पुस्तक समीक्षा
‘कोरोना : एक वैश्विक बदलाव’
‘कोरोना : एक वैश्विक बदलाव’ रेखा जैन जी द्वारा लिखित पुस्तक है। जिसका प्रथम संस्करण 2020 में आया है। निश्चित रूप से वर्तमान समय में सारे संसार के लिए कोरोना एक बड़ी भारी समस्या के रूप में आया है। जिससे समाज में कई बदलाव देखने को मिले हैं। उन बदलावों को लेखिका ने बड़े अच्छे ढंग से पुस्तक में स्थान दिया है।
वह कहती हैं :-
”हाथ में रखे पैसे को खर्च करने का इंतजार देखा, जीवन को सड़क पर खत्म होते देखा,
दहशत की सांसों में जीना देखा,
मुंह में मास्क लगाए करीबी
को अजनबी बनते देखा,
खुद को घरों में कैद और पंछियों को आजाद देखा।”
अपने आसपास के परिवेश में सचमुच ये ऐसे बदलाव होते हमने देखे हैं जिनकी कुछ समय पहले कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। ऐसी ही कुछ और चीजें हैं जिन्हें लेखिका ने हमारे सामने बड़े अच्छे ढंग से प्रस्तुत किया है।
पुस्तक में ‘कोरोना भारत के संदर्भ में…’ सामान्य परिचय प्रस्तुत किया गया है। जिसमें हमें कोरोना के विषय में अच्छी जानकारी प्राप्त होती है।कोरोना की उत्पत्ति कैसे हुई ? -यह भी पुस्तक में स्पष्ट किया गया है। महामारी के दौरान ‘कोरोना वारियर्स’ के महत्वपूर्ण योगदान पर भी प्रकाश डाला गया है। इसके अतिरिक्त कोरोना काल में नारी किस प्रकार नेतृत्व की भूमिका में आ गई ? – इसको भी लेखिका ने बड़े सुंदर शब्दों में प्रस्तुत किया है।
पुस्तक में कुल 19 अध्याय दिए गए हैं । जिनमें जहाँ कोरोना काल में विश्व और भारत की स्थिति पर प्रकाश डाला गया है, वहीं इस महामारी के समय भारत का प्रतिनिधित्व , इसके नियंत्रण के लिए विभिन्न मॉडल, इस महामारी का मानव जीवन पर सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव क्या रहा ? इसे भी स्पष्ट किया गया है।
इसके साथ ही भारत में महामारी के समय कौन सी विशेष घटनाएं घटित हुईं ? – जो लेखिका व समाज के अन्य लोगों को प्रभावित कर गईं ,उन्हें भी बहुत अच्छे ढंग से पुस्तक में स्थान दिया गया है। महामारी के बाद भारत में हमें कौन से परिवर्तन देखने को मिले ?- महामारी के दौरान राजस्थान सरकार के क्या प्रयास रहे? – महामारी के समय संयुक्त राष्ट्र की भूमिका कैसी रही ? – विश्व स्वास्थ्य संगठन की भूमिका क्या होनी चाहिए थी और कैसी रही ? – जहां इन बातों को स्पष्ट किया गया है वहीं यह भी स्पष्ट किया गया है कि क्या कोरोनावायरस जैव आतंकवाद का प्रारंभ है ? 18 वें अध्याय में लेखिका ने ‘तृतीय विश्व युद्ध का प्रारंभ या चीन को सबक ….’विषय को बड़ी गहराई से स्पष्ट किया है।
अंत में विभिन्न देशों में वैक्सीन निर्माण के प्रयास पर भी लेखिका द्वारा विद्वतापूर्ण तथ्यों को प्रस्तुत किया गया है। पुस्तक में स्पष्ट किया गया है कि इस महामारी ने यह सिद्ध कर दिया है कि अगर हम प्रकृति के साथ खिलवाड़ करेंगे तो प्रकृति भी हमारे मजे लेने में पीछे नहीं रहेगी। इसलिए लाभ इसी में है कि हम प्रकृति के साथ समन्वय बनाकर चलें, उससे दोस्ती करें दुश्मनी नहीं। लेखिका के शब्दों में यह बात भी विचारणीय है कि मनुष्य ने ऐसे विनाशक हथियार बनाए जिनसे समूची पृथ्वी कई बार नष्ट हो जाए तो क्यों हम इस छोटे से वायरस को घातक मिसाइलों से नहीं उड़ा पाए ? इसका मतलब है कि मनुष्य की सीमाएं बहुत ही अल्प हैं। उसका ज्ञान अभी भी पूर्ण नहीं है । वह विज्ञान की चाहे कितनी भी डींगें मार ले पर वह अभी प्रकृति की थाह को ले नहीं पाया है।
लेखिका ने यह भी कहा है कि कोरोनावायरस ने भारत को आत्मनिर्भर बनने का सुनहरा मौका प्रदान किया। इस महामारी ने दुनिया को दिखा दिया कि मनुष्य की जरूरतें सीमित है, परंतु इन्हें असीमित बनाया गया है । जल, थल और नभ को गंदा किए बिना भी दुनिया चल सकती है। पूर्ण वैज्ञानिक और तकनीकी दक्षता के बावजूद एक वायरस ने हमें घुटनों पर ला दिया।
हमें इन सारी बातों पर सोचने की आवश्यकता है । पुस्तक सोचने के लिए मजबूर करती है कि मनुष्य की सोच और उसकी प्रगति की दिशा दुर्गति की ओर है। यदि उसने समय रहते अपने कदमों को नहीं रोका तो महाविनाश उसके लिए इंतजार कर रहा है।
पुस्तक पठनीय भी है और ज्ञानवर्धक भी है । जिसके लिए लेखिका निश्चय ही बधाई और अभिनंदन की पात्र हैं। विशेष रूप से इसलिए भी कि उन्होंने अपनी यह पुस्तक मात्र 32 वर्ष की अवस्था में बहुत शानदार ढंग से लिखी है। एक युवा लेखिका के रूप में निश्चय ही उनके भविष्य की राह बहुत उज्ज्वल है।
पुस्तक के प्रकाशक साहित्यागार धामाणी मार्केट की गली, चौड़ा रास्ता जयपुर हैं । पुस्तक प्राप्ति के लिए दूरभाष नंबर हैं- 0141-2310785 , 4022 382 ।पुस्तक का मूल्य ₹200 रखा गया है ।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत