राजनैतिक दलों को नसीहत
केरल सरकार किए नीतिगत वादों को पूरा न करने पर सर्वोच्च न्यायालय ने राजनैतिक दलों को नसीहत दी है न्यायालय का कहना है कि दल और सरकारें वहीं वादे करें, जिन्हें यर्था के धरातल पर पूरा किया जा सके। न्यायाधीश एआर दवे और एके सीकरी की पीठ ने केरल सरकार की बिजली संबंधी पर सुनवाई के दौरान यह नसीहत दी है। दरअसल, राज्य सरकार ने 1990 नीति बनाई थी कि सरकार प्रदेश में लगने वाली नई औद्योगिक इकाई को अगले पांच साल तक निरंतर बिजली प्रदाय करेगी। साथ ही बिजली की दों में भी रियायत दी जाएगी। लेकिन सरकार ने इस कर्तव्य का पालन नहीं किया। इसी परिपेक्ष्य में चुनाव सुधार की दिषा में सर्वोच्चय न्यायालय के दिषा निर्देशों को आगे बढ़ाते हुए चुनाव आयोग ने भी राजनैतिक दलों को घोषणा पत्रों में लोकलुभावन वादों से दूर रहने की सलाह दी है।
जाहिर है, न्यायालय और चुनाव आयोग ने तय कर दिया है कि दल वही वादे करें जिन्हें पूरा करना संभव हो। अब तक राजनीतिक दल अनर्गल वादे करके मतदाताओं को भटकाने की कोशिश करते रहे हैं। इस वजह से मतदाता राज्यों की बुनियादी समस्याओ, महंगाई, भ्रष्टाचार, रोजगार, कानून समस्या, महिला सुरक्षा और कुपोषण जैसे मुद्दों से भटक जाते हैं। सरकारी कर्मचारियों की नौकरी की उम्र और उनके वेतन-भत्ते बढ़ाए जाने के वादे तो खूब होते हैं, लेकिन दायित्व निर्वहन नहीं करने पर दांडिक कार्रवाई की बात कोई दल नहीं करता ? मध्य-प्रदेश भाजपा ने तो चुनाव के दौरान पत्रकारों को ललचाने की दृष्टि से लैपटॉप देने का टुकड़ा फेंका था। यह वादा निष्पक्ष पत्रकारिता को प्रभावित करने वाला था ? लिहाजा वादे चाहे घोषणा-पत्रों में किए जाएं अथवा राज्य सरकारें नीतिगत निर्णय लेकर करें उन्हें पूरा करना जरूरी है।
वादे सिर्फ गरीब, कमजोर और वंचित वर्गों के उत्थान के लिए होने चाहिए जिससे समानता की दौड़ में वह आगे आ सकें। वैसे जागरूक मतदाता को थोथे वादों के सम्मोहन में नहीं आना चाहिए, क्योंकि एक सर्वेक्षण मुताबिक कुछ राज्यों में चुनाव के समय जो वादे दलों ने किए थे, उनमें से 90 फीसदी धोखा साबित हुए हैं।
यदि बीते ढाई साल के दौरान पांच प्रमुख राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में किए वादों की समीक्षा करें तो पता चलता है, 90 प्रतिशत वादे मतदाता के साथ धोखा साबित हुए हैं। इन चुनावों में हरेक दल ने मुफ्त लैपटॉप से लेकर सस्ते राषन तक का वादा किया था। कहीं पूरे राज्यों को वाईफाई करने का वादा था, तो कहीं वादों में समान वेतन-भत्ते देने का वादा था। लेकिन सत्ता मिलते ही ज्यादातर राजनीतिक दल वादे पूरे करने से मुकर गए। उन्हें पूरा करने में धन की कमी, कहीं अदालत के अड़ंगे, तो कहीं वन अधिनियम का रोना रो दिया गया। कहीं केंद्र के नियम बाधा बन गए। कर्मचारियों के वादे आयोग बिठाकर टाल दिए गए। फिलहाल देश में गुजरात मॉडल को अनुकरणीय माना जा रहा है। वहां के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी केंद्र में यदि भाजपा की सरकार बनती है तो देष के भावी प्रधानमंत्री भी घोषित कर दिए गए हैं। इसी गुजरात में किए गए वादों के अमलीकरण की पड़ताल करते हैं। एक सर्वे के मुताबिक राज्य भाजपा ने वादा किया था, कि पूरे राज्य को वाईफाई की सौगत देंगे। फिलहाल यह वादा हवा-हवाई है। राज्य की 16 लाख हेक्टेयर जमीन को सिंचित किए जाने का वादा भी वादों में शामिल है। इसके लिए 3195 करोड़ रूपए का बजट प्रावधान तो किया गया है, लेकिन काम कहीं शुरू नहीं हुआ। इसके उलट गुजरात से 6 हजार किसानों द्वारा आत्महत्या किए जाने की खबर आ रही है। कुपोषण तो गुजरात में चरम पर है ही। गुजरात की नरेन्द्र मोदी सरकार ने गरीबों के लिए 50 लाख घर बनाने का वादा भी किया था। इनमें से 28 लाख नगरों में और 22 लाख गांवों में बनाए जाने थे। सरकार ने मुख्यमंत्री समृद्धि योजना में 4400 करोड़ रूपए की व्यवस्था तो की है, लेकिन जमीन पर अमल कछुआ चाल से चल रहा है। हकीकत में अभी तक 10 लाख घर बन जाने चाहिए थे,लेकिन एक लाख भी नहीं बने।
वादों की घूस का आलम उत्तर प्रदेश में और भी बद्तर है। समाजवादी पार्टी की अखिलेश यादव सरकार ने वादा किया था, 10वीं और 12वीं कक्षा उत्तीर्ण करने वाले सभी छात्रों को लैपटॉप व टैबलैट बतौर उपहार दिए जाएंगे। बमुश्किल 50 फीसदी लक्ष्य ही सरकार हासिल कर पाई थी कि इससे पहले 2013 में नया बैच पास आउट होकर लैपटॉप पाने का हकदार हो गया। अब सरकार सांसत में है और यह चुनावी वादा जमीन से ओझल होता जा रहा है। 10वीं पास कर लेने वाले सभी मुस्लिम छात्रों को 30 हजार रूपए की आर्थिक मदद की जानी थी, लेकिन मदद का काम कछुआ गति से चल रहा है। सपा धोषणा-पत्र में वादा था कि 35 वर्ष से अधिक उम्र के हरेक बेरोजगार को एक हजार रूपए बतौर मासिक भत्ता दिया जाएगा। सत्ता पर कबिज होने के बाद सरकार ने धन की तंगी का सामना किया तो इसमें इतनी कागजी खानापूर्तियां जोड़ दी गईं कि बेरोजगार अर्जियां लगाने से पीछे हट रहे हैं।
तमिलनाडू की जयललिता ने वादा किया था कि वे मुख्यमंत्री बनती हैं तो 11वीं और 12वीं के सभी विद्यार्थियों को लैपटॉप देंगी। लेकिन योजना अभी तक खटाई में है। राज्य को 24 घंटे बिजली भी उन्हें देनी थी, लेकिन बमुश्किल 12 से 16 घंटे बिजली मिल रही है। हालांकि जयललिता ने 20 किलो चावल और शादी के वक्त कन्याओं को 25 हजार नकद व 4 ग्राम सोने के मंगलसूत्र देने के वादे पूरे भी किए हैं। हिमाचल प्रदेष में कांग्रेस ने वादा किया था,वे जीते तो सब्सिडी वाले साल में 9 की जगह 12 गैस सिलेण्डर देंगे। लेकिन सत्ता में काबिज होने के बाद कह रहे हैं,केंद्र इसकी इजाजत नहीं दे रहा है। हालांकि अब केन्द्र ने ही 12 सिलेण्डर देनक का फैसला ले लिया है। 12वीं पास गरीब छात्रों को एक हजार रूपए बेरोजगार भत्ता देने का वादा भी किया था, लेकिन सरकार अब इसे असंभव मान रही है। यहां छात्रों को किए वादे के मुताबिक लैपटॉप भी नहीं दिए गए।
पंजाब में पूरे राज्यों को वाईफाई कर देने का वादा किया था। लेकिन अब सरकार ने चुप्पी साध ली है। सरकारी कर्मचारियों की तरह छोटे किसानों को पीएफ का लाभ देने का वादा किया था। लेकिन अब बजट का रोना रोया जा रहा है। अकाली दल ने सरकारी विद्यालयों में 12वीं के छात्रों को इंटरनेट डाटा कार्ड के साथ लैपटॉप देने का वादा किया था, किंतु इस दिशा में अब तक कोई पहल नहीं की गई। जाहिर है, ज्यादातर वादे थोथे साबित हुए हैं।
हकीकत तो यह है कि मुफ्त उपहार बांटे जाने के वादे राज्यों की आर्थिक बदहाली का सबब बन रहे हैं। यह स्थिति चिंताजनक है। मतदाता को ललचाने के यह अतिवादी वादे, घूसखोरी के दायरे में आने के साथ, मतदाता को भरमाने का काम भी करते हैं। लिहाजा ये आदर्श आचार संहिता का खुला उल्लंघन हैं। थोथे वादों की यह अतिवादी परंपरा इसलिए भी घातक एवं बेबुनियाद है, क्योंकि अब चुनाव मैदान में उतरने वाले सभी राजनीतिक दल घोषणा-पत्रों में नए कानून बनाकर नीतिगत बदलाव लाने की बजाय मतदाता को व्यक्गित लाभ पहुंचाने की कवायद में लग गए हैं। जबकि व्यक्ति की बजाए सामूहिक हितों की परवाह करने की जरूरत है ? हालांकि अपवाद रूवरूप आम आदमी पार्टी जरूर भ्रष्टाचार मुक्त दिल्ली में शासन देने के मुद्दे पर चुनाव जीती थी, लेकिन अब वह भी भटक रही है। लिहाजा केरल के बिजली संबंधी फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि नीतिगत वादा करने के बाद राज्य सरकार कर्तव्य है कि वह किए वादे को पूरा करें।