई में अंत में सुभाष चंद्र बोस की जीत हुई थी। इसलिए सरदार पटेल सुभाष चंद्र बोस से गांधी से भी अधिक ईर्ष्या रखते थे।
हमारा केंद्र सरकार से विनम्र निवेदन है कि सुभाष चंद्र बोस ,उनके परिवार को इस राष्ट्र में उचित सम्मान प्रदान किया जाना चाहिए।
भारत का प्रबुद्ध वर्ग यह भी मांग करता है कि भारतवर्ष की स्वतंत्रता के इतिहास को पुन: लिखने का प्रयास होना चाहिए।
देवेंद्र सिंह आर्य एडवोकेट
चेयरमैन उगता भारत
लेखक उगता भारत समाचार पत्र के चेयरमैन हैं।