आज का चिंतन-27/02/2014
जहाँ प्रकृति का उन्मुक्त विलास
वहीं है शिवजी का निवास
– डॉ. दीपक आचार्य
9413306077
शिव को पाने के लिए हम लाख जतन करते रहते हैं मगर अभी तक हमारी पीढ़ी में कोई ऎसा नहीं मिल पाया है जो दावे के साथ कह सके कि भगवान शिव का साक्षात्कार या अनुभव उसे हो ही गया है। शिव की पूजा-उपासना और साधना के नाम पर हम कितने ही पाखण्ड, आडम्बर और नौटंकियाँ कर लें, हजारों मन भंग, शहद और घी, दुग्ध, ईक्षुरस की सहस्रधाराओं से दिन-रात अभिषेक करते रहें, शिव पंचाक्षरी से आसमान गूंजाते रहें, शिव महिम्न और रूद्राभिषेक की ऋचाओं का गान करते रहें या फिर महामृत्युंजय के लाखों जप, हवन या कितने ही शैव अनुष्ठान कर डालें इसका कोई औचित्य नहीं, सिवाय इसके कि जमाने भर के लोग हमें महान शिवभक्त समझते रहें।
भस्म-त्रिपुण्ड और चंदनादि से पूरे शरीर को रंग डालें या भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए सारी परंपराओं का निर्वाह कर डालें, माईक से किलोमीटर गूंजा डालें या श्रृंगार के नाम पर शिवलिंग और शिव परिवार को सुनहरे रंगों से सुसज्जित कर डालें या फिर वह सब कुछ कर डालें जो पुरखे करते रहे हों, मगर इन सबका कोई परिणाम तब तक सामने नहीं आ पाएगा जब तक कि भगवान शिव और उनके महत्त्व, उन्हें प्रसन्न करने के वास्तविक उपायों को अपना न लें।
शिव उपासना का ढोल पीटना, पाखण्ड रचना और भोलेनाथ के जयकारे लगाना दूसरी बात है और शिव को सच्चे मन से पूजना अलग बात। शिव भगवान आशुतोष हैं, सभी देवताओं में वे एकमात्र ऎसे देवता हैं जो जल्दी ही भक्त पर प्रसन्न होते हैं लेकिन भक्त होना चाहिए सच्चा। उसकी भक्ति भी होनी चाहिए सच्ची। आज के आडम्बरों की तरह नहीं।
शिव की उपासना के लिए सबसे जरूरी यह है कि हमारा चित्त श्मशान की तरह सारे विकारों और ऎषणाओं से दूर हो, परम शांत हो। जहाँ और कुछ भी नहीं होगा वहीं शिव अपने आपको विराजमान करते हैं। शिव उन स्थानों से दूर रहते हैं जहां स्वार्थ, ऎषणाओं, राग-द्वेष और कामनाओं की खरपतवार बनी रहती है।
शिव को पाने के लिए दूसरी सबसे बड़ी बात यह है कि हमें अच्छी तरह यह समझ लेना होगा कि शिव का निवास उसी स्थान पर होता है जहां प्रकृति का उन्मुक्त आँगन हो, पंच तत्वों का भरपूर समावेश हो और जहां शिव को विराजमान करना है वहां किसी भी प्रकार का संसार दूर-दूर तक न हो।
आज की तरह शिवालयों के नाम पर कमरे बनाकर शिवलिंग प्रतिष्ठित कर दिए जाने और चारों तरफ दुकानों और बस्तियों की सजावट कर लिए जाने के धंधों से शिव को कभी भी हम अपने समीप नहीं पा सकते हैं।
शिव को एकान्त प्रिय है और मन की स्वच्छता। इसलिए शिव को पाने के लिए बाहरी उपचारों से कहीं अधिक जरूरी है अपने अन्तर्मन को साफ-सुथरा एवं स्वच्छ बनाना तथा प्रकृति की अस्मिता को बचाये रखते हुए अपने आस-पास चारों तरफ प्राकृतिक रमणीयता के प्रति संवेदनशील रहना।
नदी-नालों, खुली जमीन, हरियाली और पानी तथा तन-मन और परिवेश की शुद्धता को लीलने वाले तथा इन्हें सहयोग करने वाले लोगों के लिए शिव को पाना असंभव ही है। शिव को पाने के लिए उन सारी बातों पर अमल करना जरूरी है जो भगवान शिव को पसंद हैं।
—000—