ज्ञानवती धाकड़
गतांक से आगे….
भोजन के तुरंत बाद पेशाब करने आवश्यक रूप से जाना चाहिए तथा उसके बाद थोड़ी देर के लिए घूमना चाहिए। भोजन के तुरंत बाद सोना नही चाहिए और अगर संभव हो तो भोजन के बाद थोड़ी देर के लिए वज्रासन में बैठना चाहिए, यही एक आसन ऐसा है जो भोजन के बाद भी किया जा सकता है और जो भोजन को पचाने के लिए बहुत लाभदायक भी है। दिन भर काफी मात्रा में स्वच्छ पानी पीना चाहिए, जो शरीर को स्वस्थ रखने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। सप्ताह में एक दिन फलाहार करें, यह शरीर के लिए बहुत ही लाभदायक साबित होता है। बीड़ी, सिगरेट, जर्दा, शराब, मांस, मछली, अण्डा, चाय काफी आदि का प्रयोग न करें और अगर आदतन मजबूर हैं तो भीइन चीजों का उपयोग कम से कम करने की कोशिश करें। सोते वक्त अपने ईष्टïदेव का मनन का शांत मन से शयनासन करें जिससे शीघ्र ही गहरी नींद आ जाएगी। अगर संभव हो तो योगनिंद्रा करनी चाहिए जिससे गहरी एवं संतोषप्रद नींद आ सके।
कुछ क्रियाएं ऑफिस में या अपने व्यवसाय स्थल पर रहते हुए भी की जा सकती हैं, जैसे कार्य करते वक्त आंखें बहुत थक गयी हों तो दोनों हाथों की हथेलियों को कुछ मिनटों के लिए आंखों पर रखें, इससे बहुत आराम महसूस होगा, हाथों की अंगुलियों को हल्के हल्के आंखों पर फेरने से भी आंखों को बहुत आराम मिलता है। इसी प्रकार जब आप चैंबर में हों तब आंखों का व्यायाम भी किया जा सकता है, जिसमें दस दस बार आंखों को ऊपर नीचे, दांये बांये करें और फिर दोनों तरफ गोल गोल घुमाए, इससे आंखों की ज्योति हमेशा ठीक रहेगी। लेकिन ध्यान रखें कि सभी क्रियाएं धीरे धीरे करें तभी पूरा लाभ प्राप्त हो सकेगा। इसी प्रकार दिन भर काम करते करते या पढ़ते पढ़ते गर्दन की जकडऩ का रोग हो गया हो, उसके लिए आप ऑफिस की कुर्सी पर या व्यवसाय स्थल पर बैठे बैठे ही दस दस बार गर्दनक ेा दायं बांऐ और फिर ऊपर नीचे तथा उसके बाद दोनों तरफ गोल रूप से घुमाएं ऐसा अगर दिन में दो बार भी करते रहें तो गर्दन के रोग पास नही आ सकेंगे और अगर गर्दन में जकडऩ रोग है भी तो धीरे धीरे ठीक हो जाएगा। इसी प्रकार कार्यालय में कुर्सी पर बैठे बैठे की आप पैरों के पंजों को नीचे ऊपर करके हल्का खिंचाव देवें तथा दाएं बांए एवं गोल घुमायें जिससे पैरों की नसों में जकडऩ नही होगा तथा हाथों को ऊपर करके अंगड़ाई लेकर शरीर को हल्का खिंचाव देना भी बहुत लाभदायक रहता है। इस तरह अपने कार्यस्थल एवं ऑफिस चैंबर में भी छोटी छोटी क्रियाएं करके अपने आपको स्वस्थ रखा जा सकता है।
शारीरिक क्रियाओं के साथ साथ स्वच्छता एवं सकारात्मक क्रियाशीलता भी अत्यंत आवश्यक है क्योंकि मानसिकता अस्वस्थता तो सभी शारीरिक एवं मानसिक रोगों का कारण बन जाती है अत: नकारात्मक सोच को पास में ही नही आने दें, मन से ईष्र्या द्वेष, अभिमान, अहम क्रोध, हिंसा, अन्याय, एवं अनेतिक व्यवहार आदि दुर्गुणों का परित्याग कर मन में शालीनता, सत्यता, करूणा, मैत्री भाव जागृत कर हर्षोल्लास का प्रवाह करते रहने से एवं संतोषी प्रवृति अपनाने से शरीर स्वस्थ एवं सुखमय बना रहता है। क्योंकि इच्छाओं की भूख वह अग्नि है जिसमें ज्यों ज्यों इच्छा पूर्ति की आहूति दी जाती है त्यों त्यों वह अधिक प्रज्ज्वलित होती जाती हे इसका मतलब यह नही है कि व्यक्ति को किसी चीज की इच्छा ही नही करनी चाहिए और बिल्कुल नीरस जीवन जीना चाहिए इससे तो जीवन निष्क्रिय एवं निरूपद्देश्य हो जाएगा, लेकिन असीमित बढ़ती हुई इच्छाओं पर भी एक सीमित प्रतिबंध की आवश्यकता होती है ताकि हम संतुष्टï एवं प्रसन्न रह सकें। अपने बोल चाल से भी वातावरण को सकारात्मक एवं खुशनुमा बनाये रखें क्योंकि मधुर एवं मर्यादित वाणी से आसपास एक अच्छा स्नेहमयी माहौल बनाये रखा जा सकता है। इसके अलावा सही ढंग से बेठने, उठने एवं खड़े होने की आदत डालें। हमेशा इस प्रकार से बैठें कि रीढ़ की हड्डी सीधी रहे, क्योंकि अगर अधिक देर तक गलत पोश्चर में बैठे रहकर कार्य करते रहेंगे तो कमर दर्द, गर्दन दर्द, कंधों की जकडऩ आदि आदि अनेक रोग हो जाएंगे। लेटकर पढ़ाई नही करेकं इससे आंखों पर जोर पड़ता है। इसके अलावा श्वास लेने की भी सही आदत डालें कि जब श्वास बाहर निकालें तब पेट चिपकना चाहिए अगर कुछ समय तक ध्यान रखकर इस तरह श्वास लेंगे तो सही श्वास लेने की आदत पड़ जाएगी और यह आदत शरीर के लिए बहुत लाभदायक है क्योंकि श्वास ही शरीर की जान है। इसके अलावा स्वयं को स्वस्थ रखने के लिए जहां खाने पीने में बहुत ही ध्यान रखना चाहिए वही शरीर के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य के लिए योगासन, प्राणायाम या ध्यान आदि क्रियाओं को नियमित रूप से करना भी उतना ही आवश्यक है लेकिन इनको करने के लिए भी कुछ बातों की सावधानी रखना आवश्यक है जैसे-
1. अभयास के समय शरीर स्वच्छ एवं मन शांत होना चाहिए, किसी प्रकार की विशेष शारीरिक पीड़ा हो तो अभ्यास नही करें या किसी योग्य शिक्षक के सामने धीरे-धीरे शरीर की शक्ति के अनुसार ही करें, अभ्यास करने का स्थान साफ सुथरा, शांत एवं खुली हवा का होना चाहिए। क्रमश:
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